शाहपुरा, मूलचन्द पेसवानी
शाहपुरा के खानिया का बालाजी मंदिर परिसर में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के तीसरे दिन बुधवार को जगतगुरु परमहंसाचार्य स्वामी दयानंद सरस्वती ने श्रीमद भागवत के विभिन्न प्रेरणादायक प्रसंगों का उल्लेख किया। इस अवसर पर शाहपुरा के जिला कलेक्टर राजेंद्र सिंह शेखावत ने भी कथा स्थल पर पहुंचकर स्वामीजी का आशीर्वाद लिया। कार्यक्रम आयोजक भंवरलाल शंभुलाल सेन ने जिला कलेक्टर का स्वागत और सम्मान किया। शिक्षा विभाग के पूर्व उपनिदेशक तेजपाल उपाध्याय ने स्वामी का परिचय प्रस्तुत किया।
कथा के दौरान स्वामी दयानंद सरस्वती ने बताया कि किसी भी स्थान पर बिना निमंत्रण जाने से पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वहां अपमान की संभावना न हो। उन्होंने सती चरित्र के प्रसंग का उदाहरण देते हुए कहा कि भगवान शिव की बात नहीं मानने पर सती को अपने पिता के घर जाकर अपमानित होना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें अग्नि में आत्मसमर्पण करना पड़ा। यह प्रसंग सिखाता है कि स्वाभिमान और सम्मान की रक्षा के लिए सही निर्णय लेना आवश्यक है।
स्वामीजी ने उत्तानपाद के वंश में ध्रुव चरित्र की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि कैसे ध्रुव की सौतेली मां सुरुचि के अपमानजनक व्यवहार के बावजूद उसकी मां सुनीति ने धैर्य नहीं खोया। इस धैर्य ने परिवार को संकट से बचाया। उन्होंने कहा कि परिवार और समाज में शांति बनाए रखने के लिए धैर्य और संयम अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ध्रुव के तप और भगवान श्रीहरि को प्रसन्न करने की कथा के माध्यम से उन्होंने भक्ति के महत्व को रेखांकित किया और बताया कि भक्ति के लिए कोई आयु बाधा नहीं है। बचपन में भक्ति की प्रेरणा देना सबसे उपयुक्त है, क्योंकि यह उम्र कच्ची मिट्टी की तरह होती है।
स्वामीजी ने अजामिल उपाख्यान का उल्लेख करते हुए कहा कि श्रीमद भागवत में पाप से मुक्ति के लिए प्रायश्चित को सर्वोत्तम उपाय बताया गया है। कथा में प्रह्लाद चरित्र का विस्तार से वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि भगवान नृसिंह का लोहे के खंभे से प्रकट होना यह दर्शाता है कि भगवान हर जगह विद्यमान हैं। प्रह्लाद की दृढ़ आस्था और विश्वास ने उन्हें संकटों से उबारा।
कार्यक्रम में जिला कलेक्टर राजेंद्र सिंह शेखावत ने श्रीमद भागवत को पांचवां पुराण बताया। उन्होंने कहा कि धर्म का सार सार्वभौमिक सत्य है, और श्रीमद भागवत गीता उसी सत्य का सार प्रस्तुत करती है। कलेक्टर ने कहा, गीता हमें मर्यादा, आचरण, समर्पण और प्रेम का पाठ सिखाती है। उन्होंने संतों को समाज का सर्वोच्च मार्गदर्शक बताते हुए कहा कि उनका सम्मान करना सभी का कर्तव्य है। कलेक्टर शेखावत ने कहा कि अधिकारी और राजा सीमित दायरे में कार्य करते हैं, लेकिन संत समाज को सही दिशा देने का काम करते हैं। उनका मार्गदर्शन समाज के नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को उन्नत करता है। उन्होंने सभी से आग्रह किया कि वे धर्म के सार्वभौमिक सत्य को आत्मसात करें और समाज में सकारात्मकता फैलाने का प्रयास करें। कलेक्टर शेखावत ने कहा कि श्रीमद भागवत कथा का यह आयोजन न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने का एक प्रयास है। स्वामी दयानंद सरस्वती के प्रेरणादायक वचनों ने श्रोताओं को जीवन में धैर्य, भक्ति और सही आचरण का महत्व समझाया।