उदयपुर महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय के सभागार में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् की अनुसंधान परियोजनाओं की मध्य एवं पश्चिमी क्षेत्र की दो दिवसीय समीक्षा दल बैठक का शुभारम्भ हुआ। इस बैठक में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् की सिंचाई जल प्रबंधन परियोजना की पांच वर्षीय कार्याें की समीक्षा की जायेगी। जिसमें देश के 07 विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के केन्द्र के वैज्ञानिक अपने कार्यो की प्रगति की समीक्षा हेतु प्रतिवेदन प्रस्तुत करेंगे।
डाॅ. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, मप्रकृप्रौविवि, उदयपुर ने अपना संदेश साझा करते हुए बताया कि पंचवर्षीय समीक्षा दल बैठक अनुसंधान कार्यों के मूल्यांकन एवं समीक्षा हेतु एक अतिमहत्वपूर्ण बैठक होती है। इस उच्च स्तरीय समीक्षा दल के सदस्य अतिअनुभवी पूर्व कुलपति एवं पूर्व निदेशक व अधिष्ठाता स्तर के अधिकारी होते है। समीक्षा दल की बैठक में विगत पांच वर्षों के अनुसंधान कार्यों की समीक्षा की जाती है तथा आने वाले समय में अनुसंधान कार्य को दिशा प्रदान की जाती है। डाॅ. कर्नाटक ने संदेश में कहा कि मेवाड़ की ख्याति महाराणा प्रताप के साथ-साथ उच्च कोटि के जल संचयन, संरक्षण एवं प्रबंधन तकनीक से है। जिसका उल्लेख मेवाड़ ऐतिहासिक लेखक श्री चक्रपाणी मिश्रा ने अपने ग्रंथ विश्व वल्लभ में किया है।
कार्यक्रम एवं समीक्षा दल के अध्यक्ष डाॅ. वी. एन. शारदा, पूर्व निदेशक, भारतीय जल प्रबंधन संस्थान, भुवनेश्वर एवं भूतपूर्व सदस्य एएसआरबी ने सिंचाई जल की गुणवŸाा बनाये रखने के लिए विभिन्न नदी, नहर एवं जलाशयों के संयुक्त अनुसंधान की महŸाी आवश्यकता के बारे में बताया। उन्होंने आईडब्ल्यूएम पर एआईसीआरपी के उद्देश्यों को फिर से तैयार करने और कृषि पारिस्थितिकीय क्षेत्रों के आधार पर काम को सिंक्रनाइज करने का सुझाव दिया। सिंचाई जल प्रबंधन के सभी एआईसीआरपी केंद्रों को अपने कृषि पारिस्थितिकीय क्षेत्रों में समस्याओं की पहचान करनी चाहिए और फिर विषयों के आधार पर प्रयोग की योजना बनानी चाहिए। प्रयोगों या परियोजनाओं की योजना बनाते या तैयार करते समय कृषि पारिस्थितिकी क्षेत्रध्क्षेत्र के संबंधित केंद्र की सिंचाई और जल संसाधनों के दशक-वार आधारभूत डेटा की आवश्यकता होगी। उन्होंने यह भी बताया कि प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता कम हो रही है, इसलिए उपलब्ध पानी का विवेकपूर्ण उपयोग और विभिन्न क्षेत्रों के बीच पानी का वितरण बहुत महत्वपूर्ण है।
डाॅ. अरविन्द वर्मा, अनुसंधान निदेशक ने समीक्षा दल के सदस्यों एवं विभिन्न अनुसंधान केन्द्रों से पधारे हुए परियोजना प्रभारियों एवं वैज्ञानिकों का स्वागत करते हुए कहा कि कृषि के लिए जल एक महत्वपूर्ण इनपुट है इसके राजस्थान के परिपेक्ष में विवेकपूर्ण उपयोग के बारे में विस्तार से बताया। सिंचाई जल प्रबंधन (आईडब्ल्यूएम) परियोजना द्वारा तैयार किया गया वाटर बजट राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया। निदेशक ने राजस्थान के परिपेक्ष में परियोजना की उपलब्धता को साझा किया एवं जल प्रबंध पर किसान उपयोगी सिफारिशों की उपयोगिता एवं फसल जल उपलब्धता पर बताया। डाॅ. वर्मा ने बताया कि परियोजना के प्रभारी डाॅ. पी.के. सिंह ने अनुसंधान आलेख का आस्ट्रेलिया में वाचन किया तथा डाॅ. के. के. यादव ने आस्ट्रेलिया एवं वियतनाम में अनुसंधान आलेखों का वाचन किया। परियोजना के वैज्ञानिक डाॅ. मनजीत सिंह को परियोजना के अन्तर्गत छाली गांव में एनिकट निर्माण हेतु उपराष्ट्रपति से सेगी अवार्ड प्राप्त हुआ।
डॉ. एस.एन. पांडा, सदस्य, क्यूआरटी ने अपने परिचयात्मक भाषण में कहा कि पानी की गुणवत्ता में गिरावट के साथ प्राकृतिक संसाधन तेजी से घट रहे हैं जो आजकल एक गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि सतही जल और भूजल संसाधनों से संबंधित समस्याओं को अलग-थलग करने के बजाय समग्रता में निपटाया जाना चाहिए। उन्होंने जल संसाधन प्रबंधन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग और सेंसर के अनुप्रयोग पर भी जोर दिया। उन्होंने जोन और क्षेत्र के अनुसार समस्याओं की पहचान करने का भी सुझाव दिया।
डाॅ. पी. के. सिंह, पूर्व अधिष्ठाता एवं परियोजना प्रभारी, सिंचाई जल प्रबंधन ने बताया कि साथ ही उन्होंने बताया कि यहा से विकसित प्लास्टिक लाईनिंग पौंड की अनुशंषा माननीय राष्ट्रपति महोदय द्वारा की गयी तथा इसको देश के सभी कृषि विज्ञान केन्द्रों पर लागु करने की सिफारिश की गई। इस अवसर पर मध्य एवं पश्चिमी क्षेत्र में संचालित परियोजनाओं के परियोजना समन्वयकों ने अपनी अनुसंधान परियोजनाओं का संक्षिप्त प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के दौरान अतिथियों द्वारा भूमि जल एटलस एवं दो तकनीकी बुलेटिन का विमोचन किया गया। डाॅ. के. के. यादव, विभागाध्यक्ष एवं परियोजना प्रभारी ने पधारे हुए अधिकारियों एवं वैज्ञानिकों का धन्यवाद प्रेषित किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. एस. सी. मीणा, आचार्य, मृदा विज्ञान विभाग ने किया।