(mohsina bano)
उदयपुर । शांति पीठ उदयपुर के तत्वावधान में गोगुन्दा के निकट ऐतिहासिक मायरा की गुफा में विश्व पृथ्वी दिवस के अवसर पर संगोष्ठी, ध्यान और चिंतन सत्र का आयोजन किया गया। इस अवसर पर जंगल में फैले प्लास्टिक और कचरे की सफाई भी की गई।
कार्यक्रम का उद्देश्य पृथ्वी को उपभोग की वस्तु मानने के बजाय, एक दिव्य विरासत के रूप में स्वीकारने का संदेश देना था। वैदिक विद्वान प्रो. नीरज शर्मा ने अथर्ववेद के भूमि सूक्त के मंत्रों की व्याख्या करते हुए बताया कि पृथ्वी को सत्य, सहिष्णुता, अनुशासन और समर्पण जैसे गुणों से धारण किया जाता है, न कि उसका अंधाधुंध दोहन कर।
पूर्व नगर नियोजक सतीश श्रीमाली ने कहा कि किसी भी निर्माण कार्य में स्थानीय समुदाय की सहमति और प्रकृति के संरक्षण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। शांति पीठ संस्थापक अनंत गणेश त्रिवेदी ने अरावली की पहाड़ियों की अंधाधुंध खुदाई और विकास के नाम पर किए जा रहे विनाश पर चिंता जताई।
इतिहासकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू ने बताया कि मायरा की गुफा कभी महाराणा प्रताप के शस्त्रों को छिपाने का स्थल रही है। यह स्थान हल्दीघाटी, रक्ततलाई और महाराणा उदयसिंह की दाहस्थली के निकट है और इसका ऐतिहासिक महत्व अत्यंत गहन है।
पर्यावरणविद् प्रो. महेश शर्मा और डॉ. कमल सिंह राठौड़ ने खनन गतिविधियों और सिकुड़ते जल स्रोतों को लेकर चेताया कि यदि समय रहते सजग नहीं हुए तो विनाश से बचना मुश्किल होगा।
कार्यक्रम में एडवोकेट उमेश शर्मा, कैलाश पालीवाल, डॉ. बी.डी. कुमावत और निखिल माली सहित कई वक्ताओं ने विचार रखे। सभी वक्ताओं ने यह संदेश दिया कि पृथ्वी पर हम अतिथि हैं, मालिक नहीं। अंत में प्रतिभागियों ने गुफा के आसपास फैले कचरे को हटाकर स्वच्छता का संदेश दिया।