मैंने पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स. अ. व. के जीवन -चरित्र को जब बहुत गंभीरता से धर्म विशेष का चश्मा उतार कर, धर्मान्धता का लबादा फेंक कर मानवीय दृष्टिकोण से एक कवि की हैसियत से देखा तो पाया - वो तो मानवता के मसीहा हैं, सम्पूर्ण विश्व के मानवों का कल्याण ही उनका मिशन है। वह तो पूरी कायनात के लिए रहमत बनाकर भेजे गये थे।उनके बारे में लिखना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है, मेरी क्या औकात? एक बुलबुला दुनिया और आख़िरत के मालिक -ओ-मुख्तार के बारे में क्या लिखे? ईश्वर की कृपा दृष्टि हुयी तो कलम चल पड़ी, सब उनका करम है। ख़ैर इस्लाम का अर्थ है -समर्पण। यह ऐकेश्वर के प्रति समर्पण है। वेद कहते हैं -'एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति।'सत्य तो यही है। वो कहते हैं -अल्लाह एक है!आप कहते हैं -ब्रह्म एक है।
आकार रहित, सर्वव्यापी, असीम, अगोचर, अज्ञेय, अपरिवर्तनशील.. एक मात्र सत्ता।
जिसके लिए संत कबीरदास जी का एक दोहा है -
"जाके मुख माथा नहीं, नाही रुप कुरुप।पुहुप बास का पातरा, ऐसा तत्व अनूप।।
जीवन को अधिक से अधिक उसी ख़ुदा या ब्रह्म की अलौकिक सत्ता के समीप लाने की आवश्यकता के लिए नमाज़ है।असली नमाज़ तो दिल का सज़दा है। दुनिया में इसी एकेश्वरवाद के प्रति समर्पित हो कर,विश्व समुदाय का कल्याण और मार्गदर्शन देने वाले दुनिया के आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद स. अ. व. का जन्म बारह रबीउल अव्वल 570ईस्वी सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में सऊदी अरब के मक्का शहर में हुआ। दादा अबू मुतालिब ने नामकरण किया 'मुहम्मद 'जिसका अर्थ है -अत्यधिक प्रशंसित या जिसकी प्रशंसा की गयी हो।पिता -अब्दुल्लाह आपके जन्म से दो माह पहले ही स्वर्गसिधार गये थे। उस समय के अरबी रीति-रिवाज़ के अनुसार 'हलीमा सादिया ' को दाईमाँ के रुप में अपना दूध पिलाने और पालन पोषण के लिए आपको दे दिया गया था। दाई हलीमा ने कई चमत्कार देखे वह गरीब से खुशहाल हो गयी।थोड़े बड़े हुए तो माँ बीबी आमिना के पास चले आये। छ : बरस के हुए तो माँ चल बसी, उसके दो माह बाद दादा का साया भी नहीं रहा।अब चाचा अबू तालिब और चाची फातिमा बिंत असद की देखभाल में रहे।आपका पूरा नाम मुहम्मद इब्ने अब्दुल्लाह अल हाशिम था। कुरैशी जनजाति का हिस्सा प्रतिष्ठित बनू हाशिम कबीले में आपको मुस्तुफा, अहमद, हामिद जैसे उपनामों से पुकारा जाता था।
कबीला संस्कृति के जाहिलाना दौर में, जब हर कबीले का अपना धर्म था, उनके अपने देवी -देवता थे। कोई मूर्ति पूजक, कोई अग्नि पूजक, कोई व्यक्ति पूजक तो कोई प्रकृति पूजक था। हर तरफ हिंसा का बोलबाला था।औरतें -बच्चे सुरक्षित नहीं, जान -माल की कोई गारंटी नहीं। शराब -कबाब -शबाब का नग्न नृतन था, बेटियों को ज़िन्दा मार देना आम बात थी। आदमी के दुराचार से जानवर तक शर्माते थे। इस अँधेरे दौर से दुनिया को बाहर निकालने का पुनीत कार्य पैगम्बर साहब ने किया।बहुत विनम्र, गर्मजोशी से भरे, मददगार, दयालु, सत्यवादी... आदि आदि।
अरब प्रदेश में उच्च निष्ठा, सदाचार और ईमानदारी के लिए आपकी एक अलग पहचान बन चुकी थी।बारह साल से अपने चाचा के साथ व्यापार के सिलसिले में बाहर जाने लगे थे। उच्च चरित्र के धनी, मनमोहक और आकर्षक जो कोई भी उनका चेहरा मुबारक एक बार देखता तो देखता रह जाता था। सुख -दुःख में दुनिया में सर्वाधिक मुस्कुराहट बिखेरने वाले अनोखे व्यक्तित्व। जब 25साल के हुए तो अरब की सबसे धनी और ताकतवर विधवा महिला जो अपने पिता के युद्ध में मारे जाने के बाद बड़े आर्थिक घराने की उत्तराधिकारी थीं। जिन्होंने अपने पहले पति के निधन के बाद दूसरे व्यक्ति से शादी की किन्तु कुछ समय बाद उसके दुर्व्यवहार से तंग आकर ख़ुद अलग हो गईं और फिर कभी शादी न करने का निर्णय ले कर अपना व्यापारिक साम्राज्य सम्भाल रही थीं । तभी एक दिन पैग़म्बर साहब की ईमानदारी के चर्चे सुनकर अपना माल बेचने के लिए शाम (सीरिया )अपने एक विश्वस्त नौकर मैसरा को गोपनीय तरीके से उन पर हर दृष्टिकोण से निगरानी रखने की कह कर विदा किया। व्यापार में ख़ूब मुनाफा हुआ। नौकर मैसरा ने लौटकर अपनी मालकिन बीबी ख़दीजा को बताया कि- 'मुहम्मद तो हर तरह से बेऐब हैं,उनकी परछाई नहीं बनती, उन पर एक बादल छाया कर के चलता है, उनके पसीने में गुलाब के फूल -सी ख़ुशबू आती है, वह कभी झूठ नहीं बोलते... आदि आदि उनके जैसा इन्सान तो मैंने आज तक कहीं देखा ही नहीं!'
हजरत ख़दीजा ने उनके अद्भुत गुणों के बारे में सुना तो अपने शादी न करने के निर्णय को बदल कर उस जमाने के उलट ख़ुद उनका चुनाव कर उनके चाचा के पास शादी का प्रस्ताव भेज दिया। 40साल की बहुत समझदार, ताकतवर और धनी विधवा बीबी ख़दीजा ने 25साल के सत्य और ईमानदारी के पर्याय युवा पैगम्बर साहब से विवाह कर लिया।जैसा कि कहा जाता है -हर सफल व्यक्ति के पीछे किसी न किसी महिला का हाथ होता है। हज़रत बीबी ख़दीजा के साथ दुनिया के सबसे बड़े मानवीय धर्म का उद्भव जुड़ा हुआ है।शादी के बाद चार बच्चे हुए सब चल बसे एक लड़की बीबी फातमा जीवित रहीं।पैगम्बर साहब की सबसे लाड़ली बेटी,जो आगे चल कर हजरत अली की बीबी और हजरत हसन -हुसैन की माँ बनी।शादी के कुछ साल बाद घरेलु मामलों से बेफ़िक्र होकर मानवता के मसीहा को इबादत के लिए तन्हाई पसन्द आने लगी थी।वह मक्का शहर के बाहर ऊँची पहाड़ी की चोटी पर 'गारे हिरा 'नाम की गुफ़ा में बैठ कर रात -दिन इबादत करने लगे थे। 40साल एक दिन की आयु में नो रबीउल अव्वल के दिन पहली वही(सन्देश )ख़ुदा के ख़ास संदेश वाहक फ़रिश्ते हजरत ज़िब्राईल ने उनके नबी होने की सूचना के साथ कुछ खुदाई सन्देश सुनाये।
नबुव्वत की घोषणा के बाद आपने तीन बरस तक चुपके -चुपके और चौथे वर्ष से खुले आम अपने आपने काबा में अपने नबी होने की बात दोहराई और प्राप्त खुदाई संदेशों को लोगों को पहुँचाने का कार्य शुरु किया तो उनकी लोकप्रियता आसमान छूने लगी, मक्का के कुछ प्रभावशाली लोगों को खतरा महसूस होने लगा। कुछ लोग तो जान के दुश्मन हो गये।बातचीत, लेन -देन, बाजारों में चलने -फिरने पर पाबन्दी लगा दी गयी।नबुव्वत के नवें साल उनके बाईकाट का ऐलान कर दिया गया।
दसवें साल में चाचा अबू तालिब और उनके तीन दिन बाद उनकी प्यारी बीबी ख़दीजा का भी इंतकाल हो गया।मुशरिकों के हौसले बुलन्द हो गये। अंततः 622ईस्वी को मक्का से अपने अनुयायियों के साथ मदीना के लिए कूच करना पड़ा उनके इस सफर को हिज़रत कहा गया, इसी से इस्लामिक कैलेंडर हिजरी संवत की शुरुआत हुयी। मदीना आये तो अंसार लोगों ने उनकी ख़ूब मदद की। मदीना में भी अपने ख़ुदाई संदेशों के कारण वह लोकप्रिय हो गये। कुछ वर्षों में बड़ी संख्या में अनुयायी हो चुके तो मक्का लौटकर विजय हासिल की तथा मक्का स्थित काबा को इस्लाम का पवित्र स्थल घोषित कर दिया।उनके साथ रहे सभी अनुयायियों को सहाबी कहा जाता है।
23 बरस तक क़ुरआन नाजिल होने का सिलसिला चला।मक्का में 13वर्ष तक जो सूरा उतरी मक्की सूरा और मदीना में 10वर्ष तक जो सूरा उतरी मदनी सूरा कही जाती हैं। क़ुरआन में कुल 114चेप्टर हैं जिन्हें सूरा कहा जाता है। सूरा के अन्दर छोटे -छोटे खण्ड होते हैं जिन्हें आयत कहा जाता है। 30पारों की पूरी क़ुरआन में 6236आयत हैं। पैग़म्बर साहब ने अपने जीवन -काल में जो कुछ भी कहा और किया उनको 'हदीस' कहा जाता है जो उनके स्वर्गवास62वर्ष की उम्र में 8जून 632के बाद लिखी गयी थी।जिनको तैयार करवाने में बीबी आईशा की प्रमुख भूमिका रही है। पैगम्बर साहब ने अपने अन्तिम हज़ यात्रा के दौरान ही लोगों से पंद्रह बातों का खुतबा दे कर उन पर अमल करने की बात कहते हुए कहा था-मेरे बाद अब कोई नबी आने वाला नहीं है। पैगम्बर साहब की जयन्ति और पुण्यतिथि संयोग से एक ही दिन होने के कारण बारह रबिउल अव्वल को उनकी जयन्ति 'ईद मीलादुन्नबी' (बारह वफ़ात )के नाम से पूरी दुनिया में हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है।शुद्ध हिन्दी रंग में डूबी राग खमाँच में एक कव्वाली है - 'जग ज्योति, स्वामी अवतारी तेरे रुप की वारी सैयदना /मन मोहन गिरधर गिरधारी, तेरे रुप की वारी सैयदना।
उनकी शिक्षाएँ सम्पूर्ण मानवता के लिए आज भी प्रासंगिक हैं। उनका कहना था -"तुम में सबसे बेहतर वो लोग हैं जिनके अख़लाक सबसे अच्छे हैं। अल्लाह की दृष्टि में सबसे अधिक घृणात्मक वह व्यक्ति है जो सबसे ज्यादा झगड़ालू है।"
"आदमी जब अपनी पत्नी को पानी भी पिलाये तो उसे उसका भी पुण्य मिलता है।"
"बुद्धि और ज्ञान जहाँ से मिले उसे ले लो, कोई व्यक्ति भले ही क़ुरआन के हर शब्द का पालन करता हो, लेकिन लोगों की छोटी -छोटी गलतियाँ माफ नहीं करता हो, दूसरों के प्रति दयालु नहीं है तो वह इस्लाम का सच्चा अनुयायी नहीं हो सकता।"उनकी शिक्षाएँ मानवता के लिए अनमोल हैं।
भारतीय भूमि सदा से अपनी उदारता और सहिष्णुता के लिए बेमिसाल रही है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी,गुरुनानक जी, प्रो. के.एस. कृष्ण राव जी,दीवान चंद्र शर्मा जी... आदि उनके बारे में बहुत कुछ लिखा है।
पैगम्बर होने के साथ -साथ सफलतम योद्धा,व्यवसायी, राजनेता, कुशल वक्ता, समाज सुधारक, अनाथों के आश्रयदाता,कैदी और गुलामों के रक्षक, महिलाओं के मुक्तिदाता, न्याया धीश... आदि आदि में उनकी भूमिका दुनिया के किसी भी अवतारी महानायक से कमतर नहीं हैं। उनका किरदार टॉप पर है तभी तो महान कवयित्री सरोजिनी नायडू जी ने लिखा है - "इस्लाम का लोकतंत्र दिन में पाँच बार साकार होता है, जब किसान और राजा एक दूसरे की बगल में घुटने टेकते हैं और घोषणा करते हैं -केवल ईश्वर ही महान है!' मैं इस्लाम की इस अविभाज्य एकता से बार -बार प्रभावित हूँ, जो एक व्यक्ति को सहज रुप से भाई बनाती है। "
सच तो यह है कि -पैगम्बर साहब का जीवन, मानव जीवन के लिए एक आदर्श मॉडल है और हमेशा रहेगा।उनके व्यक्तित्व को एक आलेख में बाँधना नामुमकिन है।
अन्त में एक दोहा उनके श्रीचरणों में समर्पित करते हुए अपनी लेखनी को विराम देता हूँ -