जो शाश्वत, अजर, अमर है वो सनातन है: निम्बाराम

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Published on : 12 Feb, 25 17:02

भारत की मत पंथ परंपरा का मूल सनातन है: निम्बाराम

जो शाश्वत, अजर, अमर है वो सनातन है: निम्बाराम

उदयपुर। जब विश्व में असभ्यता थी तब भी भारत में ज्ञान था। भारत ने कभी विश्व पर अपना ज्ञान नहीं थोपा और ना ही आक्रमण किया। लेकिन आज विश्व पटल पर सनातन की व्यापक चर्चा है। यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक निम्बाराम ने प्रबुद्ध नागरिक गोष्ठी में कहीं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क विभाग द्वारा आयोजित प्रबुद्ध नागरिक गोष्ठी "सनातन के समक्ष चुनौतियां एवं हमारी भूमिका" का आयोजन बुधवार को सांयः प्रताप गौरव केंद्र के सभागार में किया गया। 

मुख्य वक्ता निंबाराम ने कहा कि राष्ट्र बनने जा रहे है या पहले से राष्ट्र थे? राष्ट्र का विभाजन हो रहा था, जबकि मांग अखण्ड भारत की थी। स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मनाया गया, तो यह विचार आया कि कितने सेनानियों ने अपना बलिदान दिया! अनसंग हिरोज को स्मरण करना, नई पीढी को बलिदान का स्मरण करना जरूरी है। 

"सबसू न्यारी धरती हिन्दुस्तान री"। 
आध्यात्मिक महापुरूषों के ज्ञान का विश्व ने अभिनन्दन किया। भारत की मत पंथ परंपरा का मूल सनातन है, ऐसी मान्यता है। शास्त्रार्थ विमर्श भी रहा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिन्दु एक जीवन पद्धति है। आज हिन्दु शब्द अधिक मान्य है। कभी आर्य के रूप में पहचान थी। वर्त्तमान परिस्थिति तकनीक व विज्ञान का समय है, नई पीढी के समक्ष इस स्वरूप में शोधपरक विचार रखना चाहिए। सभ्यताए बदलती रहती है, संस्कृति बनी रहती है।

संस्कृति व जीवन मुल्य एक है, पंथ - परंपराए अलग हो सकती है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारे डीएनए में है। भारत के संविधान में पंथनिरपेक्ष, हम भारत के लोग, अधिकार व कर्तव्य, चित्र, सनातन का प्रतिबिंब है। प्रचीन राष्ट्र के तत्व है। हुण कुषाण शक बाहरी समूह शासन के उद्देश्य से आये। परंतु भारतीय समाज ने आत्मसात कर लिया। इस्लाम का उद्देश्य मजहब का विस्तार था, इसके चलते जजिया कर लगाया गया। महिला दुष्कर्म, आस्था व सांस्कृतिक केन्द्रों को ध्वस्त किया गया। इस कालखंड में भारतीय समाज में रूढिया स्थापित हुई। 
जी 20 के मंच पर वैश्विक नेताओ के समक्ष भारत ने नालंदा विश्वविद्यालय के चित्र को प्रदर्शित किया एवं गौरवशाली इतिहास सबके सामने रखा गया।

इवेंजिकल फोर्सेज जब भारत आई तो भारत की एकत्व को देखकर अचंभित थे। उन्होनें भारतीय सभाज का व्यापक अध्ययन कर अलग-अलग पहचान स्थापित की गई और समाज को बांटा गया।

मैकाले की शिक्षा पद्धति ने अपने पूर्वजों कमतर बताकर टीचर को प्राथमिकता को बढ़ावा दिया गया। जिन्होने अंग्रेजो का विचार प्रचारित किया। इस विचार ने भारतीय पीढी की मन:स्थिति को बदलना प्रारंभ किया । स्व की त्रयी- स्वदेशी, स्वधर्म व स्वराज, से 1857 का स्वतंत्रता संग्राम हुआ।

1920 में नागपुर में कांग्रेस अधिवेशन में संघ संस्थापक केशव राव हेडगेवार ने समस्त व्यवस्थाएं संभाली। गांधीजी की अध्यक्षता में हो रहे अधिवेशन में डॉ हेडगेवार ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव रखने का आग्रह किया। 
लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव आया। तो संघ ने भी अपनी सभी शाखाओ में 26 जनवरी 1930 स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। 
स्वाधीनता के साथ देश का विभाजन हुआ। 

परिवर्तन समाज के बल पर आता है। भक्ति आंदोलन संतो के दम पर समाज परिवर्तन था। राजस्थान के लोकदेवताओ का समय एक स्वर्णिम पृष्ठ है। 
परतंत्रता के कारण हिनभावना समाज का स्वभाव बना दिया गया था। सरकार पर निर्भरता रही। सामाजिक स्तर पर सम्मानित जीवन हर वंचित समुह तक पहुंचा है। 

पराधीनता का प्रतीक अब तक क्यों? इन्हें बदलना आवश्यक है चाहे प्रतीक हो या नाम अब राजपथ कर्तव्य पथ है। ऐसे कई उदाहरण है, इसमें समाज को भी जुड़ना चाहिए हम तभी भावी पीढ़ी को गर्व महसूस करवा पाएंगे।

डीप स्टेट, परदे के पीछे से तंत्र को अस्थिर करने का वैश्विक विस्तारवादी शक्तियो का प्रभाव के समक्ष भी हम खडे है। मुगल अंग्रेज के दमनकारी शासन में भी हम समाप्त नहीं हुए। क्योंकि हम लडे संघर्ष किया। 
युवाओ को स्वतंत्रता के नाम पर बरगलाना, स्वच्छंदता के नाम पर भटकाया जा रहा। प्रचारित करके अपने समूह का विस्तार करने का उद्देश्य है। 
सांस्कृतिक प्रतीको को हटाने को लेकर आंदोलन करना। राखी, चरण स्पर्श, बिन्दी आदि पर हमला।

भारतीय अवधारणा को युगानूकूल व्याख्या नई पीढी के बीच ले जाना। वसुधैव कुटुंबकम, सर्वे भवन्तू सूखिन, अहिंसा परमो धर्म यह सब दर्शन विचार सनातन में है।

स्वाधीनता का अमृत महोत्सव। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर पंच प्रण का आह्वान किया विरासत पर गर्व, गुलामी की मानसिकता से निकलना, विकसित भारत का संकल्प, एकता व एकात्मकता और नागरिक कर्तव्य शामिल है। 

संघ सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने पंच परिवर्तन सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, स्वदेशी, पर्यावरण व नागरिक कर्तव्य का समाज से आग्रह किया गया।

कार्यक्रम में प्रदर्शनी
भारत के संविधान के बाईस चित्रों की व्याख्या सहित प्रदर्शनी लगाई गई एवं देवी अहिल्या बाई की जीवन पर प्रदर्शनी लगाई गई।

कार्यक्रम के प्रारंभ में विभाग सह कार्यवाह कौशल शर्मा ने प्रस्तावना रखी। अतिथि परिचय महानगर कार्यवाह विष्णु शंकर नागदा ने करवाया। कार्यक्रम का संचालन विष्णु मेनारिया ने किया। 
इस दौरान प्रान्त प्रचारक मुरलीधर, विभाग प्रचारक धनराज, विभाग संघचालक हेमेंद्र श्रीमाली, महानगर संघचालक गोविंद अग्रवाल उपस्थित थे।


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