‘मैं ताजों के लिए समर्पण वंदन गीत नही गाता’

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Published on : 10 Jun, 24 09:06

-महाराणा प्रताप जयंती पर प्रताप गौरव केन्द्र में खूब जमा कवि सम्मेलन 

‘मैं ताजों के लिए समर्पण वंदन गीत नही गाता’

उदयपुर,प्रताप गौरव केन्द्र का परिसर और उसके आसपास टाइगर हिल की पहाड़ियां ‘राणा की जय-जय, शिवा की जय-जय’ से गूंज उठीं। अवसर था महाराणा प्रताप जयंती पर आयोजित ‘जो दृढ़ राखे धर्म को’ कवि सम्मेलन का। जैसे ही देश भर में वीर रस के प्रख्यात कवि डॉ. हरिओम सिंह पंवार ने ‘मैं ताजों के लिए समर्पण वंदन गीत नही गाता’ पंक्तियों को अपनी ओजस्वी आवाज दी, त्यों ही श्रोताओं ने पाण्डाल को भारत माता के जयकारों से गुंजा दिया। 
सरस्वती वंदना और महाराणा प्रताप को नमन के साथ शुरू हुए कवि सम्मेलन में डॉ. हरिओम सिंह पंवार ने ‘मैं ताजों के लिए समर्पण वंदन गीत नही गाता, दरबारों के लिए कभी अभिनन्दन गीत नहीं गाता, गौण भले हो जाऊं लेकिन मौन नहीं हो सकता मैं, पुत्र मोह में शस्त्र त्यागकर द्रोण नहीं हो सकता मैं, मैं शब्दों की क्रांति ज्वाल हूं वर्तमान को गाऊंगा, जिस दिन मेरी आग बुझेगी मैं उस दिन मर जाऊंगा’ सुनाकर श्रोताओं में देशभक्ति का ज्वार भर दिया। 
कवि किशोर पारीक ‘किशोर’ ने ‘स्वाभिमान के प्रबल प्रवर्तक, हिन्दू गौरव के उद्घोषक, जन्म जयन्ती पर राणा की श्रद्धा से, सारा भारत है नत मस्तक और ‘उस मेवाड़ी समरांगण में, चेतक के बलिदानी प्रण में, महाराणा का त्याग आज भी जिंदा है, हल्दीघाटी के कण कण में’ सुनाकर श्रोताओं की दाद लूटी। 
कवयित्री मनु वैशाली ने ‘जौहर-कुण्डों, घास-रोटियों, बलिदानी परिपाटी को, वीर प्रसूता, स्वर्णिम धोरे, पावन हल्दीघाटी को, राजपुतानी, राजस्थानी, शान बान राणाओं की, सौ-सौ नमन निवेदित है इस धन्य मेवाड़ी माटी को’ सुनाकर भक्ति और शक्ति की धरा को नमन किया। 
कवि बृजराज सिंह जगावत ‘हिंदुआ एक सूरज है तो ये इतिहास ज़िंदा है, अटल प्रण की धरा मेवाड़ स्वाभिमान जिंदा है’ सुनाकर प्रताप के स्वाभिमान की व्याख्या की। कवयित्री शिवांगी सिंह सिकरवार ‘नयनों से जी भर तुम्हें देखती हूं, चरणों के दर्शन से धन्य रहती हूं, क्या क्या मैं मांगू, और क्या न मांगू, श्रीनाथ तुमसे तुम्हें मांगती हूं’ सुनाते हुए माहौल में भक्ति रस घोल दिया। 
जयपुर से आए कवि अशोक चारण ने ‘नयनों में ख़ून उतारा होठों पर हुंकार उठा ली, चेतक ने टाप भरी राणा ने भी तलवार उठा ली’ सुनाकर दिवेर युद्ध का दृश्य जीवंत कर दिया। कवि सुदीप भोला ने ‘बन गया मंदिर परमानेंट बन गया मंदिर परमानेंट, वहीं बना है जहां लगा था राम लला का टेंट, कारसेवकों ने दिखलाया था अपना टैलेंट, राम लला क़सम निभा दी हमने सौ परसेंट, जिसको भी करना है आकर कर ले आर्ग्युमेंट,, चौबीस में केसरिया रंग जाएगी पार्लियामेंट, ज्ञान वापी में पूजा होगी आया है जजमेंट, मथुरा के भी लगे हुए हैं कोर्ट में डॉक्यूमेंट’ सुनाकर दर्शकों को तुकबंदी से गुदगुदाया। 
कवि सम्मेलन का संचालन कर रहे उदयपुर के कवि राव अजातशत्रु ने ‘रण चंडी बन दोधारी पल में दृश्य भयंकर करती थी, खप्पर में आज भवानी के श्रोणित की मदिरा भरती थी, मृत्यु का तांडव देख देख खुशियों का रंग उड़ जाता था, जिस ओर मुड़े राणा बिजली सा काल उधर मुड़ जाता था’ सुनाकर महाराणा प्रताप की शत्रुओं पर चढ़ाई की आक्रामकता का दर्शन कराया। 
आरंभ में कवि किशोर पारीक ने सभी कवियों का परिचय कराया और वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति के पदाधिकारियों ने कवियों का सम्मान किया। 

 


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