ईश्वर: सृष्टिकर्ता और अनादि सत्ता
इस संसार का निर्माण अनादि काल से सृष्टिकर्ता, सर्वशक्तिमान ईश्वर द्वारा किया गया है। पदार्थों के निर्माण और स्वरूप परिवर्तन के लिए एक कर्ता का होना आवश्यक है। ठीक वैसे ही जैसे भोजन बनाने के लिए सामग्री के साथ एक ज्ञानयुक्त रसोइए की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार, सृष्टि का निमित्त कारण सर्वज्ञ ईश्वर और उपादान कारण प्रकृति है।
ईश्वर का स्वरूप और सृष्टि की रचना
ईश्वर, प्रकृति, और जीव तीनों अनादि और नित्य तत्व हैं। ईश्वर प्रकृति से विकार उत्पन्न कर महतत्त्व, अहंकार, पांच तन्मात्राएं, पांच महाभूत, और अन्य 23 विकारों के माध्यम से सृष्टि का निर्माण करते हैं। यह स्पष्ट करता है कि ईश्वर चेतन और सर्वज्ञ है।
चेतन और ज्ञानस्वरूप ईश्वर
ईश्वर चेतन सत्ता है, जो ज्ञान और शक्ति से परिपूर्ण है। जड़ प्रकृति निर्जीव और ज्ञानहीन है। परमात्मा अपने अनादि ज्ञान और शक्ति से सृष्टि का निर्माण, पालन और प्रलय करते हैं। ध्यान और समाधि के माध्यम से योगी ईश्वर का साक्षात्कार करते हैं, जिससे उनकी भ्रांतियां दूर होती हैं।
आनंदस्वरूप ईश्वर
ईश्वर का आनंद स्वाभाविक और अनादि है। यह सुख अन्य भौतिक सुखों से श्रेष्ठ और स्थायी है। गहरी निद्रा में जीवात्मा को जो सुख मिलता है, वह ईश्वर के सान्निध्य का ही अनुभव है। भौतिक सुख अस्थायी हैं, लेकिन ईश्वर की भक्ति और समाधि द्वारा स्थायी आनंद प्राप्त किया जा सकता है।
मोक्ष: आत्मा का परम लक्ष्य
वेदाध्ययन और योग के माध्यम से आत्मा ईश्वर के चिर आनंद को प्राप्त कर मोक्ष की अवस्था तक पहुंचती है। यह अवस्था आत्मा का चरम लक्ष्य है, जहां उसे सभी भ्रमों और कष्टों से मुक्ति मिलती है।
निष्कर्ष
ईश्वर सत्य, चेतन, और आनंदस्वरूप हैं। उनका साक्षात्कार आत्मा को सर्वोच्च तृप्ति और मोक्ष प्रदान करता है। यह लेख वेदमार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है, जो जीवन को पूर्णता की ओर ले जाता है।
ओ३म् शम्।