कुमेश जैन की डॉक टिकटों के संग्रह से बनी "प्रदूषण पर विराम - पृथ्वी को आराम" पुस्तक  वर्तमान हालातों में बनी प्रासंगिक 

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Published on : 18 Nov, 24 12:11

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

कुमेश जैन की डॉक टिकटों के संग्रह से बनी "प्रदूषण पर विराम - पृथ्वी को आराम" पुस्तक  वर्तमान हालातों में बनी प्रासंगिक 

देश विदेश में कई लोग विभिन्न तरह की डॉक टिकटों का संग्रह करते है । स्कूलों में किसी प्रॉजेक्ट के अंतर्गत और डॉक टिकटों का शौकिया संग्रह तक तो यह बात ठीक लगती है लेकिन कुछ लोगों को यह शौक दिवानगी की हद तक होता है और वे अपनी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा डॉक टिकटों के संग्रह पर ही व्यय कर देते है। वहीं कई लोग पेशेवर ढंग से डॉक टिकटों का संग्रह कर उसे अपनी आमदनी का एक बड़ा जरिया भी बना लेते हैं। कतिपय लोगों को डॉक टिकटों का संग्रह करने से न केवल शोहरत मिलती है बल्कि कई अवार्ड और पुरस्कार भी हासिल होते है तथा राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी एक नई पहचान भी स्थापित होती हैं।

कतिपय लोग डॉक संग्रह केवल शौकिया अथवा कोई शोहरत पाने के लिए नहीं करते वरन उनका ऐसा करने के पीछे एक निहित उद्देश्य छुपा हुआ होता है। एक उद्देश्यपरक भावना के साथ किया गया उनका डॉक संग्रह भविष्य में न केवल एक ऐतिहासिक दस्तावेज बन जाता है बल्कि यह समाज, देश और दुनिया को एक सन्देश और शिक्षा देने वाला प्रेरक प्रसंग और कृत्य भी बन जाता है।

ऐसे ही एक डॉक संग्रहकर्ता है छत्तीसगढ़ के कुमेश कुमार जैन जिन्हें बचपन से ही डॉक टिकटों का संग्रह करने का ऐसा जुनून है कि जब भी कोई नई टिकट जारी होता है अथवा फर्स्ट कवर जारी होता है,सबसे पहले वे उसे खरीदने पहुंच जाते है और वे टिकट्स उनके डॉक संग्रह एलबम का अभिन्न हिस्सा बन जाते है। कुमेश कुमार के पास हजारों डॉक टिकटों का संग्रह है। उनके डॉक टिकट्स के इस अथाह सागर में हर विषय से जुड़े टिकट्स है।

प्रारंभ में कुमेश भी अन्य लोगों की तरह ही शौकिया तौर पर डॉक संग्रह करते थे लेकिन कालांतर में वे इसे लेकर बहुत गंभीर हो गए और उनके मन में यह विचार घर कर गया कि वे इन डॉक टिकट्स के माध्यम से समाज को विशेष कर नई पीढ़ी को एक संदेश देने और शिक्षित करने का काम कर सकते है। उन्होंने तय किया कि वे इस दिशा में आगे बढ़ेंगे और अंततोगत्वा उनकी इस दृढ़ इच्छा को पंख लग ही गए जिसके परिणाम स्वरूप हाल ही उनकी डॉक टिकटों पर आधारित एक पुस्तक "प्रदूषण पर विराम - पृथ्वी को आराम"  प्रदूषण खत्म करें भाग -1 इन दिनों काफी चर्चित हो रही है। यूं कहें कि हकीकत में यह पुस्तक एक सच्चे धरतीपुत्र की सच्ची भावना को भी प्रतिबिंबित  कर रही है। इस पुस्तक में भारत सहित विभिन्न देशों के पर्यावरण से जुड़े विषयों पर जारी टिकटों का सचित्र वर्णन समाहित हैं। कुमेश के पास डॉक  टिकटों के साहित्य पर एक ऐसा अद्भुत दस्तावेज संग्रह उपलब्ध है जिसमें से एक अंश को वे इस पुस्तक के माध्यम से लोगों तक पहुंचा रहे हैं।

कुमेश की यह पुस्तक ग्लोबल वार्मिंग के वर्तमान समय में और भी अधिक प्रासंगिक और उपयोगी हो गई है। भारत में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और उसके आसपास के इलाके दीपावली के बाद लाखों पटाखों के जलने और हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तरप्रदेश में खेतों में जलाएं जाने वाली पराली के कारण जिस प्रकार के वायु प्रदूषण से ग्रसित हो जाते है और यहां की आबो हवा में दम घुटने वाली जहरीली हवा आम लोगों का जीना दुश्वार कर देती है तथा उसे नियंत्रित करना भारत सरकार और राज्य सरकारों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होता। वृक्षारोपण, डीजल वाहनों पर प्रतिबंध और सीएनजी वाहनों के प्रचलन जैसी लाख कोशिशों के बावजूद जन सैलाब के दवाब के नीचे दबी दिल्ली सर्दियों के आगमन के साथ ही फॉग कोहरे और प्रदूषित हवा के मिश्रण से स्मॉग में बदल जाती हैं। इसके साथ ही वायु गुणवत्ता और सड़क, रेल  और हवाई सेवाओं के आवागमन की दृश्यता भी  बद से बदतर हो जाती है। दिल्ली को दुनिया के सभी देशों में सबसे हरी भरी राजधानी माना जाता है लेकिन वायु,जल,ध्वनि आदि विभिन्न प्रदूषणों के कारण पर्यावरण के आदर्श मापदंडों पर इसका फिसड्डी रहना 140 करोड़ भारतीयों को शर्मशार करने वाला हैं।

कुमेश ने डॉक टिकटों के संग्रह पर आधारित अपनी इस पहली पुस्तक "प्रदूषण पर विराम पृथ्वी को आराम" के माध्यम से अपने ज्ञान और डॉक टिकटों के संग्रह के जुनून को दुनिया के सामने लाने का सराहनीय प्रयास किया हैं। 
हिंदी और अंग्रेजी में प्रकाशित कुमेश की इस पुस्तक में देश दुनिया के आम आवाम को ग्लोबल वार्मिंग के खतरों और लोगों के जीवन और स्वास्थ्य को बचाये रखने तथा गंभीर रोगों से बचाव के प्रति सावचेत किया गया है। साथ ही पुस्तक भावी पीढ़ी को पर्यावरण को स्वच्छ बनाने रखने की दिशा में अनवरत कार्य करने की प्रेरणा भी देती हैं। इस पुस्तक के माध्यम से उन्होंने भारत के नागरिकों, केन्द्र एवं राज्य सरकारों और प्रशासन से अपील की है कि वे भूमि पर अधिक से अधिक पेड़ लगवाएं। साथ ही देश में स्वच्छता को जन आन्दोलन बनाने और प्रदूषण मुक्त रखने के उपायों को प्रोत्साहित करने और पेड़ काटने को अपराध घोषित करें। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किए गए एक पेड़ मां के नाम और स्वच्छता मिशन अभियान के लिए देश वासियों की ओर से कृतज्ञता व्यक्त की हैं।

कुमेश ने इस पुस्तक की सरंचना करने में  अपना उदार योगदान देने वाले व्यक्तियों विशेष कर उनको डॉक टिकटों के चित्रों के मूल्यवान संग्रह का कम्पायलेशन के लिए सहयोग करने वालों के प्रति अपना हार्दिक आभार एवं धन्यवाद व्यक्त्त किया हैं । कुमेश ने कैप्टन विजय वाधवा का विशेष रूप से आभार व्यक्त्त किया, जिन्होंने उन्हें इस पुस्तक को लिखने के विचार को मूर्त  रूप प्रदान करने और पुस्तक की तैयारी के प्रत्येक चरण में असाधारण समर्थन देने के साथ ही पुस्तक के प्रकाशन में पूर्ण सहयोग दिया I इनके अलावा वे ओमी बागड़िया, पूर्व जनससंर्क निदेशक राजस्थान डॉ अमर सिंह राठौड़,वीणा म्यूजिक के प्रबंध निदेशक हेमजीत मालू, चैनल इंडिया के संपादक पवन दुबे, जे.आर. सोनी, दुर्गा जैन, यामिनी जैन,दीक्षा डागा, पृथ्वीराज जैन, ए.के. चौहान,सौम्या जैन, डी. के. महेश्वरी, नव भारत के संपादक राजेश जोशी , इंडिया टुडे के  पुरुषोत्तम दिवाकर ,जय कांठल के संपादक महावीर मोदी,पत्रकार राजेश अग्रवाल,अक्षय डागा और लेखिका डॉ स्नेहलता पाठक, उषा गोलछा,भारती कटारिया तथा जन संपर्क विशेषज्ञ जी एन भट्ट को उनके समर्थन,मार्गदर्शन और प्रकाशन पर उपयोगी सुझावों के लिए आभार ज्ञापित करते है ।

कुमेश कुमार जैन के निजी जीवन की कहानी भी बहुत रोमांचित करने वाली हैं। कुमेश ने अपने माता-पिता को बहुत ही कम उम्र में ही खो दिया था। कुमेश को अपने माता-पिता से दूर होने के बाद उनके नाना छौगालाल अमरचंद सुराणा ने छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव की सांकरा नगरी में पाला पोसा । उन्होंने राजनांदगांव के देवानंद जैन स्कूल में शिक्षा दीक्षा प्राप्त की। कालांतर में  किशोरीलाल जी बगड़िया परिवार के स्नेह और समर्थन से कुमेश ने हिंदी में स्रातकोत्तर की शिक्षा ग्रहण की । कृषि विज्ञान में शिक्षा की पृष्ठभूमि वाले कुमेश को डॉक टिकट संग्रह (फिलेटली) के प्रति रुचि बचपन से ही शुरू हो गई थी। वे रायपुर फिलेटलिक कौंसिल के संस्थापक सचिव बने जहां उन्होंने डाक टिकट प्रदर्शनियों,व्याख्यानों और समारोहों के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस कार्य में उन्हें ओमी वगड़िया के नेतृत्व में धर्मेंद्र जैन, सुरेश छत्री, कुमुद लाड, अल्ताफ एच अब्बासी (हरख ग्राम केंदरिया), सुरेन्द्र गोयल जैसे प्रमुख फिलेटलिस्टों और संपादकों गोविंदलाल बोरा और ललित सुरजन का समर्थन और प्रोत्साहन मिला। 

कुमेश की फिलेटली के प्रति लगन,परिश्रम और  प्रतिबद्धता ने जे.एन. पांडे स्कूल पर एक विशेष कवर के विमोचन का मार्ग प्रशस्त किया। इस कवर का लोकार्पण भारत के उपराष्ट्रपति द्वारा किया गया। छत्तीसगढ़ के गांधी  सुंदरलाल शर्मा पर तत्कालीन सूचना एवं संचार मंत्री अर्जुन सिंह द्वारा एक स्मारक डॉक टिकट जारी करने की घोषणा की गई और उसका विमोचन भी किया गया । कुमेश ने तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल जैसे प्रभावशाली नेता के नेतृत्व में रायपुर को फिलेटेलिक ब्यूरो दिलाने में भी अभूतपूर्व सफलता हासिल की।

एक फिलेटलिस्ट के साथ- साथ कुमेश ने रायपुर में लोढ़ा भाईपा समुदाय के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया है और वे भारतीय भाषा और संस्कृति के प्रति समर्पित संगठनों में महत्वपूर्ण पदों पर रहे।  कुमेश ने दैनिक नवभारत के विशेष संवाददाता के रूप में भी कार्य किया तथा दिल्ली में विश्व डॉक टिकट प्रदर्शनी को कवर किया, जिससे उन्हें वैश्विक संस्कृतियों और सभ्यताओं की गहरी समझ प्राप्त हुई। इससे उनकी फिलेटली के प्रति रुचि और गहरी हो गई तथा उन्होंने डॉक टिकटों और पुस्तकों का एक बड़ा संग्रह एकत्रित किया। कुमेश को फ्रांस, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और ताशकंद में आयोजित अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों में अपने संग्रह  को प्रदर्शित करने का अवसर भी मिला। इसमें उन्हें तत्कालीन पोस्ट मास्टर जनरल जी वी एस राव, डॉक निदेशक काठोड़े  एवं  त्रिपाठी जैसे अनेक अधिकारियों का भरपूर सहयोग मिला। कुमेश कुमार जैन बहु आयामी व्यक्तित्व के धनी हैं। उनकी विविध विषयों में गहरी रुचि और बेबाक अभिव्यक्ति के साथ मुक्त भाव का हंसमुख स्वभाव उन्हें अलग व्यक्तित्व का इंसान बनाता है। कुमेश भारतीय भाषा एवं संस्कृति संगम के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी है। हिंदी कविता, साहित्य, संगीत और पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनका अनुराग छुपाए नहीं छुपता हैं। उन्होंने अपनी अनेक विदेश यात्राओं में मॉरिशस के राष्ट्रपति और लंदन के मेयर सहित कई देशों के राजदूतों, राजनयिकों और गणमान्य व्यक्तियों से मुलाकात की है।  

कुमेश अपने  परिवार के सभी सदस्यों  विशेष कर अपनी अर्धांगिनी दुर्गा लोढ़ा के प्रति कृतज्ञ    साथ ही पुत्र एवं पुत्रियों के सहयोग के लिए भी उनका धन्यवाद करते है जिन्होंने पिछले कई वर्षों से डॉक टिकटों के संग्रहण और इस पुस्तक परियोजना पर अपनी जुनूनी रुचि, लगन और व्यस्ताओं को धैर्यपूर्वक सहन किया। कुमेश कुमार जैन (लोढ़ा) छत्तीसगढ़ की राजधानी  रायपुर के निवासी है।

उनकी हिंदी और अंग्रेजी भाषा की पुस्तकें इमेजोंन और अन्य ऑन लाइन साइट्स पर भी उपलब्ध हैं। भविष्य में  उनका फेसबुक टू बुक का विचार है जिसमें एक फेसबुक पर लिखे गए बाल पर आधारित है जिसके माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों के बारे में जानकारी दी गई है और अब इसे शीघ्र ही एक बुक के रूप में भी लाया जा रहा है। उम्मीद है फिलेटली और साहित्य के क्षेत्र में कुमेश की यह लंबी यात्रा नई पीढ़ी को प्रेरणा देती रहेंगी।


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