स्त्री चेतना की प्रतीक और भक्ति काल की गौरव थीं भक्तिमती मीराबाई - प्रो. सारंगदेवोत 

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Published on : 17 Oct, 24 07:10

जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के मीरा अध्ययन एवं शोध संस्थान द्वारा  मीरा जयंती के अवसर पर ‘मीराबाई एवं समकालीन साहित्य’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन

स्त्री चेतना की प्रतीक और भक्ति काल की गौरव थीं भक्तिमती मीराबाई - प्रो. सारंगदेवोत 

उदयपुर । भक्त शिरोमणि मीराबाई ने भक्ति काल में स्त्री शक्ति की पर्याय के रूप में अपनी पहचान बनाई और समाज में नारी जागरण का संदेश दिया।

यह बात बुधवार को जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति प्रो. कर्नल एसएस सारंगदेवोत ने शरद पूर्णिमा पर राजस्थान विद्यापीठ के मीरा अध्ययन एवं शोध संस्थान द्वारा  मीरा जयंती के अवसर पर आयोजित ‘मीराबाई एवं समकालीन साहित्य’ विषयक संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कही। उन्होंने कहा कि मीरा के पद मानवीयता से ओतप्रोत हैं। मीरा अलौकिक ही नहीं, बल्कि लौकिक मूल्यों की बात भी करती हैं। मीरा किसी वर्ग विशेष से जुड़ी हुई नहीं थीं। कुलपति ने कहा कि मीरा के पदों को प्रामाणिकता के साथ आमजन के समक्ष लाने की आवश्यकता है। पांच शताब्दियों के बाद भी उनके पदों से आमजन को प्रेरणा मिल रही है। प्रो. सारंगदेवोत ने बताया कि विद्यापीठ में मीरा के जीवन पर एक प्रमाणिक ग्रन्थ का प्रकाशन किया जाएगा, जिससे शोधार्थियों को मीरा के जीवन और साहित्य को समझने में मदद मिलेगी। 

राजस्थान विद्यापीठ में आयोजित इस संगोष्ठी में मुख्य वक्ता प्रो. मंजू चतुर्वेदी ने कहा कि मीरा की कविताओं में स्त्री सशक्तिकरण और भक्ति का संदेश है। उनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित करती हैं। उन्होंने मीरा को स्त्री चेतना का आदर्श बताया।  उन्होंने कहा कि मीरा की रचनाएं भक्ति और प्रेम के साथ जीवन के लालित्य और सौंदर्य को प्रकट करती हैं। उनकी कविताओं में कृष्ण के प्रति गहरा प्रेम और समर्पण है। मीरा ने अपने जीवन में मायके और ससुराल के रूप में दोनो में ही संघर्ष की स्थिति को सहन किया और कृष्ण की भक्ति में लीन होकर सुंदर सुदर्शन रूप की कामना की। उन्होंने कहा कि मीरा की कविताओं में एक जन्म से नहीं, जन्म-जन्मांतर की तपस्या से ही कृष्ण को पाना संभव होता है। प्रो. चतुर्वेदी ने कहा कि मीरा का समग्र ही स्त्री चेतना का आदर्श है और उनकी रचनाएं देश दुनिया के लिए प्रेरणादायी हैं।
प्रो. सिम्मी सिंह चौहान ने मीरा पर लिखी गई स्वरचित कविताओं के माध्यम से स्त्री चेतना के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। उन्होंने, ‘भक्तिकाल का गौरव थी, नारी जागरण का संतरण थी, वाणी में था माधुर्य भाव, छंदों गीतों की सरगम थी, बंधन तोडे़ निडरता से, साहस की पराकाष्ठा थी, लौकिक को अलौकिक पर वारा, युग की अद्भुत कहानी थी, स्त्री चेतना का अखिल रूप, युगानुकूल गर्वित स्वर थी मीरा’ कविता सुनाकर मीरा के व्यक्तित्व व कृतित्व को याद किया। संगोष्ठी में मुख्य अतिथि प्रो विनया क्षीरसागर, मुख्य अकादमिक अधिकारी धरोहर संस्था एवं पूर्व विभाग अध्यक्ष संस्कृत डेक्कन कॉलेज पुणे ने भी अपने विचार साझा किए।
संचालन मीरा अध्ययन एवं शोध संस्थान के समन्वयक डॉ यज्ञ आमेटा ने किया जबकि धन्यवाद व आभार तकनीकी समन्वयक डॉ चंद्रेश छतलानी ने व्यक्त किया।
विशेष रूप से कार्यक्रम में परीक्षा नियंत्रक डॉ. पारस जैन, प्रो.जीवन सिंह खरकवाल, प्रो. प्रदीप त्रिका, डॉ. अवनीश नागर, डॉ. सुनीता मुर्डिया, डॉ. हीना खान, डॉ. नवल सिंह, डॉ. गौरव गर्ग, डॉ. प्रदीप सिंह , डॉ.मधु मुर्डिया, डॉ. नीरू राठौड़, डॉ. कुलशेखर व्यास, हेमंत साहु, डॉ. दिलीप चौधरी, विकास डांगी, अर्जुन, त्रिभुवन सिंह, मुकेश नाथ आदि उपस्थित रहे।


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