राजस्थान विधानसभा सभा की सात सीटों पर होने वाले उप चुनावों में राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन राठौड़ के साथ ही भजन लाल मंत्रिपरिषद के सबसे वरिष्ठ मंत्री डॉ किरोड़ी लाल मीणा के अलावा प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत,पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट आदि की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। इनके अलावा क्षेत्रीय दलों के नेता आरएलपी के सुप्रीमो सांसद हनुमान बेनीवाल तथा भारतीय आदिवासी पार्टी (बाप) के सुप्रीमों सांसद राजकुमार रोत की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह उप चुनाव इन नेताओं के अस्तित्व का फैसला भी करेंगे। राजस्थान में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में विधानसभा के उप चुनाव हो रहे है।
उप चुनावों के बारे में अक्सर कहा जाता है कि इसमें प्रायः सत्ताधारी पार्टी के उम्मीदवार चुनाव जीतते हैं, इसलिए संभवत राजस्थान में इस बार चुनाव परिणाम भी इसी अनुरूप आए लेकिन राजस्थान में जातियों के समीकरण ऐसे है कि कई बार उम्मीदवार जीती हुई बाजी भी हार जाते है। राजस्थान में इस बार जिन सात विधानसभा सीटों पर उप चुनाव हो रहा है उनमें से चार सीटों दौसा, टोंक जिले के उनियारा देवली, झुंझुनूं और रामगढ़ पर प्रतिपक्ष कांग्रेस का कब्जा था। जबकि भाजपा का मात्र एक सीट सलूंबर तथा क्षेत्रीय दलों भारतीय आदिवासी पार्टी (बाप) का डूंगरपुर जिले की चौरासी और नागौर जिले की खींवसर सीट पर आरएलपी का कब्जा था। पूर्वी राजस्थान की दौसा और टोंक जिले की उनियारा देवली तथा शेखावाटी की झुंझुनूं विधानसभा सीटें कांग्रेस विधायकों के सांसद बनने से रिक्त हुई है और इन पर उप चुनाव हो रहा है। इसी प्रकार डूंगरपुर जिले की चौरासी तथा नागौर जिले की खींवसर विधानसभा सीट पर भी इंडिया गठबंधन में कांग्रेस की सहयोगी पार्टियों भारतीय आदिवासी पार्टी (बाप) तथा आरएलपी के उम्मीदवारों के सांसदों के चुनाव जीतने से रिक्त हुई सीटों पर उप चुनाव हो रहे है। दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी अंचल सलूंबर और अलवर जिले की रामगढ़ विधानसभा सीटों पर सीटिंग विधायकों भाजपा के अमृत लाल मीणा और कांग्रेस के जुबेर खान के निधन से रिक्त हुई सीटों पर उप चुनाव हो रहे है।
राजस्थान की सात विधानसभा सीटों के लिए तीस अक्टूबर को नामांकन पत्र वापस लेने की अन्तिम तिथि के बाद उम्मीदवारों और राजस्थान के रण की तस्वीर साफ हो जाएगी। वैसे मोटे तौर पर्व चार सीटों दौसा,टोंक जिले की उनियारा देवली,झुंझुनूं और अलवर जिले के रामगढ़ में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और प्रतिपक्ष कांग्रेस के उम्मीदवारों के मध्य सीधा मुकाबला होना तय है तथा सलूंबर तथा डूंगरपुर जिले की चौरासी और नागौर जिले की खींवसर सीट पर त्रिकोणात्मक मुकाबला होने की प्रबल संभावनाएं है। वैसे उत्तरप्रदेश की तरह कांग्रेस हाई कमान यदि अपने इण्डिया गठबंधन के साथियों के लिए यह तीन सीटें छोड़ दें तो यहां पर भी सीधा मुकाबला हो सकता है। हालांकि वर्तमान हालातों को देखते हुए इसकी संभावना बहुत कम लगती है।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इन उप गुनावों में भाजपा की भजन लाल शर्मा की राजस्थान सरकार के 11 महीनों के कामकाज को उप चुनाव वाले क्षेत्रों के मतदाता कसौटी पर लेंगे।इसी प्रकार कांग्रेस के लिए भी यह एक और अग्नि परीक्षा होगी क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में उसने भाजपा की 9 अविजित लोकसभा सीटों पर भाजपा को हराया था । साथ ही आरएल पी और बाप नेताओं को भी सोनी सांख बचाने होगी क्योंकि उन्होंने भी कांग्रेस के समर्थन से दो लोकसभा सीटों पर भाजपा को पटकनी दी थी।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के नेता और कार्यकर्ता पड़ोसी प्रदेश हरियाणा में मिली विजय से उत्साहित होकर जो चुनाव में जुट गए है। उप चुनावों की घोषणा होने के बाद भाजपा ने अन्य दलों से सबसे पहले अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर मनोवैज्ञानिक बढ़त ली थी तथा मुख्यमंत्री भजनलाल और प्रदेश भाजपाध्यक्ष मदन राठौड़ की अगुवाई में भाजपा का चुनाव प्रचार भी सुनियोजित ढंग से सबसे आगे ही चल रहा है जिसमें केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव, गजेन्द्र सिंह शेखावत और अर्जुन राम मेघवाल आदि भी भाग ले रहे है जबकि कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा ने कांग्रेस उम्मीदवारों की नामांकन रैलियों को संबोधित किया है। हालांकि कांग्रेस ने प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा सहित चालीस स्टार प्रचारकों को सूची जारी की है जिसमें स्थानीय नेताओं की संख्या अधिक है। कमोबेश भाजपा ने भी ऐसा ही किया हैं।
यह उप चुनाव भजन लाल मंत्रिपरिषद के सबसे वरिष्ठ मंत्री डॉ किरोड़ी लाल मीणा के।लिए भी अग्नि परीक्षा जैसा है क्योंकि उनके छोटे भाई रिटायर्ड आरएएस जगमोहन मीणा दौसा से चुनाव मैदान में है। उन्होंने पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में टिकट मांगा था। वे दस वर्षों से प्रयासरत थे। पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया जिससे किरोड़ी लाल मीणा अपनी पार्टी से ही नाराज हो गए तथा मंत्रिपरिषद से इस्तीफा भी दे दिया जो आज तक मंजूर नहीं हुआ है। इसी प्रकार आरएलपी नेता हनुमान बेनीवाल ने अपनी पत्नी कनिका बेनीवाल को चुनाव मैदान में उतारा है। झुंझुनूं और रामगढ़ में भी ओला तथा जुबेर खान के परिवार विशेष की प्रतिष्ठा दांव पर है।
इस प्रकार राजस्थान के उप चुनावों में सत्ताधारी भाजपा प्रतिपक्ष कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। देखना है उप चुनाव के परिणाम के बाद किनकी सांख और अधिक बढ़ती है तथा किनका ग्राफ नीचे आएगा?