राजस्थान में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने सरकारी योजनाओं के प्रभावी प्रचार-प्रसार के लिए एक अभिनव कदम उठाया है। सरकार "नव प्रसारक नीति" का शुभारंभ करने जा रही है, जिसका उद्देश्य समाज के अंतिम व्यक्ति तक योजनाओं को पहुंचाना और अंत्योदय के लक्ष्य को साकार करना है। इस नीति के तहत सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को जोड़ा जाएगा, जो जनकल्याणकारी योजनाओं की जानकारी आम जनता तक पहुंचाने में मदद करेंगे।
इस नई नीति के अनुसार, हर जिले में श्रेणी ए और श्रेणी बी में दो प्रकार के नव प्रसारकों का चयन किया जाएगा। श्रेणी ए में एक लाख से अधिक सब्सक्राइबर या फॉलोअर्स वाले सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को शामिल किया जाएगा, जबकि श्रेणी बी में 7,000 से 1 लाख तक फॉलोअर्स वाले इन्फ्लुएंसर्स होंगे। ये नव प्रसारक फेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सरकार की योजनाओं से जुड़ी पोस्ट रोजाना अपलोड करेंगे और सरकारी हैंडल्स की पोस्ट्स को री-शेयर करेंगे।
राज्य सरकार का सूचना एवं जन संपर्क विभाग (डीआईंपीआर) इन नव प्रसारकों के कार्यों की निगरानी करेगा। साथ ही, नव प्रसारकों को कंटेंट क्रिएशन, वीडियो-ऑडियो एडिटिंग, एसईओ, सोशल मीडिया मैनेजमेंट और ब्रांडिंग जैसी स्किल्स सिखाने में भी मदद दी जाएगी।
प्रचार के बदलते स्वरूप
स्वतंत्रता के बाद से प्रचार-प्रसार के पारंपरिक माध्यम जैसे मेले, नुक्कड़ नाटक, कठपुतली प्रदर्शन, गोष्ठियां, और कवि सम्मेलन, राज्य सरकार के प्रमुख साधन रहे हैं। इसके बाद फिल्म प्रदर्शन, विकास प्रदर्शनियां, और रेडियो-टेलीविजन जैसे माध्यमों का प्रयोग शुरू हुआ। डिजिटल युग में ईमेल, डिजिटल प्रेजेंटेशन और सोशल मीडिया ने प्रचार के नए आयाम स्थापित किए हैं। आज सोशल मीडिया ने संचार के क्षेत्र में क्रांति ला दी है, जहां हर ताजा खबर पलक झपकते ही मोबाइल स्क्रीन पर उपलब्ध हो जाती है।
हालांकि, सोशल मीडिया के युग में यह जरूरी है कि पारंपरिक और गैर-पारंपरिक साधनों को भी नजरअंदाज न किया जाए। राजस्थान जैसे बड़े राज्य के मरुस्थलीय और आदिवासी क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी अब भी एक चुनौती है। इन इलाकों में प्रचार के परंपरागत साधन आज भी प्रभावी हैं।
नव प्रसारक नीति का भविष्य
राज्य सरकार के सीमित संसाधनों के बावजूद, सूचना एवं जन संपर्क विभाग ने कई नवाचार किए हैं। इनमें टेलीफोन खंभों पर लाउडस्पीकर लगाकर समाचार सुनाने जैसे प्रयोग शामिल हैं, जो कर्फ्यू और आपात स्थितियों में प्रभावी साबित हुए हैं। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के माध्यम से सरकार की योजनाओं को दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुंचाने का यह प्रयोग कितना सफल होता है।