उदयपुर। भगवान महावीर द्वारा बताए गए पंचशील सिद्धांत अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह सम्पूर्ण मानवता के नैतिक और आचार संबंधी मूल सिद्धांतों में आधारभूत है l भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में इन पर सबसे अधिक जोर दिया। त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था। यह बात समुत्कर्ष समिति के समाज जागरण के ऑनलाइन प्रकल्प समुत्कर्ष विचार गोष्ठी में अपने विचार रखते हुए वक्ताओं ने कही l समुत्कर्ष समिति ने सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में सनातन के गौरव के प्रति अभिमान जागृति हेतु 2623 वीं महावीर जयन्ती चैत्र शुक्ल त्रयोदशी की पूर्व संध्या पर दु:ख संतप्त मानवता के उद्धारक - भगवान महावीर विषयक 133 वीं समुत्कर्ष विचार गोष्ठी का आयोजन कियाl
अहिंसा यानि हर स्थिति में किसी पर भी हिंसा न करना। सत्य यानि किसी भी स्थिति में झूठ का साथ न देना, सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ना। अस्तेय यानि संयम से रहना। ब्रह्मचर्य यानि भोग-विलास से दूरी बनाना और इंद्रियों को अपने वश में रखना। अपरिग्रह यानि भोग से जुड़ी वस्तुओं का त्याग करना। विचार गोष्ठी में सर्वप्रथम णमोकार मंगलाचरण पाठ एवं विषय का प्रवर्तन करते हुए आर्य सत्यप्रिय ने कहा कि हिंसा, पशुबलि, जाति-पाँति के भेदभाव जिस युग में बढ़ गए थे, उसी युग में जैन पंथ के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। भगवान महावीर का जन्म चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि तद्नुसार सोमवार 27 मार्च, 599 वर्ष ई.पू. के दिन हुआ था। उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओतप्रोत था। महावीर को उनकी कठोर साधना के कारण सज्जंस (श्रेयांस), वीर, जसस (यशस्वी), अतिवीर और सन्मति भी कहा जाता है।
शिक्षाविद सुधा हरकावत, विद्यासागर, तरुण कुमार दाधीच ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए। समुत्कर्ष पत्रिका के उप संपादक गोविन्द शर्मा द्वारा आभार प्रकटीकरण किया गया l समुत्कर्ष विचार गोष्ठी का संचालन शिवशंकर खण्डेलवाल ने किया। इस ऑनलाइन विचार गोष्ठी में दिनेश बंसल, संदीप आमेटा, नर्बदा देवी शर्मा, चैन शंकर दशोरा, रवि अरोड़ा, गोपाल लाल माली,सुनील चाष्टा, पीयूष दशोरा तथा रामेश्वर प्रसाद शर्मा भी सम्मिलित हुए।