राजस्थान के एक और फायर ब्रांड नेता की प्रतिष्ठा इस बार हैं दांव पर

( 1099 बार पढ़ी गयी)
Published on : 05 Nov, 24 08:11

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

भारत निर्वाचन आयोग ने विभिन्न राजनीतिक दलों की मांग पर केरल, उत्तरप्रदेश पंजाब आदि प्रदेशों में आने वाले दिनों में महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन आदि को मद्देनजर उप चुनाव की तिथियों को 13 नवम्बर से 20 नवम्बर कर दिया है लेकिन राजस्थान में सात विधानसभा सीटों पर आगामी 13 नवम्बर को ही विधानसभा उपचुनाव होंगे ।
राजस्थान में हो रहें उप चुनाव की सात सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी अपनी- अपनी जीत के दावे कर रही है। कहने को तो ये छोटा चुनाव है लेकिन, कांग्रेस से ज्यादा राज्य की भाजपा सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। क्योंकि इस उपचुनाव के परिणाम की गूंज पूरे देश में जाएगी। राजनीतिक जानकारों के अनुसार भजनलाल सरकार के लिए यह उप चुनाव लिटमस टेस्ट माना जा रहा है। हालांकि, इस उपचुनाव में हार-जीत पर भजनलाल सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि सरकार के पास वर्तमान में बहुमत से ज्यादा विधायक है लेकिन, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यदि भाजपा इन सात सीटों में से एक से अधिक सीटों पर बीजेपी हार जाती है तो मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा  के सामने कई प्रकार के संकट खड़े हो जायेगे और प्रदेश में प्रतिपक्ष कांग्रेस सहित पार्टी में उनका विरोधी खेमा भी सक्रिय हो जाएगा। इसका असर राज्य सरकार की सेहत पर भी पड़ेगा।

प्रदेश के इन उप चुनावों में भजन लाल सरकार के सबसे वरिष्ठ मंत्री डॉ किरोड़ी लाल मीणा की तरह प्रदेश के एक और नेता राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी ) सुप्रीमों सांसद हनुमान बेनीवाल पर भी सभी की निगाहें गढ़ी हुई  क्योंकि राज्य के नागौर जिले की खींवसर विधानसभा से हनुमान बेनीवाल ने अपने उत्तराधिकारी के रुप में अपनी धर्मपत्नी पत्नी कनिका बेनीवाल को आरएलपी उम्मीदवार बना चुनाव मैदान में उतारा हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल इस सीट पर मामूली अन्तर से चुनाव जीते थे लेकिन बाद में लोकसभा चुनाव लड़ उनके सांसद बन जाने से यह सीट रिक्त होने से यह उप चुनाव हो रहे है।

मूलतः भाजपा से ताल्लुक रखने वाले हनुमान बेनीवाल भी डॉ किरोड़ी लाल मीणा की तरह फायर ब्रांड नेता माने जाते है। उन्होंने भी तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से बगावत कर भाजपा से अलग होकर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी आर एल पी बनाई और भाजपा के साथ कांग्रेस के लिए भी सरदर्द बन गए। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में वे पुनः भाजपा के नेतृत्व वाली एन डी ए के उम्मीदवार बन नागौर से सांसद बने लेकिन किसान आंदोलन के मुद्दे पर उन्होंने एन डी ए से हाथ खींच लिया तात्विक बार फिर भाजपा के विरोधी खेमे में खड़े हो गए। उन्होंने पिछला लोकसभा चुनाव भी कांग्रेस की अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन के साथ लड़ा और सांसद बन गए।

खींवसर विधानसभा का चुनाव हनुमान बेनीवाल के लिए एक बड़ी चुनौती माना जा रहा है। इसकी वजह एक समय उनके निकट साथी रहे रेवतराम डांगा को भाजपा ने अपना उम्मीद्वार बनाया हैं। डांगा के बीजेपी की ओर से मैदान में उतरने से है मुकाबला और कड़ा एवं दिलचस्प हो गया हैं। इधर कांग्रेस ने भाजपा से इस्तीफा देकर आए रिटायर्ड आई जी पुलिस सवाई सिंह चौधरी की पत्नी डॉ रतन सिंह को चुनाव में उतारा है। इस बार इंडिया गठबंधन के साथ समझौता नहीं होने से हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका खींवसर सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले का सामना कर रही हैं। बीजेपी से मिल रही कड़ी टक्कर के बीच उन्हें इस बार कांग्रेस का भी समर्थन नहीं मिलना काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है। हनुमान बेनीवाल ने पिछले तीन चुनाव खींवसर विधानसभा सीट से ही जीते है। अब सांसद बनने के बाद उपचुनाव में  यदि बेनीवाल अपनी पत्नी कनिका को चुनाव नहीं जितवा पाए तो उनके लिए  यह बहुत बड़ा धक्का लगने वाली बात होगी। राजनीतिक  जानकारों का भी मानना ही कि ज्यादातर युवा मतदाताओं वाली इस विधानसभा सीट पर पिछले पांच साल में हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी को मिला समर्थन फीका पड़ता नजर आ रहा  है। 2018 में उनकी पार्टी के इस जात बाहुल्य इलाके में तीन विधायक थे लेकिन अब वे अपनी इकलौती सीट खींवसर को बचाने की भी
लड़ाई लड़ रहे हैं।

इस परिदृश्य में यह उप चुनाव हनुमान बेनीवाल के लिए एक कठिन परीक्षा बन गया है तथा इस उप चुनाव में डॉ किरोड़ी लाल मीणा की तरह बेनीवाल की अपनी  प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई हैं। हनुमान बेनीवाल अपने क्षेत्र के मतदाताओं से कह रहे है कि अगर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) इस सीट से चुनाव हार गई तो उनके राजनीतिक जीवन के 20 साल का संघर्ष खत्म हो जाएगा।  हनुमान बेनीवाल ने खींवसर में चुनाव प्रचार के दौरान कहा कि अगर मैं उनकी पत्नी यह चुनाव हार गई तो लोग कहेंगे कि हनुमान 20 साल लड़ा और यह चुनाव हार गया। अब चूंकि इस जात बेल्ट में आरएलपी के पास एक मात्र सीट खींवसर ही बची है तो इसे बचाए रखना उनके लिए बेहद जरूरी हो गया है। अगर उनकी पत्नी यह चुनाव हार जाती हैं तो राजस्थान में हनुमान बेनीवाल की पार्टी का सफाया तय माना जा रहा है। भाजपा भी इस बार मौके को भुनाने के लिए तैयार दिख रही है। इसलिए यह लड़ाई बेनीवाल के लिए अपने वर्चस्व को बचाने की लड़ाई मानी जा रही है।

अब यह देखनादिलचस्प  हो गया है कि आने वाले दिनों में यह चुनाव किसके वर्चस्व की लाज रखेगा?


साभार :


© CopyRight Pressnote.in | A Avid Web Solutions Venture.