तकनीक ने बदले रिश्तों के मायने...

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Published on : 25 Nov, 24 09:11

- अतुल मलिकराम (लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार)

तकनीक ने बदले रिश्तों के मायने...

आज का युग टेक्नोलॉजी का युग है। हर व्यक्ति के हाथ में स्मार्टफोन और हर घर में इंटरनेट की सुविधा है। टेक्नोलॉजी ने हमें कई नई सहूलियतें दी हैं, जिनके कारण हमारे कई काम सरल हो गए हैं। चाहे दुनियाभर की खबरें हों, शिक्षा हो या रोजगार, सब कुछ एक क्लिक की दूरी पर है। लेकिन इस टेक्नोलॉजी ने हमारे बीच कुछ ऐसे अनदेखे फासले भी खड़े कर दिए हैं, जिनके बारे में हमने कभी सोचा नहीं था। परिवार में रहने वाले सदस्य पास होते हुए भी भावनात्मक रूप से एक-दूसरे से दूर होते जा रहे हैं।  
टेक्नोलॉजी के इस युग ने अपनों के बीच दूरियां बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पहले भले ही सुविधाओं का अभाव था लेकिन दिलों में एकता, प्रेम और अपनापन था। जैसे-जैसे सुविधाएँ बढ़ती गई हम गैरों के करीब तो आए लेकिन अपनों से ही दूर हो गए । आज हालात ये हैं कि दुनियाभर में क्या चल रहा है ये तो हमें पता है लेकिन घर में रहने वाले सदस्यों के सुख-दुःख की ही हमें खबर नहीं है। 
पहले परिवारों में परंपरा थी कि घर के सभी लोग साथ समय बिताया करते थे। साथ बैठकर खाना खाते, त्यौहार मनाते इस समय घर के सभी सदस्य अपने सुख दुःख बांटते, हंसी मजाक करते थे, जिससे परिवार में आत्मीयता बढ़ती थी। लेकिन जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी ने पैर पसारे ये नजारे कल्पना बन गए । आज इतना समय किसी के पास नहीं कि परिवारजनों के साथ बैठ कर खाना खाए या सुख-दुःख बांटे। जो कभी गलती से परिवार के साथ बैठ भी गए, तो सामने बैठे व्यक्ति के दिल का हाल सुनने का समय नहीं है। हर कोई अपने-अपने मोबाइल में व्यस्त मिलता है। हम टेक्नोलॉजी के जाल में इस तरह उलझते जा रहे हैं कि हमें इसका एहसास तक नहीं हो रहा। कहने को तो टेक्नोलॉजी ने पूरी दुनिया हमारी मुट्ठी में कर दी है। दूरी शब्द का नामोनिशान ख़त्म सा हो गया है। लेकिन इस टेक्नोलॉजी का ही ये प्रभाव है कि हमें अपने करीबी या परिवारजन के जीवन की उलझनों का ही पता नहीं है क्योंकि वो किसी सोशल मिडिया साइट पर उपलब्ध नहीं है। 
टेक्नोलॉजी की दीवानगी इतनी है कि चाहे कैसे भी माहौल में बैठे हो, पास बैठा व्यक्ति चाहे कितनी भी जरुरी बात बता रहा हो। मोबाइल का एक नोटिफिकेशन ध्यान भटकानेसब कनेक्टेड के लिए काफी है। फिर ना माहौल की संजीदगी का ध्यान रहता है ना सामने बैठे व्यक्ति के बात की महत्वता रहती है। हर कोई अपनी आभासी दुनिया में खोया हुआ है। 
ये स्थितियां साफ बताती हैं कि टेक्नोलॉजी पास ला रही हो या नहीं लेकिन दूरियां जरुर बढ़ा रही है। ये दूरियां अकेलापन पैदा कर रही है। अकेलापन अन्य समस्याओं का कारण बन रहा है। हर कोई अपनी दुनिया में ही लगा हुआ है। कहने को भले ही सब कनेक्टेड हैं,  लेकिन असल में किसी को किसी से कोई मतलब नहीं। त्यौहार, मंगल कार्य, और ख़ुशी के मौके अब अनजान लोगों के लाइक और कमेन्ट के मोहताज हो गए हैं। पर अपनों की सहमती की अब आवश्यकता नहीं रही।     
वैसे तो टेक्नोलॉजी का सही इस्तेमाल हमारे जीवन को बेहतर बना सकता है, लेकिन यह हमें अपनों से दूर भी कर सकता है। इस दौर में हमें जरूरत है कि हम अपनी प्राथमिकताएं तय करें और आभासी और वास्तविक दुनिया के बीच में संतुलन बना के चलें। जहाँ मौका मिले वहाँ अपनों के साथ समय बिताने का अवसर न छोड़ें। त्यौहारों और खास मौकों पर मोबाइल से ज्यादा महत्व परिवार को दें। आखिर टेक्नोलॉजी कितनी ही उन्नत हो जाए अपनों   के साथ बैठकर बातें करने, उनके सुख-दुख में सहभागी बनने में जो सुख है उसकी बात ही अलग है। अगर हम संतुलन बनाकर चलें, तो टेक्नोलॉजी का लाभ भी उठा सकते हैं और रिश्तों की मिठास भी बरकरार रख सकते हैं।
 


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