उदयपुर। जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण और समाज में बदलाव लाने का संदेश देने वाली 90 वर्षीय श्रीमती सुमन भार्गव ने मृत्यु के बाद देहदान करने की इच्छा व्यक्त की थी, जिसे उनके पुत्रों ने पूर्ण कर एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया।
श्रीमती सुमन भार्गव, पत्नी स्वर्गीय श्री ओमप्रकाश भार्गव, का मानना था कि समाज में रीति-रिवाजों के साथ सकारात्मक बदलाव जरूरी हैं। उनका विचार था, "जितनी आवश्यकता हमें विज्ञान की है, उतनी ही आवश्यकता विज्ञान को हमारी भी है।" इन्हीं विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने देहदान का निर्णय लिया।
परिवार की प्रेरणा और समर्थन
उनके पुत्र अनुपम भार्गव (सेवानिवृत्त स्टेट बैंक अधिकारी) और कर्नल निरुपम भार्गव (सेवानिवृत्त सेना अधिकारी) ने अपनी माता की इस इच्छा को गर्व के साथ पूर्ण किया। उनकी बहू, डॉ. सुनीता भार्गव, गीतांजली मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर हैं। परिवार ने यह भी बताया कि वे अंगदान करना चाहती थीं, लेकिन चिकित्सकीय स्थिति के कारण यह संभव नहीं हो सका।
गीतांजली मेडिकल कॉलेज का योगदान
इस अवसर पर जीएमसीएच की डीन डॉ. संगीता गुप्ता, एडिशनल प्रिंसिपल डॉ. मनजिंदर कौर, एनाटॉमी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रकाश के.जी., ब्रांडिंग एवं पी.आर. मैनेजर हरलीन गंभीर, स्टाफ, विद्यार्थी, और भार्गव समाज के सदस्य बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
देहदान: समाज और विज्ञान के लिए प्रेरणा
मृत्यु के बाद शरीर दान करना समाज और विज्ञान के लिए एक अनमोल उपहार है। इससे भविष्य के डॉक्टरों और नर्सों को प्रशिक्षण, सर्जन को कौशल विकास, और वैज्ञानिक अनुसंधान में सहायता मिलती है।
कौन कर सकता है देहदान?
18 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी भारतीय नागरिक, जो कानूनी सहमति देने में सक्षम है, देहदान के लिए पंजीकरण कर सकता है। यदि पंजीकरण नहीं किया गया हो, तो परिवार के सदस्य मृत्यु के बाद देहदान कर सकते हैं।
संपर्क जानकारी:
अधिक जानकारी के लिए गीतांजली मेडिकल कॉलेज के शरीर रचना विभाग से संपर्क किया जा सकता है।