बच्चों में नैतिकता सिखाती बाल पद्य कथाएं

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Published on : 20 Jan, 25 05:01

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

बच्चों में नैतिकता सिखाती बाल पद्य कथाएं

आओ सोचें: बरसों पहले, एक साथ खड़े रहने वाले / कैसे बन गए भिन्न-भिन्न, वाणी में कहने वाले / इन तोतों की यही कहानी, हमको यह बतलाती है / जैसा संग करोगे वैसा, रंग चढ़ेगा - दिखलाती है।

यह पंक्तियां पद्य कथा "सदा अच्छा संग करो" की हैं, जिसे बाल कवि रामेश्वर शर्मा 'रामू भैया' ने सु कंठी और सुपंखी दो तोतों को केंद्र में रखकर लिखा है। इस पद्य कथा में बच्चों को यह संदेश दिया गया है कि अच्छी संगत में रहना चाहिए, क्योंकि बुरी संगत का परिणाम हमेशा बुरा होता है।

भलाई का फल मीठा होता है
"भलाई करोगे तो भलाई मिलेगी" इस पद्य कथा की पंक्तियां देखिए:
और निकाला जिस किसान ने, उसका घुसा हुआ वह शूल / इतने बरसों बाद भी जिसको, शेर नहीं सका था भूल / उस किसान को देख शेर को, सारा मंजर याद आया / इसीलिए तो आज शेर ने, उस हलदार को ना खाया।

इस कथा में बताया गया है कि किसान ने एक बार घायल शेर के पैर से कांटा निकाला था। वर्षों बाद, जब राजा ने किसान को मृत्यु दंड देकर शेर के सामने फेंक दिया, तो शेर ने उसकी भलाई को याद रखते हुए उसे खाया नहीं। संदेश स्पष्ट है—जीवन में भलाई करोगे तो उसका फल हमेशा मीठा होगा।

सफलता की कुंजी
यह पद्य कथा मेहनत के महत्व को समझाती है। बालक वरदराज पत्थर पर रस्सियों के निशान देखकर अपनी हीन भावना त्याग देता है और परिश्रम के बल पर महान ग्रंथ की रचना करता है।

अहंकार है बुरी बात
इस कथा में पानी और अग्नि की बहस को केंद्र में रखा गया है। अग्नि को पानी छूते ही वह शांत हो जाती है। कथा की शिक्षा है कि व्यर्थ का अहंकार नहीं करना चाहिए।
प्यारे बच्चों अहंकार में, जो करते हैं व्यर्थ प्रलाप।
वे करते हैं हानि स्वयं की, मर जाते हैं अपने आप।

रामू भैया ने ऐसी 14 शिक्षाप्रद पद्य कथाओं का संग्रह "बाल पद्य कथा संग्रह" नाम से 2021 में प्रकाशित किया। हर कथा चार-चार पंक्तियों के दोहों में आगे बढ़ती है, जो कविता और कहानी का अनूठा संगम प्रस्तुत करती है।

पुस्तक में "राजा रंतिदेव का प्रजा प्रेम," "मातृ शक्ति," और "परहित ही मानव धर्म" जैसी तीन पद्य कथाएं उत्तर प्रदेश के कक्षा 5, 6 और 8 के पाठ्यक्रम में तीन वर्षों तक शामिल रहीं, जो इसकी महत्ता को दर्शाती हैं।

पद्य कथाओं का उद्देश्य
इस संग्रह की सभी कथाएं बच्चों में नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना करती हैं। "अंधविश्वास का फल," "मूल्य से बड़ी उपयोगिता," "मेहनत का धनमूल," "चोरी करना पाप," "जैसी संगत वैसा फल," और "सदा अच्छा संग करो" जैसी कहानियां मानवीय संदेश देती हैं। सरल, मनोरंजक और हृदयग्राही भाषा में ये कथाएं बच्चों और किशोरों के लिए अत्यंत उपयोगी हैं।

वर्तमान समय में, जब माता-पिता के पास बच्चों में नैतिकता और मानवीय मूल्य सिखाने का समय नहीं है, यह पुस्तक एक मार्गदर्शक के रूप में काम करेगी। पुस्तक की भूमिका राजस्थान बाल साहित्य अकादमी के सदस्य भगवती प्रसाद गौतम ने लिखी है, और इसमें पूर्व महापौर महेश विजय का संदेश भी शामिल है।

 


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