81 महिलाओं साहित्यकारों को एक साथ एक पुस्तक में उनकी लेखनी , उनके अनुभवों के साथ शामिल कर डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल का प्रकाशन नारी चेतना की साहित्यिक उड़ान साहित्य जगत और देश भर के ख्यातनाम साहित्यकारों , प्रकाशकों के लिए एक ज्ञानवर्धक और दस्तावेज बन गया है।
उक्त पुस्तक के अवलोकन और अध्ययन के बाद मुझे लगा मुझको से मुझसे मिलाया गया है । आप भी अध्ययन कीजिये , यक़ीनन आपको भी लगेगा के आपको भी आपसे मिलाया गया है ।
एक महिला , एक नारी , पत्नी , माँ , बेटी , बहु , बहन , मार्गदर्शिका , और अवसर पढ़ने पर दुर्गा माँ भी हो जाती है । उनके अनुभव जीवन शैली ,यह कटु सत्य , ख्यातनाम, विद्वान महिलाओं के लेखन , चिंतन मंथन इस पुस्तक के हर अल्फ़ाज़ में शामिल है ।
यक़ीनन में साहित्य की क , ख , ग भी नहीं समझता , लेकिन नारी क्या है , उसकी चेतना क्या है , नारी पर लिखा जाने वाला साहित्य क्या है , एक नारी की या नारी समूह की साहित्यिक उड़ान क्या है , नारी की उड़ान कैसी है , इसे समझने की कोशिश में ज़रूर करता रहा हूँ । शायद सीख जाऊं , शायद नहीं भी सीख पाऊं । लेकिन डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल द्वारा प्रकाशित हाड़ोती की महिला साहित्यकारों को लेकर जो सारगर्भित पुस्तक प्रकाशित की गई है उक्त पुस्तक के विमोचन समारोह में शामिल होकर मैंने बहुत कुछ जाना। ,उससे भी ज़्यादा मुझे पुस्तक के अवलोकन के बाद सीखने को मिला है।
मातृशक्ति के रूप में सेवा कार्य करते हुए नोबल पुरस्कार प्राप्त माँ मदर टेरेसा के नाम से संचालित कोटा के एक स्कूल के सभागार में आयोजित इस समारोह में महिलासाहित्यकारों का जमावड़ा था । उन्हें प्रेरित करने वाले और उनकी मदद करने वाले उत्साहित करने वाले , मार्गदर्शित करने वाले , वरिष्ठ साहित्यकारों का सानिध्य उन्हें प्राप्त था । सभी के चेहरे पर मुस्कान थी । कुछ के चेहरे पर दम्भ , कुछ के चेहरे पर स्वमभूपन था । लेकिन माहौल साहित्यिक था। साहित्य के मंचासीन लोगों के प्रति समर्पण का माहौल भी था । बस मंच से एक विरोधाभासी बात और तथ्यों के विपरीत बात बार - बार कही जा रही थी । वक्ताओं द्वारा , नवोदित महिला साहित्यकारों , का हवाला देते हुए , उक्त पुस्तक में प्रकाशित साहित्यकारों की सामग्री को नवोदित लेखिकाओं का प्रकाशन बता कर प्रचार किया जा रहा था । यक़ीनन उनकी नियत में कोई दुराग्रह नहीं था , उनका मतलब जो भी लेखिकाओं के बारे में उक्त पुस्तक में विवरण है। डॉक्टर वीणा अग्रवाल सहित कई नामचीन लेखिकाओं की उपस्थिति इस समारोह में थी । साहित्यिक माहौल गद- गद कर देने वाला था ।
प्रख्यात वक्ता डॉक्टर दीपक श्रीवास्तव ने इस पुस्तक के विमोचन समारोह में सारगर्भित वक्तव्य में समा बाँध दिया , जबकि प्रकाशक लेखक डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल ने उक्त पुस्तक के लिए वरिष्ठ साहित्यकार जितेंद्र निर्मोही को प्रेरक बताते हुए कहा के उक्त पुस्तक के प्रकाशन का बीज जितेंद्र निर्मोही की प्रेरणा से हुआ जो सभी के सहयोग से एक वटवृक्ष के रूप में सामने आया है ।
वरिष्ठ साहित्यकार विजय जोशी ने तो उक्त पुस्तक के प्रकाशन लेखिकाओं के लेखन चिंतन के बारे में ब्योरेवार जीवंत वर्णन करते हुए माहौल को साहित्यिक वातावरण में बदल दिया । पुस्तक के सूत्रधार बीजारोपण करने वाले जितेंद्र निर्मोही ने साहित्यिक वातावरण को चौतरफा रोशन कर दिया ।
डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल ने मुझे भी पुस्तक भेंट की । मैने पुस्तक का अवलोकन किया । 81 साहित्यिक महाविभूतियों के बारे में प्रकशित इस पुस्तक में उनका सारगर्भित विवरण है , जीवनी है , इनमें से कई दर्जन महिला साहित्यकारों से मेरी निजी जानकारी हैं। कुछ को पत्रकारिता के कार्य समय से में छापता भी आया हूँ , सराहता भी आया हूँ । पुस्तक के अवलोकन के बाद एक तो मेरी तेंतीस साल आठ महीने इक्कीस दिन पूर्व की यादें ताज़ा हो गई जब में एक विशिष्ठ साहित्यिक लहजे , साहित्यिक मनोविज्ञान , जीवन के सच को समझने की कोशिशों में जुटा था । वोह पंक्तियाँ , वोह विचार , वोह जीवंत शैली फिर से ताज़ा हो गई । मेरी अंतरात्मा को झकझोर कर उस जीवंत सत्य की तरफ मुझे धकेल रही थीं । पुस्तक में प्रकाशित साहित्यकार लेखिकाओं के गद्य , पद्य , कविता , ग़ज़ल , अतुकांत कविताएं , आधुनिक काव्य शैली का गूढ़ता से अध्ययन का मेरा प्रयास रहा । मेने देखा , समझा कि यह महिला साहित्यकार लेखिकाएं , नवोदित नहीं , यह तो एक वट वृक्ष है । इनकी रचनाएँ , सारगर्भित भी हैं , आत्मा को झकझोर देने वाली भी हैं और समाज का दर्पण भी हैं । इनमे रिश्ते भी हैं , नारी का वातसल्य है , तो माँ की ममता इसमें शामिल है , नारी की पीड़ा है , उसका समर्पण है , एक व्यथा है , तो समाज में उसकी जीवन शैली , संघर्ष का एक जीवंत मनोविज्ञान है । यह सब किसी नवोदित लेखिकाओं द्वारा लिखा जाने वाला लेखन नहीं स्थापित से भी स्थापित लेखिकाओं से भी बेहतरीन लेखन है । मैं सेल्यूट करता हूँ , रेनू सिंह राधे की उन पंक्तियों को जिसमे उन्होंने मातृत्व प्रेम , मातृत्व सम्मान , मातृत्व विरह की पीढ़ा कुछ अल्फ़ाज़ों में यूँ बयान कर डाली है ... वोह जन्नत थी मेरी और आज वोह खुद जन्नत में खो गई , यूँ तो डॉक्टर वीना अग्रवाल, ,जिला जज स्तर की अधिकारी बीना दीप , वरिष्ठ साहित्यकार प्रेमलता जैन सहित सभी की रचनाएँ दिल को भा जाने वाली जीवन के कड़वे सच , अनुभवों को समझाने वाली हैं । उक्त पुस्तक में 81 लेखिका रचनाकार साहित्यकारों में से 41 लेखिका साहित्यकार डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त हैं जबकि जिला जज स्तर की अधिकारी , शिक्षिकाएं , स्कूली प्रधानाध्यापिकाएँ, सफल ख्यातनाम उद्गघोषिकाएँ ,व्यवस्थापिकाएँ , सफलतम गृहिणियां , समाजसेविकाएं शामिल हैं। इनके अनुभव ,, इनका चिंतन , वर्तमान हालातों का चित्रण , उक्त लेखिका साहित्यकारों द्वारा कम शब्दों में गागर में सागर भरकर किया गया है । डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल की नारी चेतना की साहित्यिक उड़ान , उड़ान नहीं एक शाहीन की तरह सर्वोच्च बुलंदी का कामयाब सफर है और एक साहित्यिक माला है । जिसकी ,सुंदरता , जिसका चिंतन , मंथन , पुरुष हो , या वरिष्ठतम कहे जाने वाले साहित्यकार हों उनकी विधा , उनका लेखन , उनकी सर्वोच्चता श्रोधार्य है । लेकिन उक्त पुस्तक में समामेलित लेखिकाओं की जीवन शैली ,उनके द्वारा, शब्दों के ज़रिये उनके अनुभवों को उकेरकर जो प्रस्तुति उनके द्वारा की गई है , वोह नवोदित , नवोदिता साहित्यकार हरगिज़ नहीं , एक परिपक्व,, सफलतम , बेहतरीन साहित्यिक प्रतिभाओं की प्रस्तुति है । डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल द्वारा संकलित इस पुस्तक में वरिष्ठतम साहित्यकार जितेंद्र निर्मोही की प्रेरणा , ख्यातनाम वक्ता डॉक्टर दीपक श्रीवास्तव का उत्साहवर्धन , ख्यातंमाम साहित्यकार विजय जोशी जी की विजय पताका साथ होने से इस प्रकाशन में चार चाँद लग गए हैं और चाँद तक की यही उड़ान इस पुस्तक, पुस्तक की सामग्री , रचनात्मक दर्शन को ,सबसे, अव्वलीन बना देती है ।
साहित्यागार , प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में 81 लेखिकाओं के बारे में संकलन है , मुख पृष्ठ पर , नारी द्वारा एक मोटी क़लम से पत्थर पर कुछ शब्द उकेरने के प्रयास की तस्वीर है , लेकिन सबसे बेहतर , सबसे जुदा सबसे अव्वलीन , इस पुस्तक में , खास बात यह है , के प्रत्येक परिचय आलेख के अंत में जिस पृष्ठ पर भी थोड़ी खाली जगह बची वहां अलग - अलग भाषा में , अलग अलग धर्म , उनके धार्मिक ग्रंथों की सर्वसम्मत , क़ौमी एकता के उद्देश्य की तस्वीरें हैं । जबकि कुछ पृष्ठों पर महिला वातसल्य , प्रेम , क्षत्रुओं के नाश करते वक़्त , आक्रोशित महिला, देवियों, योद्धा की युद्ध संघर्ष की तस्वीरें भी हैं जो इस पुस्तक के दर्शन को और अधिक महत्वपूर्ण बना देती है । डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल , पुस्तक में शामिल लेखिकाओं , प्रकाशक और पुस्तक की प्रेरणा जितेंद्र निर्मोही , उत्सावर्धक डॉक्टर दीपक श्रीवास्तव ,विजय जोशी सहित सभी को उक्त पुस्तक के सफलतम प्रकाशन , सफलतम विमोचन के लिए बधाई ।