पर्यावरणीय स्थिरता के लिए सामाजिक सह-अस्तित्व की आवश्यकता: प्रो सारंगदेवोत 

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Published on : 04 Jun, 24 00:06

जल, जंगल और जमीन बचेंगे तो जीवन बचेगा : डॉ एन सी जैन 

पर्यावरणीय स्थिरता के लिए सामाजिक सह-अस्तित्व की आवश्यकता: प्रो सारंगदेवोत 

पर्यावरण बचाने के लिए नैतिक बल को संगठित करने की आवश्यकता : अनंत गणेश 

 

उदयपुरभूपाल नोबल्स यूनिवर्सिटी उदयपुर में  3 जून 2024 को पर्यावरण जागृति सप्ताह (1 - 8 जून, 2024) की श्रृंखला में एक संगोष्ठी आयोजित हुई जिसमे  पर्यावरणविदों, कृषिविदों, अर्थशास्त्रियों, कानूनी विशेषज्ञों और नौकरशाहों के साथ-साथ नागरिकों और अकादमिक क्षेत्र के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता डॉ. निहाल चंद जैन- पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक, राजस्थान, विशिष्ट अतिथि, महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय उदयपुर के कुलपति प्रो अजीत कुमार कर्नाटक और शांतिपीठ संस्थान, उदयपुर के संस्थापक-संरक्षक अनंत गणेश त्रिवेदी थे और  कार्यक्रम अध्यक्षता बीएन संस्थान के कार्यवाहक अध्यक्ष और राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति कर्नल प्रो शिव सिंह सारंगदेवोत ने की। कार्यक्रम का थीम "पर्यावरण संरक्षण, संरक्षण और जलवायु परिवर्तन" था। डॉ जैन ने कहा की प्रकृति स्वतः जीवित रहती है और बढ़ती है यदि मनुष्य इसे विस्तार करने दें और इसे जीवित रहने दें। जीवित रहने के लिए केवल अपने स्वयं के प्रवाह की आवश्यकता होती है और यह स्थिरता तभी कायम रहती है जब मनुष्य पर्यावरण-अनुकूल और अधिक प्रकृति-प्रेमी बने रहें। यह व्याख्यान पर्यावरणीय अनुकूलनशीलता की चुनौतियों में सिद्ध हुआ। चर्चा अंततः इस निष्कर्ष पर समाप्त हुई कि वनस्पति और जीव-जंतु दोनों मानव-आयामों या रंग, जाति, पंथ, संप्रदाय, धर्म और लिंग की विसंगतियों से बहुत दूर हैं। अनंत गणेश त्रिवेदी ने उदयपुर की पहाड़ियों और झीलों की दुर्दशा का बहुत करूणिक चित्र प्रस्तुत किया और सभी को मिलजुल कर इसका हल ढूंढ़ने के लिए आमंत्रित किया, कहा की यहाँ की नैसर्गिक सुंदरता हमारी विरासत हैं, यही हाल रहा तो हम आने वाली पीढ़ियों को क्या जवाब देंगे, यहाँ के महाराणाओ ने जो इतनी खूबसूरत विरासत हमें सौपी उसको हम बेतहाशा नष्ट कर रहे हैं। पत्थर खदानों का तमाशा इसी तरह जारी रहा तो सदियों से क्षेत्र की पहचान बने ये पहाड़, ऐसे कई पहाड़ों पर बने पूजा स्थल और प्राचीन स्मारक भी जमीदोंज हो जाएंगे। डॉ कर्नाटक ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में बताया की जैव विविधता सभी को समायोजित करती है, लेकिन मानव जाति की अंतर्निहित पसंद और विरासत दोनों को प्रकृति के समानता सिद्धांतों को समायोजित करने में कठिनाई होती है। मानव सभ्यता का कोई भी नवजात नश्वर या जीवित प्राणी पर्यावरणीय अभिजात्यवाद से कोसों दूर है।  उन्होंने पृथ्वी पर स्वच्छ ताजे पानी की मात्रा दिन-प्रतिदिन घटती ही जा रही है पर चिंता व्यक्त की और कहा की पानी के कमी के कारण विश्व भर में सूखा, कई तरह की बीमारियां, प्राकृतिक प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही है परन्तु इस विषय की सबसे दुखद बात यह है कि लोग अभी भी जल संरक्षण के महत्व को लेकर पूर्ण रुप से जागरुक नही हो रहे है। आज हमें 500 करोड़ नये पेड़ लगाने की जरुरत हैं। प्रो. सारंगदेवोत ने कहा की जंगलप्रकृति  में प्राकृतिक भौतिक उपस्थिति यह जाने बिना है कि पशुवाद, पूंजीवाद और पर्यावरणवाद और समाजवाद इन नामकरणों का क्या अर्थ है। इसलिए सामाजिक पारिस्थितिकी को स्वस्थ पर्यावरणीय स्थिरता लाने के लिए प्रकृति की शक्तियों और सुंदर रूपों के पुनर्निर्माण के साथ सामाजिक सह-अस्तित्व की आवश्यकता है। बीएन संस्थान के सचिव डॉ महेंद्र सिंह आगरिया और प्रबंध निदेशक मोहब्बत सिंह राठौड़ ने अपने सन्देश में कहा की इस वर्ष के विश्व पर्यावरण दिवस का विषय " भूमि बहाली, मरुस्थलीकरण और सूखा लचीलापन " है। मानवता भूमि पर निर्भर है. फिर भी, पूरी दुनिया में, प्रदूषण, जलवायु अराजकता और जैव विविधता विनाश का एक जहरीला कॉकटेल स्वस्थ भूमि को रेगिस्तान में और संपन्न पारिस्थितिकी तंत्र को मृत क्षेत्रों में बदल रहा है। सबको आव्हान किया की सभी पेड़ लगा कर पृथ्वी का श्रृंगार करें। इसमें जीपी सोनी, मुख्य अभियंता सिंचाई विभाग, सतीश श्रीमाली, पूर्व अतिरिक्त नगर नियोजक, डॉ. शशि चित्तौडा, डीन एजुकेशन, उमेश चंद्र शर्मा, उच्च न्यायालय अधिवक्ता, डॉ चेतन सिंह चौहान, प्राचार्य बीएनआईपीएस, डॉ. जयश्री सिंह, प्रमुख अंग्रेजी विभाग, डॉ. कमल सिंह राठौड़, प्राध्यापक, फार्मेसी, मनोज गन्धर्व, भरत कुमावत और राजकुमार मेनारिया डॉ सीमा शर्मा, आदि गणमान्य उपस्थित थे।डॉ खुशबु ने कार्यक्रम का संचालन किया।

 


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