एआई और भारतीय ज्ञान परंपरा एक-दूसरे के पूरक - प्रो. सारंगदेवोत

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Published on : 10 Mar, 25 05:03

शबनम बानों

एआई और भारतीय ज्ञान परंपरा एक-दूसरे के पूरक - प्रो. सारंगदेवोत

उदयपुर:  जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ एवं भावनगर, गुजरात के नंदकुंवरबा महिला आर्ट्स कॉलेज व जेके सरवैया कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में "एआई की उत्कृष्टता द्वारा स्थिरता हेतु बहुविषयक शोध को प्रोत्साहन" विषय पर एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया गया। समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए विद्यापीठ के कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि एआई और भारतीय ज्ञान परंपरा कई स्थानों पर एक-दूसरे के पूरक हैं।
उन्होंने कहा कि भारत की प्रथम शिक्षा नीति के प्रमुख निर्माता डॉ. डी.एस. कोठारी उदयपुर से थे, और उन्होंने जो शिक्षा नीति प्रस्तावित की थी, उसके कई पहलू आज की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी परिलक्षित होते हैं। यदि वे सुधार पहले लागू हो गए होते, तो आज भारत को "विश्वगुरु" बनने के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ता। उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा को गंगा नदी के प्रवाह के समान बताया, जिसमें ऋग्वेद को गौमुख, उपनिषदों को देवप्रयाग और वेदांत को अंतिम स्वरूप बताया। यह सिद्ध करता है कि भारतीय संस्कृति सतत परिष्करण की प्रक्रिया से गुजरती आई है।
प्रो. सारंगदेवोत ने कहा कि भारतीय संगीत शास्त्र में गणितीय सूत्रों को गीतों के रूप में लिखा गया, जो बहुविषयक अध्ययन का बेहतरीन उदाहरण है। उन्होंने एआई के प्रभाव पर चर्चा करते हुए कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता से रोजगार उन्हीं का छिनने का डर है, जो स्वयं को अपस्किल और रिस्किल नहीं कर पाएंगे। एआई किसी के लिए प्रतिस्थापन नहीं है, बल्कि वह उन्हीं के लिए लाभदायक सिद्ध होगा, जो इसका कुशलतापूर्वक उपयोग करेंगे।

वैश्विक स्तर पर बहुविषयक सहयोग अनिवार्य - प्रो. चौहान
सेमिनार के मुख्य अतिथि प्रो. प्रताप सिंह चौहान ने कहा कि वैश्विक स्तर पर बहुविषयक सहयोग अनिवार्य हो गया है। प्रबंधन, वाणिज्य, विज्ञान, मानविकी, इंजीनियरिंग, वास्तुकला, कृषि, विधि, पत्रकारिता जैसे विविध क्षेत्रों के विशेषज्ञों को मिलकर एआई संचालित एक समग्र एवं प्रभावशाली पद्धति विकसित करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अन्तःविषयक शोध से ही उन चुनौतियों का समाधान संभव है, जिनका सामना आज संपूर्ण विश्व कर रहा है।

एआई आधारित बहुविषयक शोध से मिले समाधान
डॉ. रविंद्र सिंह सरवैया ने सेमिनार में प्रस्तुत शोध पत्रों के निष्कर्ष साझा करते हुए कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के माध्यम से ही भविष्य में स्थिरता की ओर बढ़ा जा सकता है। उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन, अर्थव्यवस्था, सामाजिक असमानता, ऊर्जा संरक्षण और कृषि उत्पादकता जैसी चुनौतियों के स्थायी समाधान के लिए एआई आधारित बहुविषयक शोध अनिवार्य हैं।

बेस्ट पेपर अवार्ड
इस अवसर पर रिद्धि त्रिवेदी, डॉ. नम्रता सोलंकी, तन्वी सोलंकी, युवराज उपाध्याय और प्रिन्सिबा गोहिल को बेस्ट पेपर अवार्ड से सम्मानित किया गया।

सेमिनार के प्रारंभ में प्राचार्य डॉ. समकित शाह ने स्वागत उद्बोधन दिया और मेनेजिंग ट्रस्टी भरत सिंहजी गोहिल का सान्निध्य प्राप्त हुआ। सेमिनार का संचालन प्रिन्सिबा गोहिल ने किया एवं आभार समन्वयक डॉ. नम्रता सोलंकी ने व्यक्त किया।
इस आयोजन में प्रो. एकता भालिया, प्रो. केयूर शाह, अंकिताबेन पटेल, प्रो. पूनम, प्रो. अल्पेशसिंह, प्रो. जितेंद्र भट्ट, डॉ. सत्यकी भट्ट, प्रो. दृष्टिबेन, प्रो. हेमिशबेन, प्रो. दीपक मकवाना, प्रो. श्रद्धाबेन मकवाना, निजी सचिव के.के. कुमावत, डॉ. चंद्रेश कुमार छ्तलानी, विकास डांगी सहित अनेक शिक्षाविद् एवं शोधार्थी उपस्थित रहे।
 


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