हम खुद ही आवारा, लुच्चे-लफंगे और नाकारा बन गए हैं। हम भीड़ का हिस्सा होकर वही विचार, तस्वीरें, वीडियो और संदेश इधर से उधर भेजने में लगे हैं, जो किसी और ने बनाए। खुद कुछ नया सोचने और रचने का प्रयास ही नहीं करते।
हमारी बुद्धि कुण्ठित हो चुकी है, दिमाग में जंग लग चुका है। बिना सोचे-समझे कंटेंट कॉपी-पेस्ट करने की आदत ने हमें मुफ्त के कुली बना दिया है, जो दूसरों का माल ढोते रहते हैं। यह भी एक तरह की चोरी है।
ज़रूरी नहीं कि हर दिन कचरा पोस्ट कर अपनी विद्वत्ता साबित करें। दुनिया में कई लोग अपने लक्ष्यों पर केंद्रित हैं, जबकि हम बेकार की चीजें शेयर करने में व्यस्त हैं।
समाज में ऐसे लोग ग्रुप एडमिन और संचालक बने बैठे हैं, जिन्हें उनके घर-परिवार या पड़ोसी तक नहीं पूछते। वे सोशल मीडिया पर झुंड बनाकर अपना अहंकार तृप्त कर रहे हैं।
जो मेहनत करना नहीं चाहते, जिनके शौक पूरे हो चुके हैं, वे ही इस डिजिटल कचरा संस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं। इससे असली मेहनती और समझदार लोग परेशान हो रहे हैं।
बेहतर होगा कि हम मौलिकता को अपनाएं, नकल छोड़ें और खुद को तथा समाज को इस बेमतलब की जानकारी और दिखावे से बचाएं।