उदयपुर। भूपाल नोबल्स विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी संकाय की एन एस एस इकाई की ओर से दिवेर विजयोत्सव स्मृति दिवस पर निबंध प्रतियोगिताऔर गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर भूपाल नोबल्स संस्थान के प्रबंध निदेशक मोहब्बत सिहं राठौड़ ने प्रतिभागियों का उत्साहवर्धन करते हुए दिवेर विजय के संबंध में जन जागरूकता का आह्वान किया और कहा कि यह दिवस हमारे लिए गौरव का क्षण है। दिवेर युद्ध, एक ऐसा युद्ध जिसमें मेवाड़ की सेना ने 36 हज़ार मुगल सैनिकों को भागने पर मजबूर कर दिया था। इस युद्ध की विजय गाथा आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है। दिवेर का युद्ध 1582 में हुआ था। इस युद्ध में मेवाड़ के राजकुंवर अमर सिंह प्रथम और मुगल सेना के बीच लड़ाई हुई थी। इस युद्ध में मुगल सेना का कमांडर सुल्तान खान था। इस युद्ध में महाराणा प्रताप के खोए हुए राज्यों को वापस पाने में सफलता मिली थी। हालांकि, नई पीढ़ी मेवाड़ के इस शौर्य से अच्छी तरह परिचित नहीं है। इसे देखते हुए शिक्षा विभाग ने प्रतिवर्ष दिवेर विजय स्मृति दिवस मनाने का निर्णय लिया है। महाविद्यालय अधिष्ठाता डाॅ.शिल्पा राठौड़ ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि निबंध के माध्यम से हमारी लेखन क्षमता का विकास होता है। महाविद्यालय एनएसएस कार्यक्रम अधिकारी डाॅ लोकेश्वरी राठौड़ ने बताया कि एनएसएस की स्वयंसेवकों ने बढ़-चढ़ कर भाग लेते हुुए विषय पर अपने विचार व्यक्त किये।इस अवसर पर विश्वविद्यालय के एनएसएस समन्वयक डाॅ. ज्योतिरादित्य सिंह भाटी ने निबंध प्रतियोगिता के बारे में विस्तार से जानकारी दी और बताया कि निबंध में विजय रहने वाले प्रतिभागियों को जिला स्तर और राज्य स्तर पर सम्मानित किया जाएगा। संकाय सदस्य डाॅ. मोहन सिंह राठौड़, डाॅ. हुसैनी बोहरा आदि ने दिवेर विजय के बारे में अपने विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर विश्वविद्यालय चैयरपर्सन कर्नल प्रो शिवसिंह सारंगदेवोत, विद्या प्रचारिणी सभा के मंत्री डाॅ महेन्द्र सिंह आगरिया, कुलसचिव डाॅ. निरंजन नारायण सिंह राठौड़ ने शुभकामनाएं प्रेषित की और कहा की दिवेर विजय के बारे में लोगों में जानकारी का अभाव है। इस तथ्य की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया जाना आवश्यक है। कर्नल जेम्स टॉड ने दिवेर के युद्ध को मैराथन ऑफ मेवाड़ की संज्ञा दी थी। मैराथन का युद्ध इसलिए कहा जाता है कि 490 ई.पू. मैराथन नामक स्थान पर यूनान केमिल्टियाड्स व फारस के डेरियस के मध्य युद्ध हुआ था। इस युद्ध में यूनान की विजय हुई थी। प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल टॉड ने महाराणा और उनकी सेना के शौर्य, युद्ध कुशलता को स्पार्टा के योद्धाओं सा वीर बताते हुए लिखा है कि वे युद्धभूमि में अपने से चार गुना बड़ी सेना से भी नहीं डरते थे। दिवेर में विजय स्थलीय स्मारक पर महाराणा प्रताप की अश्वारूढ़ प्रतिमा 65 फीट ऊंचाई पर बनाई गई है।ये जानकारी जनसम्पर्क अधिकारी डॉ कमल सिंह राठौड़ ने दी।