गीता जयन्ती पर हुआ भारतीय ज्ञान परंपरा केन्द्र का उद्घाटन

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Published on : 11 Dec, 24 12:12

गीता जयन्ती पर हुआ भारतीय ज्ञान परंपरा केन्द्र का उद्घाटन

श्री  गोविन्द गुरु राजकीय महाविद्यालय में भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय की पहल पर और आयुक्तालय काॅलेज शिक्षा के आदेशानुसार भारतीय ज्ञान परंपरा केन्द्र का उद्घाटन किया गया। उद्घाटन कार्यक्रम के अध्यक्ष प्राचार्य प्रो.कल्याणमल सिंगाड़ा रहे । मुख्य वक्ता जयप्रकाश जोशी ज्योतिषाचार्य थे। अतिथि अभिनन्दन निमाय, गोरांगदास , प्रो.सीमा भूपेन्द्र व प्रो.किरण पूनिया थे। सर्वप्रथम मंचासित महानुभावों ने पूजन व दीपप्रज्वलन किया। विषय प्रतिपादन साहित्यिक-सांस्कृतिक समिति प्रभारी और भारतीय ज्ञान केन्द्र के जिला नोडल अधिकारी प्रो.राजेश जोशी ने किया। उन्होंने भारतीय सनातन ज्ञान परंपरा को रेखांकित करते हुए श्रीमद्भागवतगीता को मानव धर्म का  प्रतिस्थापक ग्रंथ और मानवधर्म की आचार संहिता बताया। सभागार में उपस्थित छात्रों ने जीव सृष्टि कल्याण के संवाहक गीता के १२वे अध्याय के श्लोकों का संगीतमय पाठ किया। प्रारंभ में नन्ही सी बालिका नियुक्ति व्यास ने गीता के पांच श्लोकों का मौखिक पाठ


किया। 

भारतीय ज्योतिष सत्य और विशुद्धि पर आधारित संपूर्ण विज्ञान - जोशी 

 मुख्य वक्ता जयप्रकाश जोशी ने ज्ञान और सूचना के अन्तर को स्पष्ट किया । व्यावहारिक रूप से ज्योतिष की संकल्पना को लोक से जोड़कर विषय को आकर्षक बनाया । विसुड़ो ,ज्वार भाटा, प्रसव काल में अंधकार ,चावल चढ़ाना आदि परंपराओं की वैज्ञानिकता प्रमाणित की । उन्होंने सनातन श्रुत परंपरा, वेद , उपनिषद आदि ग्रंथों की प्रासंगिकता बताई। श्री जोशी ने ज्योतिष को सभी पारिवारिक संबंधों से जोड़ते हुए उसका महत्त्व निरुपित करते हुए कहा कि भारतीय ज्योतिष एक संपूर्ण विज्ञान है जो पूर्ण सत्य और विशुद्धि पर आधारित है। इसके खगोल विषयक आंकड़े और गणित दृष्ट हैं जबकि फलित ज्योतिष अदृष्ट है। निरंतर साधना, शुचिता और अनवरत शोध परीक्षणों से इसका क्रमिक विकास हजारों वर्ष पहले से होता रहा है। देखने की ज्योति इसी ज्योतिष विज्ञान से प्राप्त होती है। उदित होते सूर्य की रश्मियों में मृत्यु के समस्त कारणों का निदान छिपा हुआ है। इसरो और नासा भी वेदों का निरंतर अध्ययन करते रहे हैं। यह वैज्ञानिक तथ्य है कि ब्रह्मांड की हर वस्तु न्यूनतम ऊर्जा में स्थित रहकर ही अधिकतम स्थिर रह सकती है इसीलिए सभी ग्रह गोलाकार होकर स्थितास्थिर रहते हैं। हमारे प्राचीन ऋषियों ने हजारों वर्ष पूर्व बिना किसी दूरदर्शी यंत्र के ही ग्रहों की गणना उनका मूल स्वभाव, स्थिति और आपसी दूरी को इसी सूक्ष्म ज्योतिष विज्ञान के द्वारा हृदय से जान लिया। आधुनिक विज्ञान आज भी ज्योतिष के आगे बौना है। ज्योतिष विज्ञान में सूर्य सिद्धांत ईसा मसीह से भी हजारों वर्ष पूर्व का है। इसके बाद आर्यभट्ट, भास्कराचार्य, ब्रह्मगुप्त, वराहमिहिर जैसे विलक्षण ऋषियों ने पृथ्वी के सिद्धांत को परिष्कृत किया। गुरुत्व बल सिद्धांत के तथाकथित आविष्कारक न्यूटन से पूर्व ही इसकी खोज हजारों वर्ष पूर्ण हो चुकी थी। न्यूटन ने स्वयं यह स्वीकार किया था कि भारतीय ज्योतिष विज्ञान अद्भुत है। पाश्चात्य विद्वान् खगोल शास्त्र को विज्ञान की श्रेणी में तो रखते हैं किन्तु भारतीय ज्योतिष को मान्यता की श्रेणी में रखकर भारतीय ज्ञान परम्परा और उसकी श्रेष्ठता को कमतर आंकते हैं। आधुनिक विज्ञान में आज भी कई सूत्र ऐसे हैं जिनमें निरंतर बदलाव होता रहता है जबकि हजारों वर्षों बाद भी ज्योतिष विज्ञान के सूत्रों में लेशमात्र भी बदलाव नहीं हुआ है यह तथ्य इसके शाश्वत विज्ञान होने के को प्रमाणित कर देता है।
 इससे पूर्व प्रथम सत्र को विशिष्ट अतिथि अभिनन्दन निमाय ने गीता जयंती पर केन्द्रित करते हुए कहा कि गीता मन को शान्ति देने वाला ग्रंथ है। श्रीमद्भगवद्गीता कर्म का संदेश देती है। इस्कॉन के संचालक श्री गौरांग ने गीता के माध्यम से मन की इन्द्रिय नियंत्रण अवस्था को प्रस्तुत किया । प्रो. सीमा भूपेन्द्र ने परंपरा के सम्मान पर बल दिया । कार्यक्रम का संचालन डाॅ.लोकेन्द्र कुमार ने किया व आभार श्री प्रकाश किंकोड़ ने माना। इस कार्यक्रम में महाविद्यालय के संकाय सदस्य प्रो.अंजना रानी, सहाचार्य रामरज सिंह , डॉ शफकत राणा, प्रो.आशीष कुमार, डॉ लक्ष्मण सरगडा ,डॉ फिरोज खान ,डॉ अजरा परवीन ,श्रीमती लीना, डॉ नीरज , डॉ जाकिर हुसैन, श्री किन्शुक शर्मा, अभिषेक सिंह, मुरलीधर मीणा, कुलदीप सिंह,  जितेंद्र  कलाल, रोहित कुमार, योगेश कुमार, डॉ अर्पिता, दीप्ति कलाल, डॉ हर्षिता, डॉ परशुराम डांगी,डॉ सहदेव पारीक, डॉ सचिन दीक्षित, डॉ संदीप कुमावत, शुभम पंचाल, जयंती लाल शर्मा और सैकड़ों छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।


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