सत्संग संकीर्तन से भगवान श्री कृष्ण की प्राप्ति संभव

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Published on : 09 Jan, 25 07:01

सत्संग संकीर्तन से भगवान श्री कृष्ण की प्राप्ति संभव

बांसवाड़ा।
इस्कॉन की ओर से विशेष सत्संग संकीर्तन और श्री कृष्ण कथा अमृत का आयोजन बुधवार शाम को डायलाब रोड स्थित भारती विद्या मंदिर शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय के सभागार में परम पूज्य भक्ति आश्रय वैष्णव महाराज ने मानव जीवन का उद्देश्य विषयक प्रेरक प्रसंग सुनाए। इस अवसर पर भगवान योगेश्वर श्री कृष्ण भावनामृत और भागवत के प्रसंगों के द्वारा जीवन को सहज बनाने का आह्वान किया।

उन्होंने भक्ति मार्ग को सबसे सरल मार्ग बताया और नाम जप को आत्मसात कर जीवन का कल्याण करने को कहा। इससे पूर्व इस्कॉन से जुड़े श्रद्धालुओं ने हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम, राम राम हरे का सामूहिक संकीर्तन किया और इस दौरान कई साधक- साधिकाएं श्रद्धालु भाव विभोर होकर देर रात तक भक्तिमय होकर झूमते रहे।

समारोह में उपस्थित लोगों ने अपनी जिज्ञासाएं भी विभिन्न प्रश्नों के माध्यम से शांत की। वहीं गुरुवार प्रातः ठिकरिया स्थित इस्कॉन मंदिर निर्माण भूमि का निरीक्षण कर आगामी योजनाओं पर स्थानीय इकाई से विशद चर्चा कर दिशा-निर्देश दिए गए। समापन पर प्रसाद का आयोजन भी हुआ।

प्रातः सुभाष नगर प्रोफेसर कॉलोनी स्थित इस्कॉन केन्द्र बांसवाड़ा में मेवाड़ ज़ोन सुपरवाइजर परम पूज्य वैष्णव आश्रम स्वामी महाराज की अगुवाई में समारोहपूर्वक कृष्ण भावनामृत भक्ति साधना एवं चार नियमों के बारे में बताया और 17 साधकों को दीक्षा देने हेतु आवश्यक परिचय प्राप्त किया।

वृंदावन से आए पूज्य भक्ति आश्रय वैष्णव महाराज ने जनजातीय अंचल वागड़ में भगवान योगेश्वर श्री कृष्ण भक्ति का प्रचार-प्रसार ही योग, कर्म, ज्ञान योग का मुख्य सूत्र बताया। साधना सत्संग, भक्ति के कृष्ण भावनामृत नाम जप के मुख्य स्तंभ हैं।

स्वामी ने कहा कि अनिश्चित जीवनकाल में जितनी जल्दी हो सके कृष्ण भक्ति का आश्रय ले और पाप कर्मों से बचे, सत्कर्मों में जीवन यापन करें, यही श्रीमद्भगवद्गीता जीवन का अमूल्य सार है।

उन्होंने कहा कि विज्ञान कहता है, "पूर्णम दम पूर्ण मिदं पूर्णात पूर्णम उदच्यते। पूर्णस्य एव पूर्णमादाय पूर्ण मेव अव शिष्यते।" पूर्ण से मन का जन्म हुआ है, इसलिए पूर्णता उसका स्वभाव है। उसी पूर्णता की खोज में मन बाहर भागता है और पूर्णता की खोज अपने करणों द्वारा—ज्ञानेन्द्रियां और कर्मेन्द्रियां करता है।

उन्होंने कहा कि मन का स्वभाव ही ऐसा होता है कि वह हर चीज को बाहर ही खोजता है, और तृषित रहना मन का स्वभाव है। वह कभी तृप्त नहीं होता।

मन और बुद्धि के बारे में भी उन्होंने गहरे विचार व्यक्त किए।

समारोह में उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों और श्रद्धालुओं ने आनंद लिया।


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