भारत में कई ऐसे अद्भुत पर्यटक स्थल हैं जो बच्चों को आनंदित करते हैं। इन्हीं में जयपुर का हवामहल भी है, जो अपनी खूबसूरत वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। यह विश्व की महत्वपूर्ण इमारतों में शामिल है और भारत की शान मानी जाती है। दूर-दूर से पर्यटक इसे देखने आते हैं। गुलाबी रंग की यह पांच मंजिला इमारत मुख्य सड़क से देखने पर राज मुकुट या कृष्ण मुकुट जैसी प्रतीत होती है।
जयपुर के महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने वर्ष 1799 में हवामहल का निर्माण करवाया था। वास्तुकार लालचंद उस्ताद ने इसकी भव्य डिजाइन तैयार की थी। लाल गुलाबी बलुआ पत्थर और चूने से बने इस महल में 953 जालीदार खिड़कियां और झरोखे हैं, जो इसे अद्वितीय बनाते हैं। प्रत्येक खिड़की पर नक्काशीदार जालियां, कंगूरे और छोटे गुम्बद इसकी सुंदरता बढ़ाते हैं। विशेष अर्द्ध-अष्टभुजाकार झरोखों के कारण इस महल के अंदर हमेशा ठंडी हवा बहती रहती है, जिससे इसे ‘हवामहल’ नाम मिला। यह भारत का संभवतः पहला ऐसा भवन है, जिसे बिना नींव के बनाया गया है। इसकी ऊंचाई 87 फीट (26.51 मीटर) है, और इसमें राजपूत व मुगल स्थापत्य कला का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
हवामहल, सिटी पैलेस का ही एक भाग है। इसमें प्रवेश सिटी पैलेस की ओर स्थित एक शाही दरवाजे से किया जाता है। यहां सीढ़ियों की जगह सपाट रैंप बनाया गया है, जिससे बच्चे और बड़े आसानी से ऊपरी मंजिल तक जा सकते हैं। हवामहल के अंदर खिड़कियों से झांकने और ठंडी हवा का आनंद लेने का अलग ही अनुभव होता है, खासकर गर्मियों में भी यहां ठंडक बनी रहती है।
हवामहल बनवाने के पीछे यह कारण था कि पुराने समय में राजघराने की महिलाएं पर्दा प्रथा के कारण सार्वजनिक रूप से बाहर नहीं जा सकती थीं। राजा ने यह भवन इसलिए बनवाया ताकि महिलाएं खिड़कियों और झरोखों से बाहर की गतिविधियों, जुलूसों और समारोहों को देख सकें। यह भवन राधा-कृष्ण को समर्पित है और इसमें तीन प्रमुख मंदिर – गोवर्धन मंदिर, प्रकाश मंदिर और हवा मंदिर स्थित हैं।
हवामहल में प्रवेश करते ही भू-तल पर एक संग्रहालय है, जहां जयपुर क्षेत्र से जुड़े प्राचीन पत्थर, लोहे के औजार, मिट्टी और पत्थर की मूर्तियां, हथियार, चित्रकला और हस्तशिल्प के सुंदर नमूने प्रदर्शित हैं। यहां आकर बच्चे ऐतिहासिक धरोहरों और कला के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।