पुष्पासव जिव्हा लिये, चले कलम की धार ।
नीरज प्रस्तर को करे , उड़ती पंख पसार ।।
सकल जगत आकाश है,प्रतिपल इक संग्राम ।
नारी तू नारायणी, सहज करे भव पार ।।
नारी के इसी लेखिका रुपी अवतार को परिकल्पित करती यह पुस्तक डॉ प्रभात सिंघल जी के अथक प्रयासों का सुखद परिणाम है । साहित्य के सागर से विभिन्न मोती चुनना और उन्हें एक गागर में समाहित कर देना ही "नारी चेतना की साहित्यिक उड़ान" है l
इस संकलन में स्त्री विमर्श की सशक्त कवयित्रियों की कलम का सार शामिल है l
लेखन निश्चित रूप से सरल कार्य नहीं और नारी के लिये तो बिल्कुल नहीं l क्योंकि नारी की कलम ने नहीं चाहा शासकों का प्रशस्ति गान लिखना, उसने लिखना चाहा प्रेम, पीड़ा, राष्ट्र, संवेदना, आशा, भक्ति, बचपन और समाज l इन्हीं समस्त भावों को अपने में समेटे "नारी चेतना की साहित्यिक उड़ान इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है" l
हाड़ौती क्षेत्र की नवोदित कवयित्रियों के स्वप्नो को आकाश और उनकी रचनाओं की जड़ों को जमीन प्रदान करने की दिशा में लेखक ने हिंदी साहित्य के उत्थान में प्रतिबद्धता जाहिर करते हुए इस पुस्तक को प्रकाशित कर जो उत्कृष्ट कार्य किया है, वह बहुत सराहनीय तथा प्रेरणादायक है l
नारी मन को प्रतिबिम्बित करती यह पुस्तक महिलाओं के मनोबल को ऊँचा उठाने की दिशा में एक सशक्त कदम है।
सर्वप्रथम पुस्तक का मुख पृष्ठ उस मूर्तिकार की कल्पना को साकार करता प्रतीत हुआ जैसे नारी का लेखिका रूप भावों का झरना बन कागज़ पर उतर आने को आतुर है । नारी मन की गहराइयों में डूब उसके स्पंदन में प्रेम, स्नेह वात्सल्य के साथ उसका आक्रोश, पीड़ा और व्यथा को समेटे यह पुस्तक नारी की दृष्टि में समाज के बिम्ब को प्रकाशित करती है । हाड़ौती अंचल की 81 कवयित्रियों की चेतना को एक साथ एक जिल्द में बाँधती इस पुस्तक में न केवल रचनाओं का समावेश है अपितु उनका सूक्ष्म परिचय भी ससम्मान समाहित है । यह कितना अद्धभुत और प्रशंसनीय कार्य है कि जिन महिलाओं की प्रतिभा को समाज ने नहीं जाना उन्हें इस पुस्तक के माध्यम से श्रेष्ठतम तरीके से प्रस्तुत किया गया है l
पुस्तक में रचनाएं विविधता समेटे अनेक फूलों के गुलदस्ते के रूप में दिखाई देती हैं l कहीं स्वयं में मर्म समेटे सृजन दिखाई देता है तो कहीं आशावादी सोच लिये उर्दू हिंदी शब्दों का सामंजस्य प्रकट होता है l पृष्ठ दर पृष्ठ एक नई सोच और शैली चक्षुओं को शब्दों की सरिता से तृप्त करती प्रतीत होती है l कुछ रचनाओं में प्रेमचंद का मर्म है वहीं किसी पृष्ठ पर आप हरिशंकर परसाई के व्यंग्य साहित्य के प्रभाव को उजागर होता पाते हैं l
हिंदी के अतिरिक्त हाड़ौती और मालवी भाषा को प्रेम करने वाली कवयित्रियों का भी पुस्तक में अहम स्थान है l पद्य लेखन से जुड़ी मातृ शक्ति के अतिरिक्त अतुकान्त सृजन के साथ ही छंद, दोहे, गीत, ग़ज़ल आदि अनेक विधा में पारंगत बहनों की रचनाओं का भरपूर सागर समहित है l
पुस्तक प्रारम्भ से लेकर आखिरी पड़ाव तक विभिन्न रचनाओं में लेखनी की अलग अलग विधाओं को कुछ यूँ समेटती प्रतीत होती है मानों वर्षा के रिमझिम जल कणों और धवल धूप किरणों की परस्पर प्रतिस्पर्धा ने क्षितिज के अधरों पर मुस्कान ला पुस्तक में सतरंगी इंद्र धनुष छिटका दिया हो । गद्य तथा पद्य लेखन की प्रेमी लेखिकाओं ने पुस्तक में प्रसंगानुकूल हृदय को स्पर्श करने वाली रचनाओं को रचा है । पुस्तक की भूमिका प्रबुद्ध साहित्यकार आदरणीय जितेंद्र निर्मोही जी द्वारा लिखी गयी है । भूमिका का प्रत्येक शब्द मोती के सामान प्रतीत होता है l शुद्ध भाषा तथा तत्सम शब्दों के प्रयोग से सजी भूमिका निश्चित रूप से ध्यान आकर्षित करने योग्य है l प्रबुद्ध साहित्यकार विजय जोशी द्वारा पुस्तक की अप्रतिम विवेचना की गयी है । जिनकी रचना शैली पूर्णतः अलंकारिक है । कई वाक्यों में उनके द्वारा भाषा शब्दों के चमत्कारिक प्रयोग किए गए हैं जिन्हें पढ़कर कवित्त के रसास्वादन जैसा आनंद प्राप्त होता है l
तत्पश्चात समस्त लेखिकाओं के सृजन तथा परिचय को बहुत सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है l यह स्वयं में एक अकल्पनीय प्रयास है l पुस्तक को यदा कदा बूंदी शैली तथा भारतीय विरासत के चित्रों से अलंकृत करने का प्रयास सराहनीय है l
पुस्तक अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँचती है l जिसमें पुस्तक के लेखक डॉ .प्रभात सिंघल जी के परिचय तथा उपलब्धियों का समावेश है l एक ऐसी शख्सियत जिन्होंने अपने अमूल्य गुणों के सौरभ से कार्यक्षेत्र तथा साहित्य जगत को सुरभित किया l अपने कार्यों से अपनी पहचान बनाने वाले तथा नारी की छिपी प्रतिभा को पुरुष प्रधान समाज में प्रतिष्ठित करने की दिशा में कार्य करने वाले सिंघल जी को पुस्तक के सफल प्रकाशन की हार्दिक बधाई l "नारी चेतना की साहित्यिक उड़ान " आने वाले समय में नारी शक्ति के गौरव के रूप में पहचानी जाएगी l