20 जुलाई से जैन चातुर्मास प्रारम्भ, शहर में आध्यात्मिक वातावरण

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Published on : 17 Jul, 24 06:07

20 जुलाई से जैन चातुर्मास प्रारम्भ, शहर में आध्यात्मिक वातावरण

उदयपुर,20 जुलाई से जैन परम्परा का चातुर्मास प्रारम्भ हो रहा है। राष्ट्रीय साधुमार्गी जैन संघ के आह्वान पर वैश्विक सामायिक दिवस के तहत सामूहिक सामायिक की आराधना विश्वभर में होगी। एक सामायिक 48 मिनट की आराधना होती है। इस अनुष्ठान में देश ही नहीं, विदेश में बसे जैन अनुयायियों में भी उत्साह है। उदयपुर में भी इस अनुष्ठान को लेकर खासा उत्साह है।

चातुर्मास स्थापना पर कई श्रद्धालु तेला तप करेंगे। 20 जुलाई की सांयकाल में सभी जैन अनुयायी चातुर्मासिक प्रतिक्रमण करेंगे और विगत समय में हुई भूलों का प्रायश्चित करेंगे।

उदयपुर में निम्न महासतियों का चातुर्मास निम्नलिखित स्थानों पर होगा:

महासती सुशीला कंवर जी मसा: ठाणा-5, आई वन रोड, भुपालपुरा

महासती मधुबाला श्री जी मसा: ठाणा-8, कोठारी भवन, भडभुजा घाटी

महासती समीक्षा श्री जी मसा: ठाणा-3, जैन स्थानक भवन, नाई

महासती सुसौम्या श्री जी मसा: ठाणा-3, महावीर स्वाध्याय भवन, सेक्टर-5

महासती अक्षिता श्री जी मसा: ठाणा-5, जुहार भवन, भोपालपुर

महत्वपूर्ण तिथियां:

तेला तप: 18 जुलाई से प्रारम्भ

चातुर्मास प्रारंभ: 20 जुलाई 2024

पर्युषण पर्व प्रारंभ: 1 सितम्बर 2024

संवत्सरी महापर्व: 8 सितम्बर 2024

संघ स्थापना दिवस: 4 अक्टूबर 2024

ओलीजी तप प्रारम्भ: 9 अक्टूबर 2024

आयम्बिल तप आराधना: 20 अक्टूबर 2024

तेला तप: 30 अक्टूबर से प्रारम्भ

भगवान महावीर निर्वाण दिवस: 1 नवम्बर 2024

ज्ञान पांचम: 6 नवम्बर 2024

चातुर्मास सम्पन्न: 15 नवम्बर 2024

अल्पेश जैन ने बताया कि इन पर्वों के अतिरिक्त प्रतिदिन प्रार्थना, शिविर, प्रवचन, धार्मिक कक्षा, ज्ञान चर्चा, सामायिक, प्रतिक्रमण और संवर जैसी धार्मिक गतिविधियों से चातुर्मास आध्यात्मिक होगा।

जैन साधु-साध्वी का उत्कृष्ट संयम जीवन:

जैन दीक्षा लेना और उसे निभाना बहुत कठिन है। जैन दीक्षा लेने के बाद व्यक्ति का जीवन पूरी तरह बदल जाता है। दीक्षा उपरान्त जैन साधु-साध्वी का जीवन बहुत ही नियमबद्ध और दृढ़तामय होता है। दीक्षा के बाद मुमुक्षु का अपने परिवार से किसी तरह का सांसारिक सम्बन्ध नहीं रहता, और वह सभी भौतिक संसाधनों का त्याग कर देते हैं। बहुत ही कम संसाधन जैसे कि 72 हाथ श्वेत खादी वस्त्र, आवश्यक पुस्तक, ओघा और भीक्षा हेतु पात्र ही उनके पास रहते हैं। वे प्रतिदिन नियमित दिनचर्या का पालन करते हुए गुरु की आज्ञा में विचरण करते हैं।


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