विश्व वानिकी दिवस मानव व अन्य जीवों के जीवन में वनों के महत्व व वनों से ही अस्तित्व के होने की याद दिलाता है । हमारी राष्ट्रीय वन नीति 1988 के अनुसार कुल भौगोलिक क्षेत्र के 33 प्रतिशत भौगोलिक भाग में प्राकृतिक विरासत के संरक्षण, पारिस्थितिकी संतुलन की पुनर्स्थापना व पर्यावरणीय स्थिरता बनाए रखने के लिए वनों का होना आवश्यक है । भौगोलिक क्षेत्र के एक तिहाई क्षेत्र में वनों के अस्तित्व हेतु वन भूमि के अतिरिक्त शहरी क्षेत्र में स्थित भूमि पर पर्यावरण संतुलन के लिए उद्यान के स्थान पर नगर वन विकसित किए जाने चाहिए । शहरों में मुख्यत: उद्यान विकसित किए जाने की परंपरा रही है जिसमें कि विशेषकर सजावटी पौधों के पौधारोपण के साथ कृत्रिम संरचनाओं के निर्माण इत्यादि पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है जिसका परिदृश्य प्राकृतिक रूप से ना दिख कर कृत्रिम परिदृश्य ज्यादा दिखता है । मानव स्वभाव के अनुसार प्राकृतिक वन, प्राकृतिक संरचनाए व इसका परिदृश्य इत्यादि मन को ज्यादा लुभाते है । शहरी विकास में ऑक्सीजन हब के रूप में हरित क्षेत्र विकसित करना यथा उद्यान की स्थापना योजना का हिस्सा रहता है । यदि शहरी क्षेत्र या आस पास में उद्यान के स्थान पर नगर वन विकसित किया जाता है तो उसका परिदृश्य नगरवासियों को प्रकृति के नजदीक लेकर जाता है । नगर वन की अनुभूति उद्यान के तुलनात्मक रूप से अच्छी व मन को सुकून देने वाली होती है । इस प्रकार के नगर वन विकसित करने से जन मानस का परिस्थिति के प्रति जुड़ाव महसूस होता है जो कि प्राकृतिक संरक्षण में सहयोग करता है व जैव विविधता के विकास में भी सहायक होता है ।
जहाँ उद्यान में मुख्यत: सजावटी पौधे जिनमें फूल इत्यादि की प्रजातियों पर ज्यादा केन्द्रित होता है, वहीं नगर वन में वानस्पतिक विविधता पर ज्यादा केन्द्रित होते हुए स्थानीय प्रजातियां यथा झाड़ी, पेड़, बेल इत्यादि को जो कि स्थानीय जलवायु, मिट्टी, पानी इत्यादि के उपर्युक्त होती है, को रोपित किया जाता है । नगर में हरित क्षेत्र की योजना बनाते समय ही नगर वन में ऐसे घटकों का समावेश किया जाना चाहिए जो कि प्राकृतिक लगे जैसे कि फव्वारे के स्थान पर प्राकृतिक रूप से गिरते झरने जैसे दिखने वाली संरचना, बेंच के स्थान पर बैठने हेतु बड़े पत्थर / चट्टान, लोहे के झूलो के स्थान पर परम्परागत रस्सी के झूले इत्यादि योजना, दृष्टिकोण रखा जाना होता है । मियावाकी वृक्षारोपण तकनीकी वनरोपण हेतु जापान की अनूठी विधि है जिसमें छोटे क्षेत्र में भी विभिन्न प्रकार के स्थानीय प्रजातियों के पौधे निकट दूरी पर लगाए जाते है जो बाद में एक घने, बहुस्तरीय वन के रूप में विकसित किए जाते है, के माध्यम से भी नगर वन को विकसित किया जा सकता है ।