कमल
सात साल का कमल देचू गांव के कुम्हार परिवार का गरीब लड़का है ।पिता मिट्टी के बर्तन बनाता है और मां घर घर जाकर बर्तन मांजती है । छह बहने और तीन भाई है कमल के । गांव में नरपत सिंह राठौड़ की बड़ी हवेली है। कमल की मां सुंदर घर पर बर्तन मांज रही थी तभी अचानक से नरपत सिंह राठौड़ का सेवक मंगल दरवाजा खटखटाता है ।सुंदर की बड़ी बेटी सुगना गेट खोलती हैं ।
मंगल “ छोरी तेरो बापू कहां है उसको बुला ला”
सुगना “ बापू तो गांव से बाहर गए हैं “
मंगल “ तेरी मां को बुला ला “
सुगना भीतर जाती है और मां आती है । बड़ा सा घूंघट काडे सुंदर कहती है “ भाई जी आपके आने को कारण’
मंगल “सुंदर तेरे बेटे कमल को ले जान खातिर आयो हूं”
सुंदर “ के बात होगी, बछुआ कमल को काहे लेने आए हो”
मंगल “दादा हुकुम का आदेश है , दिया बाईसा की हवेली में काम करने कमल को शहर भेजना है”
कुछ देर तक सुंदर के हृदय में ममत्व हिलोरे लेने लगा और कहने लगा नहीं मैं अपने बछुवा को कहीं नहीं भेजूंगी फिर एकाएक गरीबी की मजबूरी दिल को दहलाती है और वह भीतर से कमल को लाकर मंगल को सौंप देती है ।