विश्व को जल समृद्ध बनाने के लिए समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता: डॉ. अनिल मेहता*

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Published on : 23 Sep, 24 08:09

विश्व को जल समृद्ध बनाने के लिए समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता: डॉ. अनिल मेहता*

*दिल्ली,  "विश्व को जल समृद्ध बनाने के लिए जल विमर्श में सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और पारिस्थितिकीय पहलुओं का समावेश आवश्यक है। संवाद, सदुपयोग, सहयोग, समन्वय, स्वावलंबन और समावेशिता जैसे सकारात्मक माध्यमों के द्वारा जल समृद्ध विश्व और श्रेष्ठ पारिस्थितिकीय संतुलन के साथ मानव कल्याण सुनिश्चित किया जा सकता है," यह विचार विद्या भवन पॉलिटेक्निक के प्राचार्य और जल चिंतक डॉ. अनिल मेहता ने जल शक्ति मंत्रालय द्वारा आयोजित आठवें भारत जल सप्ताह में व्यक्त किए। 

 

इस वर्ष के जल सप्ताह का विषय "सहयोग और साझेदारी से समावेशी जल विकास एवं प्रबंधन" था। विशेष सत्र "जल समृद्ध विश्व, पारिस्थितिकीय संतुलन तथा मानव कल्याण का हरित दर्शन और समन्वित कार्य" में मेहता ने भारत की समृद्ध जल प्रबंधन विरासत और इसके आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत में जल को सिर्फ एक संसाधन नहीं बल्कि जीवन का साधन और पवित्र ईश्वरीय तत्व माना गया है। 

मेहता ने जल स्रोतों से समाज के संबंध विच्छेद को प्रमुख चुनौती बताते हुए कहा कि जल को केवल हाइड्रोलॉजी, हाइड्रोलिक और हाइड्रो मेटरिलिटी तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इसे हाइड्रोकल्चरीटी, हाइड्रोस्प्रिचुअलिटी, और हाइड्रोमॉरलिटी जैसे विविध पक्षों तक विस्तारित करना चाहिए। उन्होंने "हरित" (हॉलिस्टिक एक्शन फॉर रीवाइटलाइजेशन ऑफ इंडिजिनस ट्रेडिशन) की विस्तृत व्याख्या करते हुए जल संरक्षण के महत्व पर जोर दिया। 

इस सत्र की अध्यक्षता परमार्थ निकेतन के प्रमुख स्वामी चिदानंद सरस्वती ने की, जबकि संस्कृति फाउंडेशन के निदेशक डॉ. अमरनाथ रेड्डी, कोपेनहेगन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कर्स्टन, पत्रकार शिप्रा माथुर, नर्मदा समग्र के कार्तिक सप्रे, और अपना संस्थान के विनोद मेलाना ने जल संरक्षण की पारंपरिक विधियों और सामुदायिक सहभागिता पर अपने विचार साझा किए। गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ. चिन्मय पंड्या और संत सीचेवाल ने भी विशिष्ट अतिथि के रूप में भाग लिया।

इससे पहले, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जल सप्ताह का उद्घाटन करते हुए जल सर्वोदय पर जोर दिया। इस कार्यक्रम में डेनमार्क, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय यूनियन के कई देशों के प्रतिनिधि, अधिकारी, वैज्ञानिक, और उद्योगपति विभिन्न सत्रों में उपस्थित रहे।


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