जो व्यवहार हमें पसन्द नहीं,वैसा हम दूसरों के प्रति न करेःसंयमलताश्रीं

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Published on : 26 Jul, 24 15:07

जो व्यवहार हमें पसन्द नहीं,वैसा हम दूसरों के प्रति न करेःसंयमलताश्रीं

सेक्टर 4 श्री संघ में विराजित श्रमण संघीय जैन दिवाकरीय महासाध्वी डॉ. संयमलताजी म.सा ने साध्वी डॉ. अमितप्रज्ञाजी म.सा., साध्वी कमलप्रज्ञाजी म.सा., साध्वी सौरभप्रज्ञा म.सा. आदि ठाणा-4 के सान्निध्य में धर्मसभा को संबोधित करते हुए ने कहा कि जो व्यवहार हमें पसन्द नहीं, वैसा हम दूसरों के साथ कदापि न करें। आत्मा का निज स्वभाव ज्ञाता-दृष्टा है।
शरीर तो खून, हाड, मांस, मल-मूत्र, का थैला है। वह जल से शुद्ध नहीं हो सकता। धर्म जल से शुद्ध हो सकता है। धर्म वह वाशिंग पावडर है, जो आत्मा की मलिनता दूर करता है। जो लोग शरीर और आत्मा का भेद जान लेते हैं, वे आत्म साधना के माध्यम से अपना आत्म कल्याण करके जन्म और मृत्यु के बंधनों से मुक्त हो जाते हैं। शरीर तो नश्वर है, लेकिन इस नश्वर में एक जिनेश्वर (आत्मा) है, जो अनश्वर है, उसे पाना है, उस तक पहुँचना है, यही मनुष्य का ध्येय है। सतयुग सदा है, यदि हम निर्मल दृष्टिधारी है।
कलयुग भी सदा है, यदि हम दुषित दृष्टिधारी है। सतयुग आज भी है, लेकिन हमें नहीं दिखेगा क्योंकि हमारी दृष्टि दूषित है। परमात्मा तो सिर्फ उन्हें ही दिखाई। पड़ता है, जिनकी आंखें है। आँख भी श्रद्धा की, भक्ति की। इन चमड़े की आँखों से परमात्मा को नहीं देख सकते। धर्म की आँखो से ही परमात्मा के दर्शन सम्भव है। साध्वी अमितप्रज्ञा ने कहा कि आज आदमी का ह्रदय इतना छोटा हो गया है कि उसमें हम दो हमारे दो ही समा पाते हैं। शेष दुनिया जाए भाड़ में। हमारे मकान तो बड़े हैं, लेकिन मन छोटा है। मन बड़ा होना चाहिए। इतना बड़ा कि सारी दुनिया उसमें समा जाये। भगवान पार्श्वनाथ माँ पद्मावती एकासन का शुभारम्भ हुआ जिसमे 600 से अधिक भाई बहन ने भाग लिया।


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