सिरोही। जैन समाज के प्रमुख आस्था स्थल व प्राचीन तीर्थ में आचार्य भगवंत यशोविजयसुरीजी,मुनिचन्द्रसूरी, राजपुण्यसुरीजी एवं भाग्येशविजय सुरीजी महाराज की पावन निश्रा में 47 दिवसीय उपधान तप धूमधाम से चल रहा है। आज जीरावला तीर्थ की 7 वीं वर्षगांठ पर उपधान तप के तपस्वियों के निवि का कार्यक्रम था जिसमें आयोजक संघवी परिवार के प्रकाश भाई, रमेश भाई व सुरेश भाई ने तपस्वियों की सुख साता पूछते हुऐ उन्हें बहुमानपूर्वक एकासना करवाया। उपधान का मतलब साधु जीवन का प्रशिक्षण और तप के साथ आराधना करना है। जैन धर्म मे इस उपधान की बड़ी महिमा है। इस उपधान में 18 दिन का भी एक मिनी उपधान होता है जिसे अढ़ारिया कहते है। इस तप को करने के लिए देश के अलावा विदेशों से भी जैन भाई-बहन आए है। कुल 400 तपस्वी यह तप कर रहे है और इनकी सुख साता पूछने व उनकी अनुमोदना करने के लिए रोजाना सैकड़ो लोग व उनके रिश्तेदार आ रहे है। इस तप में साधना के साथ रोजाना जिनवाणी यानि साधु साध्वी भगवन्तों का प्रवचन सुनना ओर परमात्मा की पूजा करना, नवकार गिनना व भक्ति में लीन रहना होता है। आचार्य भगवंत यशोविजयसुरीजी ने इस उपधान की महिमा पर प्रकाश डालते हुऐ बताया कि इस तप से व्यक्ति के जीवन मे अनेक परिवर्तन आते है और वो त्याग, तपस्या, करुणा, जीवदया व अपरिग्रह के मूल सिदान्त को बारीकी से समझने के बाद उनको अपने जीवन मे उतार कर जीवन को धन्य बनाता है।
मालगांव निवासी हीरा व्यवसायी संघवी लीलचंद हुक्मीचंद जी बाफना परिवार ने अनेक कार्य जैन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए किए है जिनमे पैदल संघ, जिनालय निर्माण, धर्मशाला व उपासरो का निर्माण व गुरुभक्ति के अद्भुत कार्य शामिल है। कल आंतकवादी निरोधी मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष एम. एस. बिट्टा ने जीरावला पहंुच कर उपधान तप के तपस्वियों से भेंट कर उनको वंदन कर उनके दर्शन का लाभ लिया। उसके बाद उन्होंने वहां आचार्य भगवंत व साधु साध्वी भगवन्तों को वंदन कर उनका आशीर्वाद लिया और किस तरह उन्होंने आंतकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी उसके संस्मरण सुनाए तो सभी ने उनकी हिम्मत की सराहना की ओर आचार्य भगवंत यशोविजयसुरीजी ने उनको आशीर्वाद देते हुऐ कहा कि वे आगे भी देश की सुरक्षा के लिए काम करते रहे और नई पीढ़ी को राष्ट्र के लिए मजबूती से काम करने की प्रेरणा देते रहे।
शाम को उन्होंने जीरावला पाश्र्वनाथ भगवान की आरती में भाग लिया और कहा कि जैन समाज मे तप और जप की जो परम्परा है वो अनन्तकाल से चली आ रही है और यह परम्परा हर काल मे दिखाई दे रही है। जब उन्होंने विदेश में रहने वाले एक बालक को साधु वेश में उपधान करते देखा तो उससे आर्शीवाद लेते हुऐ कहा कि यह है जैन धर्म की एक झलक, जैन देश या विदेश में कही भी रहता है लेकिन वो अपने धर्म को नही भूलता है और धर्म के लिए वो जो भी कर सकता है करने को अपना कर्तव्य समझता है और उसके दिल व दिमाग मे यह संस्कार है कि आराधना, तप, जप व करुणा से ही जीवन सफल होता है।
बिट्टा का आयोजक संघवी परिवार के तीनों भाइयों ने शाल ओढ़ाकर बहुमान किया ओर तपस्वीयों का उत्साहवर्धन के लिए आभार व्यक्त किया।