कोयला संकट और अन्य समस्याओं के स्थाई निराकरण के लिए क्या सार्थक परिणाम लाएंगी?

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Published on : 21 Jun, 24 03:06

केन्द्र और राज्य में डबल इंजन की सरकार राजस्थान के कोयला संकट और अन्य समस्याओं के स्थाई निराकरण के लिए क्या सार्थक परिणाम लाएंगी?

कोयला संकट और अन्य समस्याओं के स्थाई निराकरण के लिए क्या सार्थक परिणाम लाएंगी?

 

बिजली उत्पादन के लिए कोयला की कमी से जूझ रहें राजस्थान के लिए राहत की खबर है।मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के सक्रिय प्रयासों से छत्तीसगढ़ में फंसा लगभग 100 रैक्स यानी 4 लाख मीट्रिक टन कोयला अब राजस्थान को अपने बिजली घरों के लिए मिलने जा रहा है। 

राजस्थान को कोयला की पर्याप्त आपूर्ति के लिए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा अपना पद भार सँभालते ही सक्रिय हो गए थे और उन्होंने केन्द्र में कई शीर्ष नेताओं तक प्रदेश की यह माँग पहुँचाई थी। हाल ही अपने नई दिल्ली दौरे में भी मुख्यमंत्री शर्मा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी,केंद्रीय ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल खट्टर एवं वन और पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव से भी मिले थे।

 

राजस्थान को छत्तीसगढ़ से कोयला मिलने से प्रदेश के पावर प्लांट्स में कोयले के भंडार बढ़ेंगे और आमजन को भी पर्याप्त बिजली उपलब्ध हो सकेगी। दरअसल राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने छत्तीसगढ़ के कोरबा में आर्यन कोल बेनिफिकेशन इंडिया लिमिटेड (एसीबीईएल) को एसईसीएल की खान से सूरतगढ़ एवं छबड़ा थर्मल पावर प्लांट के लिए कोल सप्लाई का 5 वर्ष के लिए कार्यादेश दिया था लेकिन, जुलाई,2022 में छत्तीसगढ़ के राज्य कर विभाग (जीएसटी), खनिज विभाग, राजस्व विभाग एवं पर्यावरण विभाग की संयुक्त कार्यवाही के कारण एसीबीईएल की वाशरीज को सील कर दिया गया। इससे राजस्थान का लगभग 4 लाख मीट्रिक टन कोयला वाशरीज में फंस गया था। मुख्यमंत्री शर्मा ने इस प्रकरण का तुरंत संज्ञान लेते हुए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय एवं केन्द्र सरकार से सम्पर्क किया और फंसे कोयले को रिलीज कराने का आग्रह किया। इस प्रकार मुख्यमन्त्री शर्मा के अथक प्रयासों से छत्तीसगढ़ सरकार ने राजस्थान को कोयला रिलीज करवाने में गंभीरता से त्वरित कार्यवाही की। जिला कलक्टर कोरबा ने उक्त 4 लाख मीट्रिक टन कोयले को रिलीज करने का आदेश दे दिया है। इस 4 लाख मीट्रिक टन कोयले से राजस्थान को लगभग 100 कोल रैक्स की आपूर्ति सुनिश्चित होगी, जिससे उत्पादन निगम के पावर प्लांट्स को कोयला भंडार बढ़ाने में मदद मिलेगी।

 

राजस्थान में कोयला का संकट नया नहीं है और प्रदेश पर हमेशा कोयला संकट के गहरे बादल  मंडराते रहते है। कोयला का यह संकट राजस्थान  के लिए बिजली उत्पादन की दृष्टि से एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है और प्रदेश में कोयले के संकट के चलते बिजली संकट की आहट भी होने लग जाती है। वैसे ही गर्मियों के मौसम में राजस्थान में पेयजल के साथ ही बिजली का संकट बढ़ जाता है और इसका सबसे बुरा प्रभाव ग्रामीण अंचलों पर पड़ता है। किसानों को बिजली की कमी का खामियाजा उनके खेतों में सिंचाई के लिहाज से भी भुगतना पड़ता है। राजस्थान में अधिकांश खेती मानसून की वर्षा पर ही निर्भर है ।

 

भजनलाल शर्मा ने राजस्थान के मुख्यमंत्री का ताज पहनते ही प्रदेश के ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर को साथ ले कर अपनी दिल्ली यात्राओं में इस समस्या पर सबसे पहले ध्यान दिया और  कोयला संकट की समस्या का समाधान निकालने के संबंध में तत्कालीन केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह और केंद्रीय कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी से लंबी चर्चा भी की थी तथा उनसे यह आग्रह भी किया था कि राजस्थान के ऊर्जा क्षेत्र में आ रही दिक्कतों का स्थाई समाधान निकालने में मदद करें। मुख्यमंत्री शर्मा तब केंद्रीय ऊर्जा और कोयला मंत्री के साथ ही केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव से भी मिले थे और इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए उनका सहयोग भी मांगा था।   

 

राजस्थान की पिछली भाजपा और कांग्रेस सरकारों के वक्त से ही प्रदेश में कोयला संकट के मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए दिल्ली में उच्च स्तर पर लगातार मंथन होता रहा है और स्थिति में सुधार के लिए कई नवाचार भी किए गए है। केंद्र सरकार की ओर से दिल्ली से ऊर्जा विशेषज्ञों का एक दल राजस्थान भेजने और प्रदेश में बिजली संकट की स्थिति की समीक्षा किए जाने का भरौसा भी मिला था तथा कहा गया था कि यह दल बिजली उत्पादन, प्रसारण और डिस्ट्रीब्यूशन से जुड़ी दिक्कतों का रिव्यू एवं अध्ययन करेगा। साथ ही टीम बिजली से जुड़ी केन्द्रीय योजनाओं के क्रियान्वयन पर भी विस्तार से चर्चा करेगा। कई उच्च स्तरीय बैठकों में यह भी तय किया गया कि एक्सपर्ट प्रदेश में बिजली की मौजूदा स्थिति का अध्ययन करेंगे और राजस्थान के ऊर्जा क्षेत्र में आ रही दिक्कतों के स्थाई समाधान का प्रयास किया जाएगा । 

राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम के अनुसार राजस्थान में दिनों दिन कोयला संकट की स्थिति विकट होती जा रही है। समय पर कोयला की आपूर्ति नहीं होने से प्रदेश में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में बिजली का उत्पादन करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। प्रदेश में अभी कोयला संयंत्रों कोटा थर्मल,सूरतगढ़ थर्मल , छबड़ा थर्मल, छबड़ा सुपर क्रिटिकल, कालीसिंध थर्मल पावर प्रोजेक्ट है जो प्रायः   कोयला की कमी से जूझते रहते है। प्रायः इन बिजली घरों में कुछ दिनों का कोयला ही शेष रह जाता है। यदि विदेश से आयातित कोयले की गिनती नहीं करें तों तो यह स्थिति एक गंभीरतम संकट है। राजस्थान में कोयला आधारित सभी पावर प्लांट को अपनी पूरी क्षमता यानी फुल लोड पर चलाने के लिए प्रदेश को हर दिन कई रैकस   कोयले की दरकार है,जबकि कोल इंडिया से राजस्थान को हमेशा कम मात्रा में ही कोयला मिलता है।

 

दरअसल राजस्थान में लगातार मंडरा रहें कोल संकट से राज्य सरकार की चिंताए बढ़ गई है। छत्तीसगढ़ आदि प्रदेशों में माइनिंग में पर्यावरणीय क्लियरेंस के कारण देरी होती है और कोयले की कम आपूर्ति के कारण इस संकट के आगामी कुछ और महीनों तक बने रहने की संभावना है। राजस्थान के कोयला संकट को दूर करने के लिए छत्तीसगढ़ में माइनिंग ही एकमात्र स्थाई विकल्प है। छत्तीसगढ़ के परसा पूर्वी कांटा बासन (पीईकेबी) से राजस्थान को bDe पैमाने पर कोयला आपूर्ति होती है।

मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने राजस्थान में कोयले के विकट संकट दूर करने के लिए पहल करते हुए जो कदम उठाए है, इससे उम्मीद है कि प्रदेश कोटला के संकट से शीघ्र ही उबरेगा। हालांकि इस संकट से उबरने के लिए केन्द्र सरकार से भी राजस्थान को समुचित हल निकलने की उम्मीद है। प्रदेश की पिछली सरकारें भी हर वर्ष इस समस्या से जूझती रही है और हर बार प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों से इस बारे में गुहार लगानी पड़ती है। प्रदेश के सांसदों ने इस मुद्दे को कई बार संसद में भी उठाया है। अब केंद्र के साथ राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी भाजपा की सरकारें हैं,इसलिए उम्मीद है कि इस बार समस्या का कोई स्थाई समाधान निकलेगा।

 

नई दिल्ली के आवासीय आयुक्त कार्यालय में वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्रित्व काल में एक सांसद प्रकोष्ठ का गठन किया गया था। इस प्रकोष्ठ का उद्देश्य प्रदेश के लंबित मामलों का हल निकालने के लिए सामूहिक प्रयास से सांसदों के माध्यम से केंद्र पर दवाब डालना था। शुरुआत में इसकी कई बैठके हुई लेकिन बाद में केंद्र और राज्य में अलग अलग सरकार आ जाने से यह सांसद प्रकोष्ठ अपने उद्देश्यों की पूर्ति में पूरी तरह सफल नहीं हो पाया हैं। वर्ष 2019 में तो एक समय लोकसभा एवं राज्यसभा में प्रदेश के सभी 35 सांसद भाजपा के ही थे और केंद्र में भी भाजपा की सरकार थी लेकिन राजस्थान को वो लाभ नहीं मिल पाए जिसका वह हकदार हैं। इसलिए मुख्यमंत्री शर्मा को अब सांसद प्रकोष्ठ को और अधिक मजबूत और गतिशील बनाना होगा। 

 

 

देखना है कि प्रदेश के बाद अब केंद्र के भी भाजपा एनडीए की डबल इंजन की सरकार बनने के बाद,कोयला संकट और देश के सबसे बड़े भोगौलिक राज्य की अन्य समस्याओं के स्थाई निराकरण के प्रयास और कितने अधिक सार्थक परिणाम सामने आयेंगे?


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