1980 के दशक में जब मैंने लिखना शुरू किया था, कोटा के कुछ लेखकों के नाम देश भर की पत्र- पत्रिकाओं में देखने को मिल जाते थे। उनमें दुर्गाशंकर त्रिवेदी, प्रेमजी प्रेम, रामकुमार, वीणा गुप्ता, घनश्याम वर्मा के साथ प्रभात कुमार सिंघल का नाम भी था। पर्यटन स्थलों पर लिखना उन्हें प्रिय था। उस समय वो कोटा में सहायक जनसंपर्क अधिकारी के पद पर कार्यरत थे।
इसी विभाग से संयुक्त निदेशक पद से 2013 में सेवानिवृत्त होने के बाद भी उन्होंने लेखन निरंतर रखा। पिछले दिनों उन्होंने साहित्य और साहित्य साधकों पर लगातार लिखा। पत्रकारिता की दृष्टि से संपन्न एक निरंतर सृजनरत व्यक्ति कोटा के साहित्य जगत् को मिला। यह कोटा के साहित्य जगत् के लिए एक नई उपलब्धि सरीखा था, क्योंकि सक्रिय साहित्यकार प्रायः अपने और अपनों के बारे में लिखना/ लिखवाना पसंद करते हैं लेकिन डाॅ प्रभात कुमार सिंघल ने कोटा के सभी साहित्यकारों के बारे में लिखने का संकल्प लिया और फेसबुक पर लिखी सामग्री को पुस्तक रूप में छपवाया भी।
पिछले दिनों इसी क्रम में उनकी पुस्तक 'नारी चेतना की साहित्यिक उड़ान' छपी। इस पुस्तक के लिए अपेक्षित सामग्री जुटाने में उन्होंने बहुत प्रयास किए। मैं स्वयं इसका साक्षी रहा हूँ जब वो राजस्थान की वरिष्ठ कवियित्री और मेरी माँ श्रीमती प्रेमलता जैन के बारे में वांछित जानकारी लेने इस वय में भी एक सुबह घर पधारे। बाद में।मुझे वाॅट्जएप पर संदेश भेजकर भी उन्होंने बहुत सारी जानकारी चाही। ये प्रयास उनकी प्रतिबद्धता के परिचायक थे।
यह पुस्तक ऐसी 81 महिला रचनाकारों के बारे में जानकारी देती है, जिनका संबंध हाड़ौती अंचल से है/ या रहा है। कुछ नाम बहुत चर्चित हैं। कुछ नाम सक्रिय रचनाकारों के लिए भी अजाने हैं। प्रभात कुमार जी उन तक पहुँच सके, इसके लिए उन्हें साधुवाद दिया जाना चाहिए। पुस्तक में रचनाकारों की रचनाधर्मिता की समीक्षा नहीं है, उसका परिचय भर है। लेकिन संदर्भ के लिए यह एक महत्वपूर्ण प्रकाशन है।
पुस्तक में रचनाकारों का परिचय उनके नाम के अनुसार अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार हैं। लेखक की बहुत कोशिशों के बावजूद हमारे दौर के कुछ चर्चित नाम इसमें छूट गये हैं। इनमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कोटा का प्रतिनिधित्व करने वाली एकता शबनम, 80 के दशक की लोकप्रिय कवयित्री पूर्णिमा शर्मा, पूनम श्रीवास्तव, लीला मोदी अंग्रेजी और हिन्दी में लिखने- छपने वाली ॠतु जोशी, पूनम मेहता, सिद्धायनी जैन जैसे नाम शामिल हैं। मैं लेखक से अपेक्षा करूँगा कि यदि भविष्य में पुस्तक के पुनर्प्रकाशन का योग बने तो एक विशेष खंड उन महिला रचनाकारों पर भी हो जो अब दुनिया में नहीं हैं। इससे नई पीढ़ी को शकुंतला रेणु , कमला कमलेश, कमला शबनम, पार्वती जोशी, डाॅ प्रेम जैन, सरला अग्रवाल, पारस दुलारी आदि के अवदान को भी जानने का मौका मिलेगा।
डाॅ प्रभात कुमार सिंघल अपने सहज और सादा लेखन से अंचल की महिला रचनाकारों के अवदान को रेखांकित करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास किया है। उन्हें साधुवाद ।