उदयपुर डिंगल भाषा ही नहीं बल्कि एक छंद् शास्त्र भी है। डिंगल काव्य परम्परा न केवल हमारे इतिहास का जीवंत प्रमाण है बल्कि राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन की पहली आवाज भी है डिंगल साहित्य द्वारा ही उठाई गई थी। उक्त विचार पद्मश्री प्रो. सी.पी. देवल जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के संघटक साहित्य संस्थान एवं श्रीझवेरचंद मेघाणी लोक साहित्य केन्द्र सौराष्ट्र विश्वविद्यालय राजकोट के संयुक्त तत्वावधान में ’’गुजरात एवं राजस्थान की ऐतिहासिक डिंगल काव्य परम्परा‘‘ पर एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद में मुख्य वक्ता के रूप में कही।
पेट से जुडा सवाल- प्रो. सी.पी. देवल ने राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता तथा द्वितीय राजभाषा घोषित करना न केवल हमारे अस्तित्व से जुडा है बल्कि यह हमारे पेट व रोजगार से भी जुडा है। लगभग सभी प्रान्तों में सरकारी नौकरियों के लिए उसी प्रान्त के उन अभ्यर्थियों को नौकरियां प्राप्त हो जाती है जिन्हने १०वी की परीक्षा उस राज्य की द्वितीय भाषा में उत्तीर्ण की हो। जैसे पंजाब में नौकरी के लिए पंजाबी, गुजरात में गुजराती कर्नाटक में कन्नड, महाराष्ट्र में मराठी ओर बंगाल में बंगाली में पास होना आवश्यक है। यह भाषायी बाढ इसलिए है कि उस प्राप्त के लोग उस प्राप्त की भगालिक आर्थिक सामाजिक सभी प्रकार की परिस्थितियों से पूर्ण रूप से परिचित होते हैं लेकिन राजस्थानी भाषा के संविधान की ८वी अनुसूची में शामिल न होने की स्थिति में ऐसा नहीं हो पा रहा है।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि डिंगल भाषा हमारी साहित्यिक धरोहर है इसे संरक्षित करने की जरूरत है ताकि आने वाली पीढिया हजारो वर्ष पुरानी इस धरोहर को जान सकें। मुख्य अतिथि सौराष्ट्र विवि राजकोट के कुलपति प्रो. पी.एस. चौहान ने कहा कि गुजरात एवं राजस्थान की डींगल भाषा अपनी ऐतिहासिकता समेटे हुए है जरूरत इस बात की है कि इसे लोक साहित्य केा आधुनिक परिप्रेक्ष्य में युवा पीढी के सामने लाने की। इस भाषा वह सब जो एक समृद्ध परम्परा में होनी चाहिए। हमारी इस धरोहर डिगल साहित्य म लिखे ऐतिहासिक ग्रंथों का डिजिटाईलाईजेशन किया जाना जरूरी है। इस अवसर पर विशिष्ठ अतिथि रजिस्ट्रार प्रो. सी. पी. अग्रवाल डॉ. आईदान सिंह भाटी, प्रो. मलय पानेरी, प्रो. अम्बादान रोहडिया, गुजरात विवि के पूर्व कुलपति प्रो. बलवंत जॉनी ने भी विचार व्यक्त किया। समारोह के प्रांरभ में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. पुरूषोतम पल्लव ने सरस्वती वंदना कर की। स्वागत गीत पं. नरोतम व्यास ने दिया। स्वागत उद्बोधन प्रो. मलय पानेरी ने दिया। समारोह का संयोजन डॉ. राजेन्द्र बारहठ ने किया जबकि धन्यवाद प्रो. जीवन सिंह खरकवाल ने दिया।
पुस्तक विमोचन एवं सम्मान समारोह- डॉ. जीवन सिंह खरकवाल ने बताया कि राष्ट्रीय परिसंवाद में पद्मश्री डॉ. चन्द्रप्रकाश देवल, डॉ. कल्याणसिंह शेखावत, प्रो. अम्बादान रोहडया, डॉ. आईदान सिंह भाटी को साहित्य चूडामणी पुरस्कार से नवाजा गया। प्रो. के.एस. गुप्ता को इतिहास एवं संस्कृति चूडामणी तथा सौराष्ट्र वि.वि. के कुलपति प्रो. प्रतापसिंह चौहान को शिक्षा चूडामणी पुरस्कार से नवाजा गया जिसके तहत प्रशस्ति पत्र शाल एवं प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया। अतिथियों ने राजस्थानी भाषा के साहित्यकार भंवरसिंह सामोर द्वारा लिखित पुस्तक संस्कृति री सनातन दीथ पुस्तक का विमोचन किया।
तकनकी सत्र एवं समापन समारोह- प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षता डॉ. कल्याणसिंह शेखावत ने करते हुए कहा कि इतिहास को सूक्ष्मता से देखने की आवश्यकता है तभी हम डींगल के विषय में ओर अधिक जान पाऐंगे। अपनी भाषा के प्रति आदर भाव रखेंगे तभी हम भूमण्डलीकरण के इस दौर में ंडगल की धरोहर को सुरक्षित रख पाऐंगे। डॉ. हुकम सिंह भाटी, डॉ. भंवरसिंह सामोर, डॉ. जहूरखोँ मेहर ने संगत रासो छन्द राव जेतसी रा व सूरजप्रकाश के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी दी। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ. विनोद जोशी ने बताया कि लोक साहित्य में डिंगल की परम्परा विभा विलास दयालदास रि ख्यात, शोभा सरदार में डिंगल कार्य के ऐतिहासिक व सांस्कृतिक पक्ष को डॉ. गिरधरदान रत्नों, श्रज्ञी फल्ल गडरी, प्रो. अम्बादान रोहडया ने विविघ पक्षो के बारे में बताया। समापन सत्र के मुख्य अतिथि प्रख्यात साहित्यकार कल्याण सिंह शेखावत थे। जबकि अध्यक्षता रजिस्ट्रार प्रो. सी. पी. अग्रवाल ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि राजस्थान गुजरात एवं मालवा के इतिहास की आत्मा डिंगल साहित्य में है। डिंगल गीत दोनों राज्यों कि सम्पूर्ण संस्कृति को गहराई से समझने का अवसर प्रदान करते हैं।
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