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मोबीरिस्टोर तकनीक ला रही घुटना प्रत्यारोपण मंे क्रंाति

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26 Feb 23
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मोबीरिस्टोर तकनीक ला रही घुटना प्रत्यारोपण मंे क्रंाति

उदयपुर। चित्रगुप्ता सभा एवं एचसीजी हॅास्पीटल फोर्टी ओर्थो टीम के संयुक्त तत्वावधान में हिरणमगरी से. 4 स्थित चित्रगुप्त सभा भवन में जोड़ रोग एवं मस्तिष्क रोग जागगरूकता एवं परामर्श शिविर आयोजित किया गया। जिसमें 197 रोगियों को उचित परामर्श दिया गया।
इस अवसर पर आयोजित समारोह में बोलते हुए अहमदाबाद के वरिष्ठ जोड़ रोग एवं घुटना प्रत्यारोपण विशेषज्ञ डॉ. हिमांशु माथुर ने कहा कि बदलती जीवन शैली में जहंा आमजन को मोटापा, मधुमेह एवं आर्थराईटिस जैसी गंभीर बीमारियों से ग्रसित कर दिया वहीं ये बीमारियां घुटनों को खराब करने में काफी हद तक सहायक सिद्ध हो रही है। आर्थराईटिस बीमारी को हम बहुत हल्के में लेते है लेकिन यह बीमारी मनुष्य के लिये धीमा जहर है। यदि हमें अपने घुटनों को सही रखना है तो अपनी जीवन शैली को बदलना होगा।



उन्होंने कहा कि जहंा पिछले 10-15 वर्षो में यह बीमारी काफी बढ़ी है। 45-55 वर्ष के लोगों में घुटना प्रत्यरोपण काफी बढ़े है। उन्होंने वहंा उपस्थित सभी लोगों से जोर दे कर कहा कि अपनी जीवन शैली बदलिये अन्यथा अपने घुटनों को बदलना होगा।
घुटना प्रत्यारोपण में मोबीरिस्टोर तकनीक ला रही क्रंाति- डॉ.माथुर ने कहा कि घुटना प्रतयरोपण में भी नवीन तकनीक का उपयोग होने लगा है जहंा पहले घुटना प्रत्यरोपण में काफी समय लगता था वहीं अब मोबीरिस्टोर तकनीक से मात्र 15-20 में मिनिट में घुटना बदला जा सकता है। इसके उपयोग से मरीज को अगले ही दिन अपने पैरों चलाया जाता है।
इसमें फिजियोथैरेपी की भी कम आवश्यकता पड़ती है। इस तकनीक में ऑपरेशन होने के पश्चात मरीज नीचे भी बैठ सकता है लेकिन उसे कम समय के लिये ही बैठना चाहिये। जितना इसमें मरीज सावधानी बरतेगा उसके घुटनों की उम्र काफी लम्बी होगी।
माइक्रोप्लास्टी से घुटने का पार्ट बदलना भी संभव- उन्होंने बताया कि माइक्रोप्लास्रूटी के जरिये मरीज के पूरे घुटनों को नहीं बदल कर उसके खराब हुए पार्ट को भी बदला जा सकता है और उसके बाद घुटने को बदलने की आवश्यकता नंही पड़़ती है। यह घुटनें की स्थिति पर निर्भर करता है। उन्होंने नवीन तकनीक से होने वाले घुटना प्रत्यारोपण में सफलता का प्रतिशत 99 से 99.5 प्रतिशत बताया। यदि दोनों घुटनें खराब है तो एक साथ ही उनका प्रत्यारोपण करना ज्यादा सुविधाजनक रहता है। इस हॉस्पीटल में आयुष्मान भारत एंव आरजीसीएच कैशलैस सुविधा भी उपलब्ध है।
इस अवसर पर मस्तिष्क रोग विशेषज्ञ डॉ. पार्थ जानी ने बताया कि स्पाइन एवं न्यूरो समस्या में भी नवीन तकनीकांे का उपयोग होने लगा है। अब बिना ओपन सर्जरी के ब्रेन ट्यूमर निकला जा सकता है। हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित कर एवं स्मोकिंग नहंी कर ब्रेन स्ट्रोक को रोक सकते है। एन्डोस्कोपिक एंव माइक्रोस्कोपिक के जरिये भी अब स्पाइन व ब्रेन का ईलाज संभव हुआ है। स्पेशल न्यूरो मोनोटोरिंग से स्पाईन कोड सर्जरी की जा रही है। जिसमें यह पद्धति काफी कारगर साबित हो रही है।
इस अवसर पर चित्रगुप्त सभा के अध्यक्ष गिरीशनाथ माथुर ने बताया कि शिविर में 197 रोगियों की जांच कर उन्हें उचित परामर्श दिया गया है। जिन्हें फिजियोथैरेपी की आवश्यकता थी उन्हें निःशुल्क सेवा उपलब्ध कराई गई।
शिविर में जलपा पण्डित, पार्थ सोलंकी, मेडिकल ऑफिसर हितेन्द्र पटेल, प्रदीप मकवाना, फोर्टी ओर्थो टीम के अनिल शर्मा सहित महेन्द्र कुमार माथुर,दिनेश माथुर,वीरेन्द्र माथुर,गोविन्द माथुर,दिलीप माथुर,सन्नी माथुर,तथा अरविन्द माथुर ने सेवायें दी।  


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