36 वर्षों के पश्चात् श्रम न्यायालय, उदयपुर से रोडवेज श्रमिक को मिला न्याय

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Published on : 03 Jul, 24 15:07

36 वर्षों के पश्चात् श्रम न्यायालय, उदयपुर से रोडवेज श्रमिक को मिला न्याय


उदयपुर, 4 जुलाई। औद्योगिक न्यायाधीकरण एवं श्रम न्यायालय, उदयपुर के न्यायाधीश सुशील कुमार जैन ने राज्य सरकार द्वारा प्रेषित विवाद पर श्रमिक भैरू सिंह, परिचालक के पक्ष में एवं विपक्षीगण अर्थात् जनरल मैनेजर एवं मैनेजिंग डायरेक्टर, राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम, जयपुर संभाग प्रबन्धक, राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम, उदयपुर एवं आगार प्रबंधक राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम, बांसवाडा के विरूद्ध अवार्ड पारित किया कि प्रार्थी को विपक्षीगण द्वारा दिनांक 18.04.1988 को ड्यूटी जोइन नहीं करवाना अनुचित एवं अवैध है।
न्यायाधीश ने फैसले मे ंकहा कि प्रार्थी को पुनः सेवा में बहाल करने और दिनांक 18.04.1988 से अब तक की अवधि में उनके सेवा में रहते हुए मिलने वाले वेतन, भत्ते का 50 प्रतिशत हिस्सा दिलाया जाना न्यायसंगत पाया जाता है। प्रार्थी को इस प्रकार मिलने वाली राशि पर नियमानुसार आयकर भुगतान के प्रार्थी उक्त राशि प्राप्त करने का अधिकारी होगा। विपक्षीगण प्रार्थी को सेवा में लेकर आज तक देय समस्त वेतन, भत्तो, परिलाभ की राशि का 50 प्रतिशत अदा करें।
श्रमिक भैरू सिंह को संभाग प्रबन्धक, राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम द्वारा दिनांक 19.02.1988 को बिना जांच किए सेवा से पृथक कर दिया था। इसके विरूद्ध श्रमिक ने अपील की जहां मैनेजिंग डायरेक्टर, राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम, जयपुर के अधिकारी द्वारा संभाग प्रबन्धक, उदयपुर को प्रार्थी को पुनः नियुक्त करने के आदेश दिए, जिसकी पालना में संभाग प्रबंधक, उदयपुर ने आदेश दिनांक 08.04.1988 द्वारा प्रार्थी को आगार प्रबन्धक, बांसवाड़ा के यहां नियुक्ति दी। प्रार्थी ने दिनांक 18.04.1988 को आगार प्रबन्धक, बांसवाडा के यहां जोईनिंग दी, जहां उसे स्थान रिक्त
नहीं होने के आधार पर जोईनिंग नहीं ली गई। इस पर प्रार्थी ने जोईनिंग वापस आकर संभाग प्रबन्धक, उदयपुर को दी, जिन्होंने जोईनिंग फाईल कर दी एवं प्रार्थी को ड्यूटी पर नहीं लिया ।
श्रमिक भैरू सिंह ने इस पर विभिन्न न्यायालयों का दरवाजा खटखटाया, जहां उसे समुचित फोरम में जाने की सलाह दी गई। इस पर श्रमिक ने श्रम विभाग में औद्योगिक विवाद उठाया । श्रम विभाग की रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार ने माननीय श्रम न्यायालय, उदयपुर को विवाद अधिनिर्णयार्थ प्रेषित किया, जिस पर माननीय श्रम न्यायालय ने प्रार्थी को दिनांक 19.02.1988 को सेवापृथक किया जाना जो उचित माना, परन्तु आदेश दिनांक 08.04.1988 की पालना में ड्यूटी जोईन नहीं करवाने को अनुचित एवं अवैध मानते हुए उक्त आदेश पारित किया।
इस तरह श्रमिक को 36 वर्षों के लम्बे संघर्ष के बाद न्याय प्राप्त हुआ। श्रमिक की ओर से पैरवी एडवोकेट सी.पी. शर्मा एवं रोडवेज की ओर से एडवोकेट राजेन्द्र सिंह राठौड़ ने की।


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