अजमेर-किशनगढ़ हाईवे की दुखद अग्निकांड घटना ने उठाए सुरक्षा पर सवाल

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Published on : 22 Dec, 24 23:12

विशेष टिप्पणी:गोपेन्द्र नाथ भट्ट

अजमेर-किशनगढ़ हाईवे की दुखद अग्निकांड घटना ने उठाए सुरक्षा पर सवाल

अजमेर-किशनगढ़ हाईवे पर हाल ही में हुए गैस टैंकर अग्निकांड ने राजस्थान में सड़क सुरक्षा और हाईवे के बुनियादी ढांचे पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। राजस्थान हाईकोर्ट ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि ज्वलनशील गैस और रसायनों जैसे खतरनाक पदार्थों को घनी आबादी वाले क्षेत्रों से दूर ले जाया जाए। साथ ही पुलों और फ्लाईओवरों के निर्माण कार्य को तय समय सीमा में पूरा करने और खतरनाक पदार्थों के परिवहन के लिए अलग मार्ग तय करने की नीति बनाने पर भी जोर दिया गया है।

अधिकारियों को यह भी निर्देश दिए गए हैं कि इस हादसे में जान गंवाने वाले, घायल हुए और जिनकी संपत्ति को नुकसान पहुंचा है, उनके परिवारों को पर्याप्त मुआवजा दिया जाए। अदालत ने हाईवे पर ब्लैक स्पॉट और खतरनाक यू-टर्न की पहचान कर वहां चेतावनी बोर्ड लगाने की प्रक्रिया पर भी जवाब मांगा है। अदालत ने कहा कि यदि सरकार सड़क सुरक्षा को लेकर उचित कदम उठाती, तो इस प्रकार की दुर्भाग्यपूर्ण घटना से बचा जा सकता था। हर साल हजारों लोग इन खतरनाक मोड़ों और ब्लैक स्पॉट्स के कारण अपनी जान गंवा देते हैं।

अव्यवस्थित सड़क व्यवस्था

इस घटना ने हाईवे पर राष्ट्रीय राजमार्गों के लिए तय मानकों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जयपुर-किशनगढ़ हाईवे, जिसे राष्ट्रीय राजमार्ग का दर्जा प्राप्त है, आज स्थानीय सड़कों जैसा दिखता है। जगह-जगह अनियोजित कट होने के कारण वाहन कभी भी हाईवे पर प्रवेश और निकास कर सकते हैं, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है।

2003 में जब यह छह लेन हाईवे बना, तो इसे राजस्थान की सड़क क्रांति का प्रतीक माना गया। लेकिन बढ़ते ट्रैफिक के अनुसार इसे चौड़ा या उन्नत नहीं किया गया। भांकरोटा के पास जहां यह हादसा हुआ, वहां नवंबर 2020 में जयपुर रिंग रोड से ट्रैफिक के लिए एक कट बनाया गया था। यह कट मार्च 2023 में बंद होना था, लेकिन क्लीवर लीफ फ्लाईओवर का काम पूरा न होने के कारण इसे खुला रखा गया। इसके कारण यहां लगातार छोटे-मोटे हादसे होते रहे।

कार्रवाई की मांग

बगरू उद्योग मित्र के संयोजक नवीन झालानी ने बताया कि वे इस कट को बंद करने की मांग पिछले दो साल से कर रहे हैं। हालांकि, फ्लाईओवर का काम पूरा न होने की वजह से उनकी मांग को अनदेखा कर दिया गया। यह हादसा 2009 में सांगानेर, जयपुर में इंडियन ऑयल डिपो में हुए बड़े अग्निकांड की याद दिलाता है, जिसमें 12 लोगों की जान चली गई थी और सैकड़ों लोग घायल हुए थे।

विशेषज्ञों की राय

विशेषज्ञों का कहना है कि केंद्र सरकार और पेट्रोलियम मंत्रालय को ज्वलनशील पदार्थों के परिवहन के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनानी चाहिए। इसके तहत इन वाहनों के आगे और पीछे पुलिस एस्कॉर्ट की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि दुर्घटनाओं की संभावना को कम किया जा सके।

अब सवाल यह है कि राजस्थान सरकार, केंद्र सरकार और संबंधित मंत्रालय इस हादसे से सबक लेकर भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या ठोस कदम उठाएंगे। क्या इन घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए निर्णायक नीति बनाई जाएगी?


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