वाग्वर अंचल का लोक साहित्य, भक्ति साहित्य हो या लोक जीवन, परिवेश, जीवन और जगत से जुड़े किसी भी पहलू से संबंधित साहित्य हो, हर क्षेत्र में यहां अपार सृजन क्षमताओं का व्यापक फलक देखने को मिलता है।
इसकी विशिष्टताओं, गूढ़ रहस्यों और सम सामयिक वैश्विक परिदृश्य तथा भावी परिस्थितियों की थाह पाते हुए इसे स्थानीय स्तर पर सीमित न रखकर देश-दुनिया के समक्ष लाए जाने की आवश्यकता है। अभी इस दिशा में कुछ फीसदी काम ही हो पाया है।
प्राचीन लोक साहित्य, भक्ति साहित्य और आध्यात्मिक रहस्यों से परिपूर्ण साहित्यिक विरासत के संरक्षण के साथ ही वृहत शोध-अनुसंधान के लिए उदारतापूर्वक इनके व्यापक प्रचार-प्रसार की महती आवश्यकता है।
लगभग तीन शताब्दियों पूर्व अवतरित त्रिकालज्ञ संत एवं दिव्य दृष्टा संत मावजी महाराज की भविष्यवाणियां और उनका अपरिमित साहित्य उनकी वह महानतम देन है जिस पर देशवासियों को अपार गर्व एवं गौरव के साथ हर क्षण कृतज्ञता ज्ञापित करने को उद्यत रहना चाहिए। उनकी भविष्यवाणियां नास्त्रादेम्स और भविष्यमालिका से भी कहीं अधिक सुस्पष्ट और सत्य की कसौटी पर खरी उतरने वाली हैं।
मावजी महाराज के विस्तृत साहित्य पर शोध की अनन्त संभावनाओं को रेखांकित करते हुए कहा जा सकता है कि मावजी रचित तमाम ग्रंथों, स्फुट सामग्री और चित्रात्मक साहित्य को संग्रहित कर इनका विशद् अध्ययन एवं टीका सहित सम्पूर्ण साहित्य का प्रकाशन किया जाना चाहिए।
इससे भक्ति एवं साहित्य के अनुसंधानार्थियों को अनुसंधान एवं शोध के लिए विस्तृत फलक एवं नवीन विधाएं उपलब्ध हो सकेंगी। इस विशिष्ट एवं महत्त्वपूर्ण साहित्य के विविध पक्षों से मौजूदा पीढ़ी को साक्षात् कराने और देश-विदेश में प्रसिद्ध किये जाने पर खास ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए।
दैवीय अवतार संत मावजी महाराज ने अस्पृश्यता, बुराइयों एवं कुरीतियों के निवारण, अन्त्योदय, दरिद्रनारायण की सेवा, भक्तिभाव और अध्यात्म के प्रति लोक रुझान में अभिवृद्धि आदि में उल्लेखनीय कार्यों के साथ ही साहित्य, चित्रकारिता और बहुआयामी कला वैशिष्ट्य से भी अच्छी तरह साक्षात्कार कराया। उनकी वाणियां आज भी प्रासंगिक हैं और इनके आधार पर मानवीय मूल्यों और नैतिक संस्कारों को सम्बल दिया जा सकता है।
ज्ञान और अनुभवों तथा अलौकिक दिव्यताओं से परिपूर्ण उनका साहित्य, चित्र और उपदेश आज भी ऊर्जा और प्रेरणा का संचार करने में समर्थ हैं।
संत माव साहित्य, मावजी के चौपड़ों को विश्व की अनूठी एवं रहस्यांं से परिपूर्ण ज्ञानराशि की संज्ञा के रूप में सर्वत्र स्वीकारा गया है।
आज आवश्यकता इस बात की भी है कि संत भक्त कवियों कबीर, दादू, नानक, संत दुर्लभजी आदि के कृतित्व से इनके तुलनात्मक अध्ययन एवं विश्लेषण के क्षेत्र में पहल को बढ़ावा दिया जाए।
संत मावजी के साहित्य, चौपड़ों एवं पाण्डुलिपियों में जीवन और जगत, पिण्ड और ब्रह्माण्ड के रहस्यों, सौन्दर्य, प्रकृति, श्रृंगार, भक्ति, वेदान्त एवं लोक पक्षों को स्पष्ट किया गया है।
भक्ति और श्रद्धा से दायरों में बंधे इस साहित्य को शोधार्थियों के लिए सुलभ कराया जाना चाहिए ताकि कालान्तर में यह अद्भुत ज्ञानराशि लुप्त न हो जाए।
मावजी साहित्य के संकलन और गहन अध्ययन के लिए व्यापक कार्ययोजना का क्रियान्वयन जरूरी है। माव साहित्य को विषयवार विभक्त कर इसके शोध को बढ़ावा दिए जाने के लिए विद्वजनों की संगोष्ठियां आयोजित करने की पहल स्वागत योग्य है।
प्रिन्ट मीडिया, इलैक्ट्रॉनिक मीडिया विशेषज्ञों के सहयोग से दुनिया भर में इनके व्यापक प्रचार-प्रसार की दिशा में अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। संत मावजी महाराज, बेणेश्वर धाम, मावजी की वाणियों, निष्कलंक अवतार, मावजी की भक्त परंपरा आदि पर विभिन्न विधाओं में चित्रात्मक साहित्य आम जन के सामने लाए जाने पर बल दिए जाने की भी आवश्यकता है।
मावजी की वाणियों, कथनों-उपदेशों, व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व आदि पर आधारित नाटक तैयार कराए जाने तथा वागड़ अंचल सहित देश के विभिन्न हिस्सों में नाट्य मंचन कराने के लिए योजनाबद्ध प्रयासों की आवश्यकता है। वागड़ अंचल में नाट्य विधा के विशेषज्ञों का इसमें सहयोग लिया जाना चाहिए।
इसके अलावा संत मावजी एवं बेणेश्वर धाम को केन्द्र में रखकर विभिन्न विधाओं में साहित्य सृजन के लिए कार्यशालाओं और प्रतिस्पर्धाओं के आयोजन के साथ ही परंपरागत एवं अत्याधुनिक तमाम प्रचार विधाओं के उपयोग मावजी साहित्य एवं मावजी दर्शन के प्रचार-प्रसार के लिए किए जाने पर सोचा जाना चाहिए।
संत मावजी के साहित्य एवं चित्रों से आम जनता को रूबरू कराने के उद्देश्य से प्रदर्शनियों का आयोजन होना चाहिए। इनमें संत मावजी आधारित स्केच, छायाचित्रों और पोस्टर्स के माध्यम से मावजी के जीवन एवं कार्यों की झलक दिखायी जा सकती है।
विदेशी जिज्ञासुओं एवं पर्यटकों को माव साहित्य से परिचित कराने आंग्ल और अन्य भाषाओं में तमाम सामग्री का लिप्यान्तरण भी होना चाहिए।
संत मावजी के प्रति अपार लोक श्रद्धा और आस्था का उपयोग करते हुए भगत सम्प्रदाय को प्रोत्साहित किया जाकर सामाजिक महापरिवर्तन को और अधिक तीव्रतर किया जा सकता है। मावजी की जीवनी और उनके प्रेरक साहित्य को पाठ्यक्रमों में उपयुक्त स्थान मिलना चाहिए ताकि नई पीढ़ी संत मावजी एवं यहां की पुरातन विरासत से अच्छी तरह परिचित होकर गौरव का अनुभव कर सके।