उदयपुर। श्रमण संघीय साध्वी डॉ संयमलता ने शनिवार को सेक्टर 4 स्थित ललित लोढ़ा के निवास पर आयोजित प्रवचन सभा में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि संसार में फंसना बहुत आसान है, पर संसार को पार करना बहुत मुश्किल। भौतिकवाद के इस युग में हम बाहरी चकाचौंध के शिकार हैं, धर्म का असली स्वरूप क्या है? हमारा धर्म के प्रति, समाज के प्रति, राष्ट्र के प्रति क्या दायित्व है? हम उसका आकलन भी नहीं कर पा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि जो सिद्धांत हमें जीवन में अपनाने चाहिए, वो दरकिनार होते जा रहे हैं। साध्वीश्री ने कहा कि जीवन में ऊंचाइयों को प्राप्त करने का प्रयास करें। संन्यासी हो या संसारी, अपने-अपने क्षेत्र में ऊंचाइयां प्राप्त करें। काम करने का सलीका और तरीका बेहद संजीदा होना चाहिए। जीवन में उत्थान को पाना है तो अपने जीवन में क्वांटिटी नहीं, क्वालिटी होना चाहिए।
साध्वी डॉ संयमलता ने प्रशंसा को मीठा नशा बताते हुए कहा कि शराब का नशा सुबह चढ़ता है मगर शाम उतर जाता है। प्रशंसा का नशा एक बार चढ़ जाता है तो कभी उतरता नहीं है। अंगूर की शराब मुंह से पी जाती है, जबकि प्रशंसा की शराब कानों से पी जाती है।
जिंदगी बेहतरीन तरीके से जियो-उन्होंने कहा कि किसी सज्जन ने मुझसे पूछा कि श्रावक या साधु कौन सा जीवन जीऊं। मैंने उससे केवल यही कहा कि जो भी जीवन जियो बड़ी बेहतर तरीके से जियो। चाहे साधु का या श्रावक का। साधु और श्रावक वहीं अच्छें है जो अपनी सीमाओं का उल्लंघन नहीं करते है, मर्यादाओं का पालन करते हैं।
इस अवसर पर साध्वी अमितप्रज्ञा,साध्वी कमलप्रज्ञा, साध्वी सौरभप्रज्ञा ने “भगवान मुनिसुव्रत” का सामूहिक जाप करवाया।