शून्य प्रदूषण की ओर अग्रसर हैं रेलवे: आशुतोष गंगल

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Published on : 06 Jun, 21 10:06

डीजल इंजनों को इलेक्ट्रिक में बदला जा रहा हैं

शून्य प्रदूषण की ओर अग्रसर हैं रेलवे: आशुतोष गंगल

,  विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर उत्तर रेलवे के महाप्रबन्धक श्री आशुतोष गंगल ने अपने संदेश में कहा कि भारत मे रेलवे की शुरूआत अग्रेजों ने अपने इस्तेमाल के लिए की थी। इसके लिए वाणिज्यिक रूप से व्यवहार्य रेलवे लाइनें बिछाई गईं और इनके मार्ग में रेलवे स्टेशनों का निर्माण किया गया। आजादी के बाद भारत के प्रगति करने के साथ-साथ देश के प्रत्येक भाग तक सुगमता से पहुंचने के लिए और अधिक रेलवे लाइनें बिछाई गईं। रेलवे स्टेशनों के आस-पास नगरों और शहरों के बस जाने से रेलवे स्टेशन गतिविधियों का केन्द्र बन गए। यात्री और माल के परिवहन के लिए और अधिक यात्री एवं माल भाड़ा रेलगाड़ियाँ शुरू की गई। भारत की प्रगति के लगभग सभी पहलुओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए रेलवे ने राष्ट्र की जीवन रेखा होने का गौरव अर्जित किया।
 श्री गंगल ने कहा कि वर्तमान में भारतीय रेलवे दुनिया की सबसे बड़ी जन-यातायात प्रणाली है जो प्रतिदिन 23 मिलियन यात्रियों और लगभग 2.2 करोड टन माल का परिवहन सुनिश्चित करती है। इतनी बड़ी संख्या में यात्रियों एवं सामान की ढुलाई के लिए प्रचुरता में ऊर्जा की आवश्यकता होती है। पेट्रोल से चलने वाले अन्य वाहनों की तुलना में रेलवे श्रेष्ठ पर्यावरण अनुकूल माध्यम है। सड़क परिवहन की तुलना में रेलवे ध्वनि एवं वायु प्रदूषण का उत्सर्जन कम करती है। यह राष्ट्रीय परिवहन प्रणाली वर्ष 2030 तक शून्य कार्बन उत्सर्जक बनने के लिए तैयार है। इसका अर्थ यह है कि प्रतिवर्ष लगभग 7.5 मिलियन टन कार्बन के उत्सर्जन को समाप्त करना और लगभग 2 कोयला-चालित बिजली संयंत्रों जितना उत्सर्जन रोकना शामिल है। भारतीय रेलवे 18 क्षेत्रीय रेलों के माध्यम से कार्य करती है। इनमें उत्तर रेलवे सबसे बड़ी क्षेत्रीय रेलवे है। पहाड़ों से लेकर समतल मैदानों तक फैले उत्तर रेलवे के 7302 रूट किलोमीटर रेल मार्ग के माध्यम से यह उत्तर भारत के 7 राज्यों को सेवा प्रदान करती है। अन्य क्षेत्रीय रेलों की तरह उत्तर रेलवे भी स्वच्छ और हरित परिवहन प्रणाली के रूप में उभर रही है। घरेलू स्तर पर विकसित प्रभावी ऊर्जा प्रबंधन उपायों का उपयोग ऊर्जा संरक्षण और यात्रियों को स्वच्छ एवं बेहतर यात्रा अनुभव देने के लिए किया गया है।
उन्होने बताया कि रेलवे रूपांतरण और आधुनिकीकरण की एक लंबी यात्रा रही है। पटरियों पर पशुओं द्वारा खींची जाने वाली गाड़ियों से लेकर बड़े-बड़े भाप के इंजनों और ऊर्जा दक्ष विद्युत इंजनों तथा हाल ही में शुरू किये गये अत्याधुनिक ऐरोडायनेमिक रेल इंजनों तक की यात्रा में रेलवे ने बदलती तकनीक के अनुरूप अपने को बेहतर बनाया है। इसके साथ-साथ यह गति, सुविधा और पर्यावरण अनुकूलता की दृष्टि से भी अपने को बेहतर बनाती रही है। वर्तमान समय में रेलवे स्वच्छ एवं हरित विद्युत ऊर्जा उपायों को अपनाकर और जैविक ईंधनों के इस्तेमाल को कम करके शत-प्रतिशत मिशन विद्युतीकरण की दिशा में बढ़ रही है। उत्तर रेलवे ने बड़े पैमाने पर रेल मार्गों का विद्युतीकरण करके वहा ंबिजली के इंजनों का उपयोग शुरू किया है। वर्तमान में उत्तर रेलवे के 78 प्रतिशत रेल पथ विद्युतीकृत हो चुके हैं। डीजल के इंजनों को हटाया जा रहा है और उनके स्थान पर कम  प्रदूषण वाले बिजली के इंजन लगाये जा रहे हैं। हाल ही में इस जोन पर 138 नये बिजली के इंजन शामिल किए गए हैं। इससे उत्तर रेलवे के बेड़े में कुल 759 इंजन हो गये हैं। उन्होने बताया कि मौजूदा परिसम्पत्तियों को और बेहतर उपयोग के लिए फिर से डिजाइन किया जा रहा है। इस श्रृंखला में मौजूदा डीजल के इंजनों को कबाड बना देने की बजाय घरेलू स्तर पर विकसित तकनीकों से इन्हें बिजली के इंजनों के रूप में बदला जा रहा है। वर्ष 1974 में निर्मित और सेवा से बाहर हो चुके आजाद नाम के एक डीजल इंजन को लुधियाना में विद्युतकर्षण क्षमता के रूप में बदला गया है। यह इंजन अब बैटरी के साथ-साथ विद्युतकर्षण से भी चल सकता है। इसका उपयोग शंटिंग उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है। ब्रेकों के जरिये फिर से ऊर्जा पैदा करने की तकनीक को बिजली के इंजनों में लगाया जा रहा है। इस तरह की ब्रेकों से पिछले वित्त वर्ष में 26 करोड रुपये मूल्य की विद्युत ऊर्जा तैयार की गई।
 उन्होने बताया कि रेलवे एंड आन जेनरेशन प्रणाली वाली रेलगाड़ियों में हैड आन जेनरेशन प्रणाली का प्रसार करने के लिए प्रतिबद्ध है। एंड आन जेनरेशन प्रणाली में राजधानी एव शताब्दी एक्सप्रेस जैसी प्रमुख रेलगाड़ियों के डिब्बों में बिजलीए पंखों और वातानुकूलन इत्यादि के लिए डीजल जेनरेटर वाले पावर कारों का इस्तेमाल किया जाता है जो 750 वोल्ट ऊर्जा की आपूति करते हैं। यह ऊर्जा फीडर केबलों के माध्यम से कोचों में भेजी जाती है। हेड आन जेनरेशन प्रणाली में बिजली के इंजन के पैंटोग्राफ से ऊर्जा लेकर सभी डिब्बों में भेजी जाती है। यह पर्यावरण अनुकूल प्रणाली विषाक्त प्रदूषण व ध्वनि प्रदूषण का उत्सर्जन नहीं करती है और साथ ही ऊर्जा की खपत को भी कम करती है। उत्तर रेलवे पर इस प्रणाली में 80 ट्रेन रैकों को बदला गया है। सभी रेलगाड़ियों में पंरपरागत शौचालयों, जिनसे मानव अपशिष्ट सीधे पटरियों पर गिरता था, के स्थान पर बायोटायलेट और बायो वैक्यूम टायलेट लगाये जा रहे हैं। इन शौचालयों को डीआरडीओ के सहयोग से विकसित किया गया है। जोन पर अन्य नवीकरण ऊर्जा स्रोतों का पता लगाया जा रहा है। स्टेशनों और कार्यालय भवनों की छता पर सोलर पैनल लगाए गए हैं। उत्तर रेलवे रेलगाड़ियों के डिब्बों के छतों पर भी प्रायोगिक आधार पर सोलर पैनल लगा रहा है। इस तरह के डिब्बों के प्रोटो टाईप दिल्ली में तैयार किए गए हैं। इन पैनलों से बनने वाली ऊर्जा से डिब्बों में लाईट और पंखो ंको बिजली दी जा सकेगी। बायो डीजल जैसे अन्य वैकल्पिक ईंधनों का प्रयोग भी जोन पर किया जा रहा है।
 उन्होने बताया कि अपशिष्ट प्रबंधन अपशिष्ट जल का पुनर्चक्रीकरण और वर्षा जल संग्रहण जैसे अन्य बड़े उपायों पर उत्तर रेलवे ध्यान केन्द्रित कर रहा है। प्रमुख रेलवे स्टेशनों और उत्पादन इकाईयों मे ंअपशिष्ट संग्रहण और पुनर्चक्रीकरण इकाईयां स्थापित की गई हैं। रेल परिसरों, अस्पतालों और स्टेशन एरिया में ऊर्जा दक्ष एलईडी लाइटें लगाई गई हैं। रेलवे भूमि पर और रेल पटरियों के साथ बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया गया है। इससे जोन के हरित क्षेत्रा में वृद्धि होगी और रेलपरिचालन के दौरान उत्पन्न होने वाली कार्बन डाईआक्साइड तथा अन्य हानिकारक गैसों के प्रभाव को रोकने में मदद मिली है।


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