हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने “स्वच्छ भारत” का सपना देखा था । वह चाहते थे कि भारत के सभी नागरिक एक साथ मिलकर देश को स्वच्छ बनाने के लिए कार्य करें। महात्मा गांधी के स्वच्छ भारत के स्वप्न को पूरा करने के लिए, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया और इसके सफल कार्यान्वयन हेतु भारत के सभी नागरिकों से इस अभियान से जुड़ने की अपील की थी। इस अभियान का उद्देश्य पांच वर्षों में स्वच्छ भारत का लक्ष्य प्राप्त करना था था ताकि बापू की 150वीं जयंती को इस लक्ष्य की प्राप्ति के रूप में मनाया जा सके। स्वच्छ भारत अभियान का उद्देश्य अधिक-से-अधिक लोगों को इस अभियान से जोड़ कर इसे एक जन-आंदोलन बनाना भी था जिससे 2019 तक गांधीजी का स्वच्छ भारत का स्वप्न पूरा किया जा सके। स्वच्छ भारत अभियान का उद्देश्य केवल आसपास की सफाई करना ही नहीं था अपितु नागरिकों की सहभागिता से अधिक-से अधिक पेड़ लगाना, कचरा मुक्त वातावरण बनाना, शौचालय की सुविधा उपलब्ध कराकर एक स्वच्छ भारत का निर्माण करना आदि कार्य थे।
देश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए स्वच्छ भारत का निर्माण करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। अस्वच्छ भारत की तस्वीरें भारतीयों के लिए अक्सर शर्मिंदगी की वजह बन जाती है इसलिए स्वच्छ भारत के निर्माण एवं देश की छवि सुधारने के लिए यह सही समय एवं अवसर है। यह अभियान न केवल नागरिकों को स्वच्छता संबंधी आदतें अपनाने बल्कि हमारे देश की छवि स्वच्छता के लिए तत्परता से काम कर रहे देश के रूप में बनाने में भी मदद करेगा।
भारत में स्वच्छ भारत मिशन अभियान को शुरू किए हुए ग्यारह वर्ष से भी अधिक लम्बा समय हो गया है लेकिन क्या हम इसके उद्देश्यों को पूरा करने में पूरी तरह सफल हो पाए है या नहीं यह एक विचारणीय प्रश्न हैं? प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा भारत में स्वच्छता के लिए महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय मिशन शुरु करवा देश में स्वच्छता को एक जन आंदोलन का स्वरूप देने का प्रयास किया गया । भारत में स्वच्छता अभियान को प्रारम्भ में अभूतपूर्व सफलता भी मिली और देश के इंदौर, सूरत और डूंगरपुर जैसे कई छोटे एवं बड़े शहरों ने स्वच्छता के क्षेत्र में अकल्पनीय कार्य किया । इन शहरों में आज भी स्वच्छता का यह कार्य निर्बाध ढंग से किया जा रहा हैं लेकिन देश की राजधानी नई दिल्ली सहित अनेक शहरों की सीरत और सूरत अभी भी नहीं बदली हैं । केन्द्र और राज्य सरकारें शहरों और गाँवों में गंदगी को साफ करने के लिए सफाई कर्मचारियों, सीवरेज, सफाई मशीनों आदि पर भारी धन राशि खर्च कर रही है परंतु इसके बावजूद आज भी हमारे देश के अधिकांश शहर एवं गांव गंदगी से अटे पड़े है । जगह जगह गन्दगी और प्लास्टिक के अंबारों,झुग्गी झोपड़ियों,नदियों और तालाबों के गंदे पोखर बन जाने, सीवरेज की गंभीर समस्या, अनियोजित बसावटों ,रेल्वे और बस अड्डों के किनारे पसरी गंदगी आदि ने देश की तस्वीर को धूमिल कर दिया हैं।
जानकारों का कहना है कि दुर्भाग्य वश देश में स्वच्छता के लिए जिस ईमानदारी से कार्य होना चाहिए था वह अधिकांश शहरों,कस्बों और गाँवों में नहीं हों रहा हैं । आज हम देख रहे हैं कि स्वच्छता अभियान से सम्बद्ध अधिकारियों, कर्मचारियों और जनता का अपेक्षित सहयोग नहीं मिलने से यह अभियान जन आंदोलन बन अपेक्षित सफलता के सौपान नहीं छू पा रहा है । हालांकि यह कार्य बिल्कुल असंभव नहीं हैं । इसमें राजनीतिक और प्रशासनिक दोनों प्रकार की इच्छा शक्ति की आवश्यकता हैं ।
स्वच्छता से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि अब भारत में स्वच्छता की एमरजेंसी को लागू करना
अत्यन्त जरूरी हो गया है। इन लोगों का कहना है कि यदि स्वच्छता को आर्थिक दण्ड और कठौरतम दण्ड से जोड़ दिया जाये और साथ ही स्वच्छता सेस लागू कर दिया जाए तो कोई ताक़त देश को स्वच्छ होने से नहीं रोक सकती । स्वच्छता से जुड़े एक्टिवटस तो अतिरंजित बातें यहां तक कहने लगे है कि गंदगी फैलाने वालों को क्यों नहीं मृत्यु दण्ड की सजा दी जानी चाहिए? क्योंकि अस्वच्छता भी किसी जघन्य अपराध से कम नहीं हैं। वे कहते है कि कानून में किसी व्यक्ति को मारने का प्रयास करने वालों के विरुद्ध फांसी तक की सजा का प्रावधान है, जबकि दूसरी तरफ हमारे देश में गंदगी में पाए जाने वाले कीटाणुओं से फैलने वाली बीमारी उल्टी, दस्त, टाइफाइड, मलेरिया, डेंगू , बुखार से मरने वालों की संख्या अनगिनत है। ऐसे में जो लोग गंदगी फैला रहे हैं उनके विरुद्ध भी ऐसी ही सजा और कठौर आर्थिक दण्ड का प्रावधान क्यों नहीं होना चाहिए?
स्वास्थ्य विश्लेषकों के अनुसार भारत में सर्वत्र फैली गंदगी देश की अंतरराष्ट्रीय छवि के साथ ही अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डाल रही है । आज हम देख रहे हैं केन्द्र और राज्यों की सरकारों को मुफ्त इलाज की कई योजनाएं चलानी पड़ रहीं हैं । केंद्र सरकार भी गरीबों के इलाज के लिए आयुष्मान बीमा योजना चला रही हैं जिसमें 5 लाख रु.तक के मुफ्त इलाज का प्रावधान हैं । स्वास्थ्य की इन योजनाओं पर करोड़ों रुपया खर्च हो रहा हैं । सरकारों का विकास कार्यों पर खर्च किया जाने वाला पैसा आज आयुष्मान जैसी योजनाओं पर खर्च करना पड़ रहा है। गरीब के इलाज के नाम पर प्राइवेट हॉस्पिटल धन्य हो रहें हैं । आज लोगों को इस बात को समझना अगर हम शहर एवं गांवों को स्वच्छ बना देंगे तो आयुष्मान जैसी योजनाओं की भारी राशि की बचत होगी और आमजन स्वस्थ रहने के साथ-साथ लंबी उम्र भी प्राप्त कर सकेगा।
जानकारों का कहना है कि स्वच्छता एक सेवा भी है और बेरोजगारों के लिए एक बहुत बड़े रोजगार का साधन भी । पहले लोग घरों के कचरे को अनुपयोगी समझ उन्हें बाहर फैंक देते थे परंतु आज यह कचरा मात्र कचरा ना होकर लोगों की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी बन गया हैं । आज कचरे से ऊर्जा एवं जैविक खाद तक बनाई जा रहीं है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत नाइट स्वीपिंग का कार्य अगर व्यवस्थित किया जाता है तो शहरों और गाँवों में होने वाली चोरियों पर प्रतिबंध लग सकता है । कचरा सेग्रीगेशन में अगर शहर के सारे भिखारियों को लगा दें या कचरा चुकने वालों को लगा दें तो घरों में रात में होने वाली चोरियाँ भी बंद हो जाएगी तथा वास्तविक जरूरतमंद लोगों को रोजगार भी मिलेगा ।
देश की राजधानी नई दिल्ली को विश्व स्तरीय राजधानी के रूप में विकसित करने की योजना है लेकिन स्वच्छता को अमलीजामा पहनाने के बिना उसे मूर्त रुप देना संभव नहीं होगा। आज जरूरत सिर्फ़ इस बात की हैं कि स्वच्छता से जुड़े अधिकारी और कर्मचारी थोड़ी सी सख्ती के साथ से इस कार्य को इमानदारी से करें तो स्वच्छता को आसानी से धरातल पर उतारा जा सकता है लेकिन अनुभव किया जा रहा है कि जहां अधिकारी स्वच्छता पर कार्य करना चाहता है वहां कर्मचारी नहीं करता है और जहां कर्मचारी काम करना चाहता है वहां अधिकारी नहीं करना चाहता,जबकि स्वच्छता अभियान की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि अधिकारी एवं कर्मचारी जनता के साथ मिलकर इसे "जन आंदोलन" बनाएँ । स्वच्छता आन्दोलन भारत के 142 करोड़ देशवासियों के जीवन को ही नहीं वरन् भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि और अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करने वाला हैं ।
वैदिक मान्यताओं के अनुसार स्वच्छता में देवी देवताओं का वास होता है और जिस शहर और गाँव में देवी देवताओं का वास होगा उसका विकास एवं उत्थान दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती। हमारे देश भारत को अपनी समृद्ध और महान संस्कृति और आध्यात्मिक विरासत के कारण ही सदैव विश्व गुरु का सम्मान मिला हैं और आज प्रयागराज में सम्पन्न हुआ विश्व और सदी का सबसे बड़ा महाकुम्भ भी इस बात का प्रमाण है कि दृढ़ राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छा शक्ति के कारण करीब सत्तर करोड़ लोगों के एक ही स्थान पर एकत्रित होने तथा गंगा, यमुना और लुप्त सरस्वती नदियों के पवित्र संगम में स्नान करने के बावजूद इन नदियों की धारा अभी भी निर्मल रूप से प्रवाहमान हैं ।
देखना है भारत सरकार स्वच्छ भारत अभियान को जमीनी हकीकत बनाने के लिए आने वाले वक्त में कोई सख्त कदम उठाएंगी?