पुरातत्वविद् स्वर्गीय रमेश वारिद की चयनित कृतियों का संकलन उनकी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और पुरातात्विक समझ को समर्पित एक अद्भुत प्रयास है। यह पुस्तक उनके बौद्धिक कौशल, अथक परिश्रम, और लेखन शैली को दर्शाती है। उनकी कृतियों को खोजने और उन्हें एकत्रित करने का कार्य उनके पुत्र, प्रसिद्ध कथाकार और समीक्षक विजय जोशी ने बड़े परिश्रम से किया।
पुस्तक का मुख्य विषय
पुस्तक में 47 महत्वपूर्ण आलेख संकलित हैं, जो शोधार्थियों के लिए अमूल्य हैं। इसमें हाड़ौती अंचल की पुरातात्विक, स्थापत्य, और सांस्कृतिक संपदा के विविध पहलुओं को दर्शाया गया है। आलेखों के माध्यम से पाठक को ऐसा अनुभव होता है, मानो स्वयं रमेश वारिद उनसे संवाद कर रहे हों।
प्रमुख आलेखों की झलक
वेदों से लेकर राजस्थान के स्वतंत्रता संग्राम तक, यह आलेख रमेश वारिद की व्यापक सोच और गहन अनुसंधान का परिचय देते हैं। "वैदिक काल के देवी-देवता," "अग्नि देवत्व," और "शैव धर्म और संस्कृति" जैसे आलेख उनकी आध्यात्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि को प्रकट करते हैं। वहीं, "राष्ट्रीय चेतना और राजस्थान के समाचार पत्र" और "1857 के संग्राम के महान योद्धा बखूतार सिंह राठौर" जैसे लेख भारतीय इतिहास की गहराई में ले जाते हैं।
हाड़ौती अंचल की सांस्कृतिक झलक
रमेश वारिद ने हाड़ौती अंचल के लोक जीवन, कला, और संस्कृति पर गहरी दृष्टि डाली। "नाथद्वारा चित्र शैली के विकास," "हाड़ौती के भित्ति चित्र," और "गणगौर चित्रांकन" जैसे आलेख उनकी कलात्मक दृष्टि को दर्शाते हैं। इसके साथ ही, "भंडदेवरा के निर्माण पर नई शोध," "झालावाड़ संग्रहालय की दुर्लभ प्रतिमाएं," और "काकुनी की सहस्त्रमुखी शिवलिंग प्रतिमा" जैसे लेख पुरातत्व में उनके योगदान को उजागर करते हैं।
पुस्तक का आकर्षक संपादन
पुस्तक का संपादकीय भाग पाठकों में रुचि जगाने का कार्य बखूबी करता है। लेखक ने आलेखों को इस प्रकार प्रस्तुत किया है कि शोधकर्ता और इतिहास प्रेमी दोनों को ही यह पुस्तक गहराई से प्रभावित करती है।
विशेषताएं और परिशिष्ट
पुस्तक में रमेश वारिद और विजय जोशी के परिचय पर विशेष परिशिष्ट दिए गए हैं। अंतिम पृष्ठ पर बाड़ोली मंदिर का आकर्षक आवरण और गुप्तकालीन दरा मंदिर के स्तंभों के साथ रमेश वारिद का चित्र पुस्तक की शोभा बढ़ाता है।
पुस्तक का नाम:
पुरातत्वविद् रमेश वारिद: चयनित आलेख सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक वैभव