मंदिर, मोक्ष एवं संस्कार के केंद्र - प्रो सारंगदेवोत

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Published on : 12 Sep, 24 15:09

मंदिर, मोक्ष एवं संस्कार के केंद्र - प्रो सारंगदेवोत

उदयपुर। इतिहास एवं संस्कृति विभाग, जनार्दन राय नगर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय और  भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR, NEW DELHI) के तत्वावधान में
 भारतीय मंदिर- शिल्प,वास्तु, दर्शन एवं सामाजिक- सांस्कृतिक परंपराएं*"  विषय पर 11 - 12 सितंबर को  आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह के मुख्य अतिथि प्रोफेसर अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय थे।
 अध्यक्षता कर्नल  प्रो एस. एस. सारंगदेवोत, कुलपति जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर एस. के. भनोत आचार्य, इतिहास विभाग, महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर थे।
 संगोष्ठी निदेशक डॉक्टर हेमेंद्र चौधरी ने बताया कि दो दिवसीय  संगोष्ठी में कुल 70 शोध पत्रों का वाचन किया गया तथा 150 शोधार्थी एवं इतिहासकारों ने भाग लिया । कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत प्रोफेसर मलय पानेरी ,अधिष्ठाता सामाजिक विज्ञान एवं मानवीकी संकाय ने किया। आयोजन सचिव डॉक्टर ममता पूर्बिया ने दो दिवस के दौरान शोध पत्रों का सारांश एंव प्रतिवेदन का वाचन किया। 
डा. हेमेंद्र चौधरी  ने बताया कि विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर एस. के. भनोत ने भारत के मंदिर की शैलियों एवं शिल्प अलंकरण योजना के संयोजन पर बात करते हुए कहा कि मंदिर हमारे जीवन का महत्वपूर्ण पहलू है, वहां से हम ईश्वर के प्रति एकाग्रता को ग्रहण करते है।
 प्रो अजीत कुमार कर्नाटक मुख्य अतिथि, ने कार्यक्रम की सहाराना करते हुए कहा कि हमारे बड़े महाकाव्य महाभारत एवं रामायण हमारे प्रेरक हैं, वहीं गीता हमें जीवन दर्शन का ज्ञान करती है। मंदिर परंपरा एक सूत्र है जो वर्षों से इस ज्ञान को संवाहक के रूप में आने वाली पीढियां को शिक्षित कर रही है।
 अध्यक्षता करते हुए प्रो एस. एस. सारंगदेवोत कुलपति ने कहा कि मंदिर एवं मंदिर के उत्कीर्ण मूर्ति शिल्प शिक्षा, सामाजिक, सांस्कृतिक, प्रशासनिक एवं आर्थिक जीवन के इतिहास के महत्वपूर्ण स्रोत है जो हमारे भारतीय ज्ञान परंपरा को समृद्ध करते है,  वर्षों पुराने मंदिरों में उत्कर्ष तकनीक हमारे प्राचीन ज्ञान को समर्थ करती है, साथ ही कहा कि इस विरासत को संरक्षण एंव संयोजन की आवश्यकता है। कार्यक्रम में प्रोफेसर मीना गोड, डा धमेन्द्र राजोरा, प्रोफेसर जे के ओझा, डॉ राजेंद्र पुरोहित, प्रोफेसर प्रीति शर्मा, डॉक्टर आमोस मीना, बिंदिया पवार, पायल लोहार, राजकुमार खराडी, सुनील जैन, सोनल चैहान, दिलीप सिह चैहान, आषीष नन्दवाना, आरिफ, बी. एल. सोनी  आदि कई  इतिहासकार संगोष्ठी में मौजूद रहे। धन्यवाद की रस्म डॉक्टर हेमन्द्र चैधरी ने की तथा कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर लवली भाटी एवं डॉक्टर चित्रा दशोरा ने किया।


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