मोदी कैबिनेट का ऐतिहासिक फ़ैसला : वन नेशन वन इलेक्शन पर केन्द्र सरकार संसद में लायेंगी बिल 

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Published on : 19 Sep, 24 01:09

गोपेन्द्र नाथ भट्ट 

मोदी कैबिनेट का ऐतिहासिक फ़ैसला :  वन नेशन वन इलेक्शन पर केन्द्र सरकार संसद में लायेंगी बिल 

केन्द्र में राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक गठबन्धन (एनडीए) की मोदी 0.3  सरकार के 100 दिन पूरे होने के बाद प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को नई दिल्ली में हुई पहली कैबिनेट मीटिंग में देश में वन नेशन वन इलेक्शन के सम्बन्ध में  पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशें स्वीकार कर ली गई । कोविंद समिति ने इसमें पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने और दूसरे चरण में आम चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकायों  (पंचायत और नगर पालिका) के चुनाव कराने की सिफारिश  की हैं।इससे अब देश की कुल 543 लोकसभा सीट और सभी राज्‍यों की कुल 4130 विधानसभा सीटों पर एक साथ आम चुनाव कराने का रास्ता प्रशस्त होता दिख रहा है।इन सभी चुनावों के लिए देश में एक समान मतदाता सूची बनेगी।साथ ही एक कार्यान्वयन समूह का गठन भी किया जाएगा। 

 

उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में देशभर में एक साथ चुनाव कराने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। समिति ने इस संबंध में विभिन्न पार्टियों और हितधारकों से इस पर विचार किया और पिछली सरकार के दौरान ही अपनी सिफारिशें दीं। इसमें प्रस्ताव किया गया है कि एक अवधि के बाद सभी राज्यों की वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल छोटा कर एक साथ चुनाव करायें जायें। केन्द्र और विधानसभा में चुनाव के थोड़े समय बाद ही नगर निकायों और पंचायतों के चुनाव कराए जायें। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने पिछलें मार्च में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू को सौंपी। केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा बुधवार को स्वीकार की गई समिति की रिपोर्ट के अनुसार ‘एक देश, एक चुनाव' पर उच्च स्तरीय समिति ने 62 राजनीतिक दलों से संपर्क किया था जिनमें से 47 ने जवाब दिया। इनमें से भारतीय जनता पार्टी और सहयोगी दलों समेत 32 दलों ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया और कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी सहित 15 ने इसका विरोध किया। 

 

मोदी कैबिनेट के  ‘एक देश, एक चुनाव' इस निर्णय के बाद पूरे देश में राजनीति गरम हो गई है। भारतीय जनता पार्टी और सहयोगी दलों ने इसे ऐतिहासिक निर्णय बताया है। वहीं कॉंग्रेस सहित अन्य विरोधी दलों ने इस निर्णय का विरोध करते हुए कहा है कि इसके पीछे एक हिड़न एजेंडा और राजनीतिक मकसद है।कुछ लोगों का यह भी कहना है कि देश को धीरे धीरे अमरीका की चुनाव पद्धति की ओर धकेला जा रहा हैं।इस मध्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक देश एक चुनाव के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि इसका कोई राजनीतिक मकसद नहीं हैं।

कैबिनेट मीटिंग में एक देश एक चुनाव का जिक्र करते हुए पीएम मोदी ने कहा,यह लोगों की लंबे समय से लंबित मांग रही है और हम इसे लोगों के हित को ध्यान में रखते हुए लाए हैं।इसका कोई राजनीतिक मकसद नहीं है।पीएम ने कहा लगातार चुनाव से शासन और विकास के कार्यों में बाधा आती हैं।सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कानून व्यवस्था पीछे रह जाती है और यह किसी भी देश के लिए अच्छा नहीं है।

 

प्रधानमंत्री ने एक्स पर पोस्ट कर कहा कि कैबिनेट ने एक साथ चुनाव कराने संबंधी उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकर कर लिया है। उन्होंने कहा, मैं इस प्रयास की अगुआई करने और विभिन्न हितधारकों और विभिन्न हितधारकों से परामर्श करने के लिए हमारे पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की सराहना करता हूं। यह हमारे लोकतंत्र को और भी अधिक जीवंत और सहभागी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।पीएम मोदी ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि इस देश को वन नेशन वन इलेक्शन की जरूरत है और इस पर बहस नहीं की जा सकती।केंद्र सरकार वन नेशन वन इलेक्शन बिल को शीतकालीन सत्र में संसद से पास कराएगी, जिसके बाद यह कानून बन जाएगा।

 

केन्द्रीय रेल,सूचना और प्रसारण एवं सूचना प्रौध्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने नई दिल्ली के राष्ट्रीय मीडिया सेण्टर में कैबिनेट फैसलों की जानकारी देते हुए बताया कि देश में 1951 से 1967 तक लोकसभा और विधान सभाओं के चुनाव एक साथ ही चुनाव होते रहे हैं। इसके बाद 1999 में विधि आयोग ने अपनी 170वीं रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि पांच साल में लोकसभा और सभी विधानसभाओं का एक  साथ चुनाव होना चाहिए ताकि देश में विकास होता रहे। उन्होंने बताया कि 2015 में संसदीय समिति ने अपनी 79वीं रिपोर्ट में सरकार से दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने के तरीके सुझाने को कहा था। इसके बाद पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की अध्यक्षता में एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया गया और उस समिति ने राजनीतिक दलों, न्यायाधीशों, संवैधानिक विशेषज्ञों सहित हितधारकों के व्यापक स्पेक्ट्रम से व्यापक परामर्श किया। उन्होंने बताया कि अब सरकार इस विषय पर व्यापक समर्थन जुटाने का प्रयास करेगी और समय आने पर इस पर संविधान संशोधन विधेयक लाया जाएगा।विभिन्न राजनीतिक दलों और बड़ी संख्या में पार्टियों के नेताओं ने वास्तव में एक देश एक चुनाव पहल का समर्थन किया है।उच्च-स्तरीय बैठकों में बातचीत के दौरान वे अपना इनपुट बहुत संक्षिप्त तरीके और बहुत स्पष्टता के साथ देते हैं। हमारी सरकार उन मुद्दों पर आम सहमति बनाने में विश्वास करती है, जो लंबे समय में लोकतंत्र और राष्ट्र को प्रभावित करते हैं। यह एक ऐसा विषय है, जिससे हमारा देश मजबूत होगा।

 

उल्लेखनीय है कि देश में 1952 में जब पहली बार लोकतान्त्रिक ठंग से चुनाव शुरू हुए तब कई सीटों पर दो उम्मीदवार एक साथ जीत कर आते थे। उनमें एक सामान्य वर्ग से और एक उस क्षेत्र विशेष में बहुसंख्यक जाति से होता था। यदि यह परम्परा बदस्तूर चलती तो रिजर्व सीटों को लेकर कोई बखेड़ा खड़ा नहीं होता लेकिन 1952 के बाद बहुम्मीदवार की पद्धति समाप्त हो गई लेकिन 1967 तक देशभर में चार आम चुनावों में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही हुए। कालान्तर में कतिपय कारणों और कई प्रदेशों में राष्ट्रपति शासन लागू होने आदि कारणों से  आम चुनाव लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होने बंद हो गये। वैसे इस बात में कोई सन्देह नहीं कि देश में किसी न किसी प्रदेश में चुनाव होने से वर्ष पर्यन्त चुनाव चलते रहते है और आचार संहिता लागू होने से विकास के कार्य अवरुद्ध हो जाते हैं। राजस्थान का ही उदाहरण लेवे तो हर पाँच वर्ष बाद राज्य में नवम्बर दिसम्बर माह में विधानसभा चुनाव होते है और इसके बाद नई सरकार को लोकसभा चुनाव घोषित होने से काम करने का बमुश्किल चार पाँच महीनों का समय भी नहीं मिलता। इसी प्रकार लोकसभा के चुनाव होने के बाद स्थानीय निकाय के चुनाव आ जाते हैं। इस प्रकार सरकार का तक़रीबन आधा समय आचार संहिताओं की भेंट चढ़ जाता है जिसके कारण प्रशासनिक कार्यों और विकास कार्यों  में भारी बाधा आ जाती है जिससे सरकार भी जन आकांक्षाओं के अनुरूप अपना प्रदर्शन नहीं कर पाती।राजस्थान में पिछले तीन दशकों में हर पाँच वर्ष के बाद सरकारें बदलने का सिलसिला जारी रहने का यह भी एक बड़ा कारण हैं।

 

वन नेशन वन इलेक्शन के लागू होने से राज्यों को इन बाधाओं का सामना नहीं करना पड़ेगा और केन्द्र एवं राज्य सरकारों की योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए उन्हें पर्याप्त समय मिल सकेगा।

 

देखना है संसद में यदि 2/3बहुमत से यह  विधेयक पारित होता है तो यह कानून बन जायेगा और उम्मीद है नये वर्ष 2025 से  वन नेशन वन इलेक्शन कानून देश में लागू हो जायेगा अन्यथा इसे और भी कई रुकावटों का सामना करना पड़ेगा?


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