कोटा कोटा में रेलवे ट्रेनों, स्टेशन प्लेटफॉर्म, रेलवे सीमा में अपराधों को रोकने के लिए दिन-रात एक कर आमजन की सुरक्षा व्यवस्था में चाक-चौबंध रहने वाले पुलिस जवानों के स्वास्थ्य पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। जिसको मजबूरीवश पुलिस के जवान लम्बे समय से भुगतते आ रहे हैं। यह सच्चाई है कोटा जीआरपी पुलिस के मेस की, जोकि एक खंडहरनुमा रेलवे क्वार्टर में संचालित है। मेस की हालत इतनी खराब है कि उसमें बैठकर खाने में भी जवानों को डर लगता है। वहाँ काम करने वाले रसोईया और खाना खाने के लिए आने वाले पुलिस के जवानों को हमेशा जहरीले जीव के काटने का खतरा बना रहता है। क्वार्टर की छत पूरी तरह से जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है जो कभी भी रिपेयर नहीं होने के अभाव में गिर सकती है। इस मेस की हालत देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि इसकी पुताई हुए तो एक जमाना बीत गया हो। मेस परिसर के हालात यह है कि चारों तरफ गंदगी का आलम पसरा पड़ा है, पास में नाली गुजर रही है जिसमें बदबू आती है, चौक में पशुओं ने अपनी आरामगाह बना रखी है जो हमेशा गंदा रहता है। मेस में शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है। पीने के लिए साफ पानी की कोई सुविधा नहीं। यहाँ तक की पुलिस जवानों को टीन के गंदे पीपों पर बैठकर टूटीफूटी बैंच पर खाना रखकर खाने पर मजबूर होना पड़ रहा है, जिससे कई बार वे गिर भी चुके हैं। दरअसल कोटा जंक्शन के रेलवे कॉलोनी क्षेत्र में रेलवे प्लेटफॉर्म नं.-4 के बाहर पुराने रेलवे मिडिल स्कूल के नजदीक एक खंडहर हालत में पड़े रेल्वे क्वार्टर में जीआरपी पुलिस का मेस संचालित है। इस मेस को चलाने के लिए दो स्थाई कर्मचारी नियुक्त हैं। मेस में लगभग 50 से 60 पुलिस जवानों का रोजाना खाना बनता है। जीआरपी के खाने की मेस इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कोटा में जीआरपी पुलिस में नौकरी करने वाले लगभग चालीस से पचास कर्मचारियों का स्टाफ है। सीकर, झुंझुनू, नागौर, अजमेर, अलवर, दौसा, भरतपुर, जोधपुर, बीकानेर गंगानगर और बूंदी जिलों में निवास करने वाले पुलिसकर्मी है। इस मेस में लगभग तीन दर्जन कर्मचारियों का एक समय में भोजन तैयार होता है। सुबह और शाम लगभग 70 व्यक्तियों का खाना बनाया जाता है। इसके अलावा जीआरपी थाने के मुलजिमों के लिए भी खाना यहीं से जाता है। कुल मिलाकर कोटा जीआरपी पुलिस मेस की बात की जाए तो यहां पर खाना बनाना और बैठकर खाया जाना भी किसी सजा से कम नहीं है। हमने खुद अपनी आँखों से देखा की सवेरे धूप के अंदर खुले में खाना बन रहा था। इतना ही नहीं इस भीषण गर्मी के दौरान मेस में ना तो छायां की माकूल व्यवस्था मिली और ना ही पंखे की सुविधा है। जिस रेलवे क्वाटर में यह जीआरपी पुलिस की मेस चल रही है इसका लेवल सड़क से नीचे होने के कारण बरसात के मौसम में गन्दा पानी अंदर घुस जाता है जिससे बारिश में भोजन बनाने में बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। मतलब साफ है कि जीआरपी पुलिस के जवानों द्वारा मेस में बद-से-बदतर हालत में खाना खाया जाना उनकी मजबूरी बन चुकी है। ऐसे में जब पहली बार कोटा जीआरपी पुलिस में ईमानदार डिप्टी पुलिस सुपरिटेंडेंट शंकरलाल मीणा ने इस मेस के हालात देखे तो उन्होंने जीआरपी पुलिस के जवानों के इस दर्द को समझा और इस मेस की व्यवस्था को सुधारने के लिए दृढ़ संकल्प लिया। जिसके बाद उन्होंने इसकी कार्यवाही भी शुरू कर दी है। जीआरपी डिप्टी पुलिस सुपरिटेंडेंट शंकरलाल मीणा की बात करें तो वह एक ईमानदार पुलिस अफसर होने के साथ-साथ मेहनती भी है। उन्होंने कोटा पुलिस में रहते हुए अपने पुलिसकर्मियों के लिए कई यादगार कार्य किए हैं जिनमें नया पुलिस उपअधीक्षक कार्यालय, कलेक्ट्रेट पुलिस चौकी, खेड़ली फाटक पुलिस चौकी को व्यवस्थित और खूबसूरत बनाकर कई नवाचार कर अपनी अलग पहचान साबित की है जो कि काबिले तारीफ है।