हिन्दी सिनेमा के बाल गीतों का बालमन पर प्रभाव 

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Published on : 10 Sep, 24 02:09

हिन्दी सिनेमा के बाल गीतों का बालमन पर प्रभाव 

अंतर्राष्ट्रीय वामा हिंदी साहित्य अकादमी एवं सलिला संस्था के संयुक्त तत्वावधान में ऑनलाइन अंतर्राष्ट्रीय बाल साहित्य संगोष्ठी का आयोजन हुआ। जिसकी अध्यक्षता इंडिया नेट बुक्स के प्रकाशक डॉ. संजीव ने की। मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे लंदन से पुरवाई वेब पत्रिका के संपादक तजेंद्र शर्मा। संगोष्ठी की संयोजक व संचालक सलिला संस्था की अध्यक्ष डॉ. विमला भंडारी थी।  विषय विशेषज्ञ वक्ता ऑस्टेलिया से हेमा बिष्ट, गाजियाबाद से रजनीकांत शुक्ल एवं भोपाल से डॉ. लता अग्रवाल "तुलजा" थी।

इस अवसर पर डॉ. लता "तुलजा" जी ने फिल्मी लोरियों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ लगभग 35 फिल्मी लोरियों का भी जिक्र किया। लोरियों के बालमन पर प्रभाव के संबंध में बताते हुए कहा कि लोरियां बालमन को आत्मबल देती है, उनके मन मस्तिष्क को हौंसला देती है। यद्यपि शिशु इस अवस्था में शब्दों की शक्ति से अनभिज्ञ होता है किंतु लोरी की सुर और नाद उसके स्नायु तंत्र को शिथिल करते हुए उसे निंद्रा के आगोश में ले जाता है। लोरियां भावनात्मक संबंध को प्रगाढ़ करती है।

मेलबॉर्न से हेमा बिष्ट ने एनिमेशन फिल्मों के गीतों के बारे में अपना शोध प्रस्तुत करते हुए बताया कि कैसे ये गीत बच्चो में सकारात्मकता का भाव जाग्रत करते हैं। इस संबंध में उन्होंने छोटा भीम, मोगली एवं कई एनिमेशन फिल्म गीतों का उदाहरण गेयता के साथ देते हुए बताया कैसे उनकी बेटी लड्डू खाकर स्वयं को "मैं हूं छोटा भीम" गा उठती है। 

रजनीकांत शुक्ल ने साहिर लुधियानवी के बाल गीतों पर बात की। उन्होंने मंच पर उनके लिखे अनेक फिल्मी गीतों का वाचन किया। उन्होंने बताया साहिर के हर गाने में एक संदेश छिपा होता है। विशेषकर उन्होंने बच्चो के लिए कई देश प्रेम से ओत-प्रोत व नैतिक मूल्यों के गीत गेयता के साथ प्रस्तुत किए।

डॉ. संजीव कुमार ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में इस आयोजन को अनूठा बताया।  फिल्मों से जुड़े बाल साहित्य पर चर्चा की आवश्यकता बतायी। अनेक फिल्मी बाल गीतों से मंच को समृद्ध किया। साथ ही फिल्मी बाल गीतों के संकलन को प्रकाशित करने का निर्णय लिया। उनका मत था कि गीतों और साहित्य के बीच लक्ष्मण रेखा नहीं खींची होनी चाहिए।

 मुख्य अतिथि के रूप में  श्री तजेंद्र शर्मा इस कार्यक्रम से जुड़े। बाल गीतों से रचा बसा संगोष्ठी का सुंदर संचालन डॉ. विमला भंडारी ने किया। इस दौरान आपने कई बाल गीतों का स स्वर गायन किया।

यह संगोष्ठी परिचय, वार्ता और परिचर्चा के तीन चरण पर पूरा हुआ। परिचर्चा के दौरान कई विद्वानों ने अपने विचार साझा किए।  बच्चों का देश बाल पत्रिका के सह संपादक प्रकाश तातेड़ कहा कि हमने फिल्मों को बच्चों से अलग मान लिया है जबकि यह भी बाल साहित्य का एक अंग है। नीना सोलंकी ने इस आयोजन को बच्चों के लिए बहुत उपयोगी बताया। संध्या गोयल ने मंच से अनुरोध किया, आज भी बाल साहित्यकारों द्वारा बहुत अच्छे गीत रचे जा रहे हैं किंतु उनकी फिल्म तक पहुंच नहीं बन पा रही। इसके लिए मंच से प्रयास करना अच्छा होगा। नॉर्वे से जुड़े शरद आलोक पूरे उत्साह से अपनी अगली भारत यात्रा में एक बैठक बना कर कुछ बाल गीतों पर टेली फ़िल्म बनाने की योजना भी बना डाली। एक विचार जो साझा हुआ वो ये कि साहित्य को फ़िल्मी गीतों से दूरी नहीं बनानी चाहिए। ये भी प्रश्न उठा कि क्या गीत साहित्यिक नहीं होते हैं? सभी सुधीजन इतने उत्साहित थे कि ऐसे कई बिंदु कार्यक्रम में शामिल हो गये। कुल मिलाकर, गोष्ठी बहुत ही सुंदर और ज्ञानवर्धक रही।


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