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प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र पर संकट गहराता जा रहा

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23 Apr 25
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प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र पर संकट गहराता जा रहा

(Tuktak Bhanawat)

उदयपुर। वनों की कटाई, तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण के चलते पृथ्वी का प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र गंभीर संकट में है। अर्थ डे पर हिरण मगरी सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ सीनियर सेकेंडरी स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य वक्ता अलर्ट संस्था के अध्यक्ष एवं पर्यावरणविद् जितेंद्र मेहता ने यह चेतावनी दी।

उन्होंने कहा कि विशेष रूप से वर्षावन, घास के मैदान और आद्र भूमि तेजी से समाप्त हो रहे हैं। अमेजन के वर्षावनों को ‘पृथ्वी का फेफड़ा’ कहा जाता है, लेकिन ये भी विनाश की कगार पर हैं। पेड़ों की कटाई से वन्यजीवों के आवास नष्ट हो रहे हैं और कार्बनडाइऑक्साइड अवशोषण की क्षमता भी घट रही है। अवैध शिकार व अंधाधुंध उपयोग से कई प्रजातियां संकट में हैं।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि इसरो वैज्ञानिक व समाजसेवी डॉ. सुरेंद्र पोखरना ने कहा कि पृथ्वी को मां की तरह सम्मान देना होगा और संसाधनों का दोहन सोच-समझकर करना चाहिए। जल, वायु व मिट्टी प्रदूषित हो रही है, जिससे जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संकट बढ़ रहा है।

विद्यालय की प्राचार्या डॉ. रितु भटनागर ने अतिथियों का स्वागत किया और कार्यक्रम का परिचय दिया। संचालन श्रीमती नीलम रामानुज ने किया। कार्यक्रम में 200 से अधिक छात्र-छात्राएं एवं शिक्षक उपस्थित रहे।


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