“सिंहासन बत्तीसी” के मंचन के पीछे की कहानी --

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Published on : 23 Feb, 25 00:02

“सिंहासन बत्तीसी” के मंचन के पीछे की कहानी --

“सिंहासन बत्तीसी”नाम  लेते ही हर समझदार और संवेदनशील भारतवासी को चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के  दिव्य चरित्र का ध्यान आता है जो प्रजा की रक्षा के लिए कठिन से कठिन तप करता है ,न्याय करता है विषम परिस्थतियों से लड़ने में  पराक्रम दिखाता है ,प्रजा के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर करने को तत्पर रहता है | इसी क्रम में विक्रम और बेताल के  टीवी सीरियल और राजा भोज से पुतलियों के संवाद याद आ जाते हैं | ईसा से भी पहले विक्रम संवत शुरू करने वाले सम्राट विक्रमादित्य ने एक उत्तम राजा के रूप में देवराज इंद्र को  इतना प्रभावित किया कि  देवराज इंद्र ने  सम्राट विक्रमादित्य को बत्तीस पुतलियों से सज्जित सिंहासन भेंट किया साथ ही अगिया और बेताल जैसे दो विशिष्ट दूतों को विक्रमादित्य की रक्षा के लिए नियुक्त किया | सिंहासन बत्तीसी की लोकप्रियता इसकी पौराणिक और नैतिक शिक्षाओं के सुन्दर मिश्रण में निहित है जो इसे भारतीय साहित्य का एक अनंत खजाना बनाती है |   



सिंहासन बत्तीसी नाम से  एक मल्टीमीडिया माइम मेलोड्रामा प्रस्तुति की परिकल्पना अपने आप में विलक्षण  थी क्योंकि ये नाटक अभिलाषा विशेष विद्यालय के मूक बधिर और विमंदित छात्रों द्वारा खेला जाना था | इस नाटक की परिकल्पना   सोसायटी फॉर एजुकेशन ऑफ़ द डिफरेंटली एबल्ड (सेडा ) की मुख्य अधिकारी श्रीमती रेणु सिंह ने की और  निर्देशन  की जिम्मेदारी  जयपुर की अनुभवी संस्था रेनबो  सोसायटी को सोंपी  | रेनबो  सोसायटी  के  सिराज अहमद भाटी और विचित्र सिंह   दोनों ही अनुभवी रंगकर्मी के साथ नवाचार में विश्वास  करने वाले जुझारू रचनाकार हैं और मूकाभिनय के क्षेत्र में मेरे गुरुबंधू भी हैं | हम तीनों ने पद्मश्री निरंजन गोस्वामी जी से माइम की तालीम  हासिल की है |  
दिवाली के पहले उन्होंने मुझसे संपर्क किया |  उदयपुर आकर मेरे साथ उन्होंने अभिलाषा स्कूल के  शिक्षकों और प्रशासन के साथ बैठक कर   सिंहासन बत्तीसी नामक “माइम मेलोड्रामा”  को नाट्य स्वरूप देने पर विस्तृत  चर्चा की | जैसे जैसे दिन बीतते गए इस प्रकल्प ने आकार लेना शुरू किया |  पांच प्रतिनिधि कहानियों के चयन से पटकथा ( स्क्रिप्ट ) लेखन का काम शुरू हुआ |  मंच डिजाइन, सेट, लाइट, स्टेज प्रोप्स, संगीत और पूरे नाटक के निर्माण के एक एक पक्ष पर घंटों एकत्र बैठ कर मंथन किया गया | फोन, ओन लाइन मीटिंग, कोंफेरेंस ,वीडियो  कॉल के ज़रिये हर दृश्य में नाटकीय तत्व पर बहस होती गयी और एकमत से रचना साकार होती गयी |
इन बच्चों को साइन लेंग्वेज आती है  और उसी में अपनी बात कहते हैं  आपस में भी और  सामान्य जन  से भी | इन बच्चों के आपसी  इशारों में गजब की तेज़ी होती है लेकिन भाव बहुत कम  होते हैं |  चुनौती यह थी कि यह  नाटक  बधिर जनों  के अलावा सामान्य लोगों के लिए  भी मंचित होना था जो इनकी साइन भाषा नहीं समझते |
इनकी  भाषा की गति को सामान्य बनाते हुए भावना के साथ अभिव्यक्ति(चेहरे की भाव ) को बढाकर सबको समझ में आने वाली भाषा का निर्माण ज़रूरी हो गया |    
इसी को ध्यान में रखकर नाटक की स्क्रिप्ट लेखन में हमें बहुत लौचपूर्ण बनना पड़ा |  केवल टर्निंग पॉइंट ( ख़ास अवसर) के लिए कुछ ही पात्रों को संक्षिप्त संवाद दिए गए जिससे नाटक से जुड़ाव बरकरार रहे | सम्राट विक्रम और राजा भोज  को तो संवाद दिए ही नहीं गए |  इस माइम मेलोड्रामा के सभी  दृश्य मूकाभिनय द्वारा ही मंचित किये गए |  जिन भी पात्रों को नेरेशन वोईस ओवर दिए गए थे उनसे उन संवादों पर केवल भावाभिव्यक्ति ही करवाई | लिप सिन्क्रोनाइजेशन का  कतई इस्तेमाल नहीं किया |   
कहानी बड़ी पेचदार थी जिसमें नाट्यशास्त्र के सभी रसों (जैसे अद्भुत,करुण, श्रृंगार,हास्य, वीर, रौद्र,बीभत्स,भयानक और शांत ) का समावेश था | यहाँ भावों की अभिव्यक्ति में  डिग्री की तकनीक ने मदद की .. खेल खेल में इनको किसी भी मानसिक स्थिति या भाव को ( जैसे ,डर, खुशी,आश्चर्य,करुणा,क्रोध  आदि ) को अभिव्यक्त करने के लिए डिग्री का अभ्यास कराया गया ताकि नाटक के दृश्य के मजमूम के अनुसार वे अपने हर इमोशन को न्यूनतम  ( एक डिग्री से )से  अधिकतम ( दस डिग्री तक )सहजता से  प्रकट कर सकें | गहरी सांस लेने के अभ्यास से इनके भावों को नियंत्रित करने का प्रयोग किया |
कहानी  शिक्षकों और बच्चों  को  समझाने के लिए स्केच , फोटो ,वीडियो के प्रयोग  हुए |   नवाचार के रूप में   रंग की ,आवाज़ की ,ताल की थेरेपी का खुल कर प्रयोग हुआ जिससे इन बच्चों में रंगमंच की समझ और  सम्प्रेषण बढाने की संभावनाओं को बढ़ाया  |
 पूरी टीम ने दर्पण प्रेक्षागृह जाकर उसकी ,बनावट आकार ,ध्वनि प्रकाश की सीमाओं को जाना | विचित्र सिंह ने  दर्पण मंच के स्केल को ध्यान में रखकर पूरे मंच डिजाइन का मोडल बनाया |  सेट,प्रोपर्टी और पात्रों के भी मोडल बनाए जिससे  हर पात्र के चरित्र, स्थान, स्थिति और मूवमेंट को समझाया गया | पार्श्व रंगमंच पर यह अनूठा प्रयोग ही था | विचित्र सिंह ने मंच के सेट और प्रोपर्टी को बखूबी से डिजाइन किया | उनके द्वारा बनाए गए सिंहासनों , पेड़, टीला, मास्क, औजार और वेशभूषा को बहुत आकर्षक बनाया |  कृष्णा काटे,मनीला सिंह,मोनिका ओझा और पिंकी कंवर ने सामग्री निर्माण में सहायता की |  माइम मेलोड्रामा के  निर्देशक सिराज भाटी  ने संगीत और एल ई डी स्क्रीन पर दिखाए दृश्यों की स्लाइड और चित्रों का शानदार चुनाव किया | तकनीकी पक्ष संभालने में जयेश शर्मा और दिव्येश लक्षकार ने सिराज भाटी का  ज़िम्मेदारी से  साथ निभाया | मेलोड्रामा के नेरेशन वोईस ओवर में सिराज भाटी ,मनीष शर्मा,रश्मी गुप्ता,माधुरी  गुहिल और प्रैसी विनोद,विनोद वसावे की जादुई आवाजों ने नाटक को जीवंत बनाया | घनश्याम महावर की कोरियोग्राफी का कमाल  गणेश वंदना, इन्द्रलोक के श्रृगार नृत्य और बुरी आत्माओं के रोमांचक  नृत्यों में देखने को मिला | बधिर बालाओं ने बिना चूके नृत्यों को भव्यता प्रदान की | जयपुर से आये मेकअप कलाकार सूर्यभान शिल्परह  औरओम के शानदार मेकअप ने प्रस्तुति को एक ऊंचाई दी |  
  64 विशेष बच्चों  ने मंच पर और 20 जनों की कर्मठ टीम ने मंच के पीछे का  काम  व्यावसायिक रंगमच टीम की तरह मुस्तैदी से संभाला | मंचन के दौरान कई बार बजी तालियाँ इस बात की गवाह थीं |  
 14 फरवरी,2025 को शिल्पग्राम के दर्पण प्रेक्षागृह में  सिंहासन बत्तीसी की इस  माइम मेलोड्रामा की प्रस्तुति ने दर्शकों को अचम्भित कर दिया | संवेदनशील दर्शक समुदाय ने बच्चों के पीठ थपथपाई और प्रकल्प से जुड़े निर्देशकों और विशेषज्ञों की भरपूर प्रसंशा की |   शिल्पग्राम के दर्पण प्रेक्षागृह में मंचित श्रेष्ठ नाटकों में इसकी गिनती करने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है | अभिलाषा विशेष विद्यालय की प्रिंसीपल पूजा अग्रवाल और उनके टीम बधाई की पात्र है |
विलास जानवे -- 


साभार :


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