नाथद्वारा/उदयपुर, श्रावण मास के मौके पर रविवार रात्रि देवाधिदेव महादेव के अनुरंजन के लिए श्रीनाथजी की नगरी नाथद्वारा में अनोखा शब्दाभिषेक किया गया। मौका था टीम एन एफर्ट के सहयोग से श्रीनाथ हवेली संगीत एवं साहित्य परिषद एवं स्वर्णभूमि मार्बल के तत्वावधान में नाथद्वारा में जाने-माने गीतकार एवं शायर कपिल पालीवाल की एकल प्रस्तुति ‘शब्दाभिषेक’ का आयोजन। कार्यक्रम में पालीवाल ने अपनी कविताओं, शायरियों, गीतों से देर रात तक मौजूद श्रोताओं को बांधे रखा।
पालीवाल ने भगवान श्रीनाथजी की महिमा को शब्दों में उतारते हुए लोगों को सम्मोहित सा कर दिया। इस दौरान उन्होंने अपनी पंक्तियों ...‘‘ जिसने पापी कंस को दो हिस्सों मे चीरा है..सर्व समर्थ जग के पालक.. उनकी दाढ़ी में हीरा है.. जिसने सबको ही तारा है.. उनकी हवेली श्री नाथद्वारा है..जो पार्थ सारथी है..अद्भुत मंगला आरती है..महिमा उनकी अपार है..जिनके दर्शन श्रृंगार है..सुंदरतम गोपाल है..जब हो दर्शन ग्वाल है.. कितने आज लोग है..ये दर्शन राजभोग है..आनंद अपने आपन है.जब दर्शन उत्थापन है..अंखियां बस निहारती है .. करे जो दर्शन आरती है... देखो कितने ठाट है.. दर्शन आठ आठ है..’’ के साथ जैसे-जैसे श्रीनाथजी की पूजा,ध्यान, अर्चना में प्रयुक्त होने वाले शब्दों के साथ महिमा का बखान किया तो पुष्टिमार्गीय संप्रदाय से जुड़े भक्तजन भी मोहित हो गए।
पालीवाल ने भगवान शिव व श्रीनाथजी की आराधना, प्रेम, विरह, माँ, मानवीय संवेदनाओं के साथ अपनी नई विधा ‘सनातनी‘ में काव्य प्रस्तुतियां दी तो मौजूद श्रोताओं ने करतल ध्वनि से सराहना की। ‘सनातनी‘ में पालीवाल ने प्रेम से अध्यात्म तक के सफर को शायरियों के माध्यम से प्रस्तुत किया। पालीवाल की श्रीनाथजी की स्तुतियों, आशुतोष आराधना, प्रेम विरह के गीत, गजलों ने भी सभी का मन मोह लिया।
....जब तालियों से गूंज उठा सभागार :
शब्दाभिषेक दौरान पालीवाल ने शिवजी की तारीफ में अपनी पंक्तियां ‘‘जो था कल... है आज और... रहेगा कल..महाकाल नाम..है जिसका है प्रत्येक पल...कभी तांडव करे तो पिए कभी हलाहल..है जो सबसे कठिन और हैं सबसे सरल..हे शंभो है शंकर हे आशुतोष अटल..बस एक लोटा जल सभी कष्टों का हल...।’’ की प्रस्तुतियां दी तो पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
शिव-कृष्ण की स्तुतियों का रहा आकर्षण :
पालीवाल ने अपने अंदाज में जब शिव की स्तुति करते हुए कहा ‘‘सत्यम शिवम हे सुंदरा.. हे त्रिनेत्र धारी दिगंबरा.. तुम्हारी शरण हूं अभयंकरा.. करो कृपा हे दिगंबरा..करो कृपा हे सबके देव..त्वं शंभो शंकर काल त्वमेव.. तेरा अंश व्योम गगन धरा.. हे उमापति जगदीश्वरा..करो कृपा हे दिगंबरा... तुम दयालु कर्ता कृत्य हों.. भयावह तांडव नृत्य हो... पापो से मै लबालब भरा.. तुम तार लो शिव शंकरा..तुम शिव तुम ही शक्ति हो..तुम ईश तुम ही भक्ति हो..ना होऊ विमुख तुमसे जरा..दया करो विश्वंभरा...’‘ पंक्तियों के साथ शिवाराधना की। पालीवाल ने श्रीकृष्ण की वेशभूषा-भाव भंगिमाओं की प्रस्तुति देते हुए जब कहा ‘‘ कस्तूरी तिलक ललाट पटल..हृदय में राधा प्रेम अटल..एक हाथ मुरली एक सुदर्शन..राधा माधव असुर निकंदन..जय श्री कृष्ण तुम्हे नित वंदन...’’ के साथ ‘‘रूप विराट कभी रूप सलोना..मेरे भी घर एक दिन चलो ना..हर बार सुदामा ही आए क्या..? मित्रता में कैसा बंधन... जय श्री कृष्ण तुम्हे नित वंदन... की प्रस्तुति दी।
श्रीजी की महिमा के शब्द चित्र से अभिभूत हुए श्रोता
पालीवाल ने भगवान श्रीनाथजी की महिमा का शब्द चित्र प्रस्तुत किया तो श्रोता अभिभूत नज़र आए। उन्होंने अपनी पंक्तियां ‘‘अद्भुत दर्शन सुखदाई है... गौ क्रीड़ा की पिछवाई है.. महिमा उनकी अपार है.. वनमाला का श्रृंगार है.. गादी तकिया श्वेत ... स्वर्ण जड़ित चौकी चरण है.. सर्वोधारक सबके रक्षक.... मेरे श्री गिरिराजधरण हैं.. हीरा मोती मानक पन्ना आभरण जड़े स्वर्ण है.... लाल चौफुली चुंदड़ी... हीरा फूल श्री कर्ण है... देखो कैसा खटका है.. राजशाही का पटका है.. श्री मस्तक पीला फेंटा साज है.. सिरपेंच चंद्रिका कतरा तो .. बाई ओर शीश फूल है... श्री कर्ण लोकबंदी के.. वो जो कमल माला धराई है... और इस और जो वो खड़ी है.. श्री हस्त में कमल छड़ी है.... जन्माष्टमी खेल खिलौने... चकरी चलाई जाती है..अद्भुत छवि आज है..लड़ वाले कर्ण फूल है... देखी कितना इतराई है...प्रस्तुत करते हुए तालियां बटोरी।
इसी प्रकार उन्होंने अपनी पंक्तियों में कहा ‘‘कई बार ये मौका हुआ है..... उस सुदर्शन धारी ने मुझे रोका हुआ है.. रिपुदमन तो अपने आप है.. तू क्यों सर लेता पाप है... जब मुझे लगेगा कि तू है लूटा.. मैं खुद कह दूंगा धनुष उठा.... ये देख मैं ही करता धरता हूं.. सबके संकट हरता हूं.. हा आपने सबको बचाया था.. जब गिरिराज उठाया था... उस समय भी थी बर्षा भारी... मुझको भी देखो त्रिपुरारी.. मुझमें भी तो बरस रही है.. थ्पत गिरिराज उठादो प्यारे.. हम है केवल तेरे सहारे... विरह का पर्वत उठा दो.... होना जो उससे मेल है.. तेरे बाए हाथ का खेल है.... जब तेरी कृपा भरपूर है..... फिर क्यू वो मुझसे दूर है.... मेरा भी चीर मत लूटने देना... ना हाथ वो छुटने देना......तेरे दरस को तरस रही है... कृपा अपनी लूटा दो... विरह वर्षा से बचा लो.. फिर वही लीला रचा लो.. से श्रोताओं को आकर्षित किया।
सनातनी गजल की अनूठी तरन्नुम प्रस्तुति :
प्रयोगधर्मी कवि, गीत व गजलकार पालीवाल ने अपनी सनातनी गजल प्रस्तुति में पहली बार ‘‘जीवन क्या है, क्या सांसों का आना-जाना है, तुझसे निकलकर, फिर से तुझमें ही मिल जाना है।’’’सुनाई तो मौजूद काव्य रसिकों ने देर तक तालियां बजाकर सराहना की। पालीवाल ने ‘ मेवाड़ में एक ही हीरा था, जिसका नाम पन्ना था।’’, ‘जब से सुना है तुम भोले हो, आक हो जाता हूँ मैं‘, ‘‘जब से देखा दिगंबर तुमको, राख हो जाता हूं मैं,’’ ‘‘मुझसे यह बड़ा होने का अहसास खोने लगता है, मां सा हाथ कोई सर पे रखे, मुझ में बच्चा रोने लगता है पंक्तियों को सुनाकर श्रोताओं को आकर्षित किया।
ये रहे मौजूद :
कार्यक्रम में केन्द्रीय और राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार पुरूषोत्तम पल्लव, वीर रस के राष्ट्रीय कवि गिरीश विद्रोही, राष्ट्रीय कवि, लेखक व चिंतक प्रमोद सनाढ्य, हास्य व्यंग्य कवि कानू पंडित, राजस्थान जिमनास्टिक ऐसोसियेशन के उपाध्यक्ष हिम्मतसिंह चौहान, राजेश पुरोहित, सुनीता चौहान, जनसंपर्क विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. कमलेश शर्मा, पीआरओ गिरीश व्यास, पार्षद गोपेश बागोरा, दीपक बागोरा, शिल्पकार हेमंत जोशी, चित्रकार डॉ. चित्रसेन, प्रतिमा पालीवाल, भावना शर्मा, यशोदा नंदन कुमावत, प्रवीण सनाढ्य, अनुराग सनाढ्य सहित अन्य बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।
मोडरेटर एडवोकेट आलोक सनाढ्य ने कार्यक्रम का संचालन किया और उन्होंने भी अपनी प्रस्तुतियों से कार्यक्रम को एक सूत्र में पिरोये रखा। इस मौके पर राजस्थानी गीतकार पुरुषोत्तम पल्लव ने अपने ख्यात गीत मणिहारी की प्रस्तुति दी वहीं कवि कानू पंडित ने हास्य व्यंग्य की रचनाओं के साथ माहौल को रसमय बनाया। आरंभ में आलोक सनाढ्य, यशोदानंदन, प्रवीण एवं अनुराग सनाढ्य द्वारा हवेली संगीत के बधाई के पद गाकर कार्यक्रम की शुरुआत की।