उदयपुर। राजस्थान साहित्य अकादमी की ओर से कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद जयंती पर समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर समारोह अध्यक्ष डॉ. कृष्ण कुमार शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्रेमचंद साहित्य को शस्त्र मानते थे। वे साहित्य, समाज और राजनीति तीनों को एक साथ देखते थे। उनका साहित्य तत्सामायिक चेतना का मुखर दस्तावेज है। जिस भाषा का साहित्य अच्छा होगा उनके निवासी श्रेष्ठ हांगे। डॉ. शर्मा ने प्रेमचंद के उपन्यास निर्मला, गोदान कर्मभूमि, गबन आदि पर विस्तार से चर्चा की।
कार्यक्रम के प्रारंभ में अकादमी सचिव डॉ. बसंत सिंह सोलंकी ने स्वागत उद्बोधन में अकादमी की गतिविधियों और विभिन्न योजनाओं पर प्रकाश डाला और साहित्यकारों को अधिक से अधिक भागीदारी करने का आवाह्न किया। इकबाल हुसैन इकबाल ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। अतिथियों का स्वागत डॉ. बसंत सिंह सोलंकी, डॉ. प्रकाश नेभनानी और दिनेश अरोडा ने किया। इस अवसर पर डॉ. तराना परवीन ने अपने उद्बोधन में कहा की प्रेमचंद ने समाज में हो रहे भेदभाव को देखा और उसको अपनी रचनाओं में चित्रित किया। भले वो स्त्री हो, दलित हो या अन्य वर्ग उनकी वास्तविकता और उनकी हकीकत को बेबाक तरीके से अपनी रचनाओं में प्रस्तुत किया। डॉ. परवीन ने प्रेमचंद की कुछ चुनिंदा रचनाओं के अंश भी सुनाए। डॉ. ललित श्रीमाली ने कहा कि प्रेमचंद का लेखन उर्दू से प्रारंभ होता है। आपका लेखन आदर्शवाद से यथार्थवाद उन्मुखता की ओर है। साहित्य को जनता से जोड़ने का काम प्रेमचंद के साहित्य ने किया। डॉ. सरवत खान ने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य समाज- निजाम की बहतरी के लिए लिखा गया है। प्रेमचंद ने अपने रचनाकर्म में जो सवाल उठाए है वह आज भी कायम है। उनके ख्वाब आज भी अधूरे लगते है। डॉ. कुंदन माली ने कहा कि प्रेमचंद के साहित्य में जनजीवन के दर्शन होते है।
इस अवसर पर विश्व में हिन्दी भाषा साहित्य के प्रचार-प्रसार करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करने पर अकादमी की ओर से डॉ. मधु खंडेलवाल मधुर, किरन बाला किरन, सुनीता जैन रूपम, सुनीता पंचैरी, मनोहरलाल श्रीमाली, नंदिता रवि चैहान ,पायल गुप्ता पहल, दीपशिखा क्षेत्रपाल, पुष्पा क्षेत्रपाल आदि का सम्मान किया गया। इस अवसर पर डॉ. लक्ष्मीनारायण नंदवाना, डॉ. मंजु चतुर्वेदी, मधु अग्रवाल, लोकेश चौबीसा, रामदयाल मेहर, निर्मला शर्मा निलोफर, श्रेणीदान चारण, बी. दत्त शुक्ला, ज्योतिपुंज, हुसैनी बोहरा, किरण आचार्य, अशोक मंथंन, पुष्कर गुप्तेश्वर, विजय प्रकाश विप्लवी, बाल मुकुंद नंदवाना ,सुनिल टांक विजयलक्ष्मी देथा, जगदीश पालीवाल, आनंदराज माथुर, सूर्यप्रकाश सुहालका, हिमांशु पंड्या आदि की गरिमामय उपस्थिति रही। कार्यक्रम के अंत में श्री राजेश मेहता ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. कीर्ति चुण्डावत ने किया।